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बीसवीं शताब्दी में ट्रेड यूनियन का विकास

 इन सभी रुकावटों के बावजूद ट्रेड यूनियन आन्दोलन श्रमिकों के बीच लोकप्रियता प्राप्त कर रहा था। इसका मुख्य कारण श्रमिकों की अनेक तकलीफें थीं, जैसे काम के अत्यधिक घंटे, अस्वास्थ्यकर आवास व्यवस्था, अपर्याप्त मजदूरी, नौकरी से निकाला जाना आदि। उन्होंने सहायता के लिए “बाहरी व्यक्तियों” का सहारा लिया। ये बाहरी व्यक्ति राष्ट्रवादी, कम्युनिस्ट और समाजवादी तथा कुछ निर्दलीय भी होते थे। ये बाहरी व्यक्ति श्रमिकों की सभाएँ आयोजित करते थे, मालिकों को सम्बोधित कर याचिकाएँ लिखते थे और माँग-पत्र तैयार करते थे। वे श्रमिकों को ट्रेड यूनियनों में संगठित करते थे तथा ये ट्रेड यूनियनें ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस से सम्बद्ध थीं। जब मालिक उनकी माँगें अस्वीकार कर देते थे, तब श्रमिक हड़ताल करते थे। प्रायः हड़ताल के दौरान ट्रेड यूनियनें श्रमिकों की आर्थिक सहायता करती थीं क्योंकि हड़ताल के दौरान श्रमिकों को मजूदरी नहीं मिलती थी। हड़तालों के कारण श्रमिकों को बहुत अधिक परेशानियाँ उठानी पड़ती थीं। विशेषकर जब ये हड़तालें महीनों तक चलती थीं। इन परेशानियों के बावजूद भी फैक्टरियों में अनेक हड़तालें हुई। सरकारी कार्यालयों और व्यापारिक फर्मों के कर्मचारियों ने भी ट्रेड यूनियनें बनायीं और हड़तालें आयोजित की। भारत में बम्बई सूती कपड़ा मिलों का सबसे बड़ा केन्द्र था। इनमें से अधिकांश मिलें भारतीय पूँजीपतियों द्वारा स्थापित की गयी थीं। 1924 में बम्बई में 150,000 श्रमिकों की एक बड़ी हड़ताल हुई | हड़ताल का मुख्य कारण मजदूरों को पिछले चार वर्षों से मिलने वाला बोनस इस वर्ष नहीं दिया जाना था। 1926 में एन. एम. जोशी की अध्यक्षता में 'टैक्सटाइल लेबर यूनियन' की स्थापना की गयी। अप्रैल 1928 में बम्बई में एक आम हड़ताल हुई। अधिकांश मिलों के श्रमिकों ने इस हड़ताल में भाग लिया। जब सरकार ने श्रमिकों की माँगों पर विचार करने के लिए एक समिति नियुक्त की तब 9 अक्टूबर को हड़ताल समाप्त हो गयी। इस प्रकार हड़ताल ने सरकार को श्रमिकों और मालिकों के बीच हुए झगड़े में हस्तक्षेप करने के लिए बाध्य किया।

बंगाल की जूट मिलों पर अंग्रेज पूँजीपतियों का अधिकार था। यह बंगाल का सबसे बड़ा उद्योग था। बंगाल में 1921-29 के दौरान 592 औद्योगिक विवाद हुए। इनमें से 236 जूट मिलों में हुए। 1928 में हावड़ा जिले के बाउरिया में फोर्ट ग्लोस्टर मिल के श्रमिकों ने हड़ताल कर दी। यह हड़ताल बहुत महत्वपूर्ण थी, क्योंकि यह 17 जुलाई से 31 दिसम्बर तक यानी लगभग 6 महीने चली।

जुलाई 1929 में जूट मिलों में एक आम हड़ताल हुई। बंगाल कांग्रेस ने हड़ताल के प्रति सहानुभूति दिखायी। सरकार ने हस्तक्षेप किया और 16 अगस्त को हड़ताल समाप्त हो गयी। जमशेद जी टाटा ने भारत में जमशेदपुर में पहली आधुनिक स्टील फैक्टरी स्थापित की। लगभग 20 हजार श्रमिक इस फैक्टरी में काम करते थे। 1920 में श्रमिकों ने “लेबर एसोसिएशन" की स्थापना की। बड़ी संख्या में श्रमिकों के निकाले जाने के विरोध में टाटा स्टील फैक्टरी के श्रमिकों ने 1928 में एक आम हड़ताल की। यह हड़ताल 6 महीने से ज्यादा चलीं। यद्यपि हड़ताल पूरी तरह सफल नहीं थी परन्तु मालिकों ने “लेबर एसोसिएशन' को मान्यता दे दी।

इस काल के दौरान अहमदाबाद में मिल मालिकों द्वारा मजदूरी में 20 प्रतिशत कटौती किए जाने के विरोध में 64 कपड़ा मिलों में से 56 में आम हड़ताल हुई। मद्रास शहर भी ट्रेड यूनियन आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था। मद्रास में 1923 में सिंगारावेलू ने पहला “मई दिवस” मनाया।

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