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सूफी प्रेमाख्यानक काव्य परंपरा का परिचय दीजिए।

सूफी प्रेमाख्यानक काव्य-परम्परा-सूफी काव्यधारा का अध्ययन-मनन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसकी परम्परा इसका काव्यधारा के सशक्त और सर्वप्रधान महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा शुरू हुई | उनका सर्वोत्कृष्ट महाग्रन्थ 'पद्मावत' इस काव्य-परम्परा की सर्वोच्च कृत्ति है । यह इसलिए कि इसमें इस काव्य-परम्परा की सभी विशेषताएं मौजूद हैं । यों तो जायसी से पहले इस काव्य की परम्परा आरंभ हुई थी | इसके विषय में जायसी ने लिखा भी है-

“विक्रम धसा ग्रेम के वाय । सयनावति कह गयर्ऊँ पतारा ।।

मधूपाछ मूगुधावति लागी । गगनपूर होड़गा बैरगी ।।

राजकुँवर कचन्‌पुर गयऊ ॥ मिसर्गावति कहँ जोगी भयऊ ॥1।

साधु कुवर खंडराबत जोगू । मधुमालति कर कीन्‍न्ह वियोगू ।।

प्रेमावति कहेँ छुरसरि साधा । ऊषा लागि अनिर॒ुध बर बाँधा ।।”

इस्लाम धर्म में प्रेम की अपेक्षा उपासना की प्रधानता मानी जाती है, किन्तु इस्लाम में एक ऐसे दल का उदय हुआ, जिसने अल्लाह की प्राप्ति के लिए इश्क (प्रेम) को अनिवार्य तत्त्व माना । उन्होंने सम्पूर्ण जगत को ब्रह्ममय माना ।

सूफी मत में कुरान के द्वारा बताया गया परमात्मा का रूप ही स्वीकार किया गया है, किन्तु उन्होंने परमात्मा की व्याख्या अपने ढंग से की है । इस्लाम की तरह से सन्त भी एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे, किन्तु इनका एकेश्वरवाद कुरान के एकेश्वरवाद से कुछ भिन्न है | कुरान में भगवान्‌ को इस संसार से भिन्‍न माना गया है, जबकि सूफी कवि भगवान्‌ को इस संसार में व्यापक मानते हैं | सूफी कवि परमात्मा को सर्वव्यापक मानते हैं, किन्तु उसके दर्शन तो केवल सच्चा साधक ही कर सकता है ।

सूफी मत के अनुसार ईश्वर एक है और उसका नाम 'हक' है | वे मानते हैं कि आत्मा और परमात्मा एक हैं, किन्तु उन दोनों के बीच एक बाधा है | इस बाधा का दूर करने के लिए साधना की आवश्यकता पड़ती है | सूफी इस साधनापूर्ण जीवन को एक यात्रा मानते हैं । उन्होंने अपने इन्हीं विचारों को अपनी कविता में भी स्थान दिया | उन सूफी कवियों ने भगवान्‌ को एक प्रेमिका का रूप दिया है, जिसे प्राप्त करने के लिए पुरुष (साधक) को साधना (तपस्या) करनी पड़ती है ।

सूफी काव्यों में नायिक ब्रह्म का प्रतीक है तथा नायक साधक का प्रतीक है । रहस्यमय संकेत और अलौकिक सत्ता का परिचय देने के लिए इन कवियों ने प्रतीकों का आश्रय लिया है | कुछ विद्वान्‌ तो सम्पूर्ण पद्मावत महाकाव्य को ही प्रतीक-काव्य मानते हैं । 'तन चितठर मन राउर कीन्हा' से यह बात सिद्ध भी होती है | सिद्धों और नाथों ने उच्च आध्यात्मिक अभिव्यक्ति के लिए प्रतीकों और रूपकों का सहारा लिया था । सूफियों ने भी प्रतीकों को अपनी अभिव्यक्ति का साधन बनाया है | सूर्य, चन्द्रमा, हँस, गोरखपुर आदि प्रतीकों का इन काब्यों में भरपूर प्रयोग किया गया है । मधुमालती में नायक मनोहर तथा नायिका मधुमालती भी प्रतीक हैं | कवि ने जीवात्मा और परमात्मा के शाश्वत्‌ संबंध को नायक-नायिका के घनिष्ठ सम्बन्ध द्वारा प्रकट किया है- 

तो में दुवों सदा संघ कासी। ओ संतत एक देह निवासी ।

तो में तुड़ दुढ़ एक तरीका। ठुड़ माटी सानी एक नीया।।

एक बारी डुड्ड बहे पनारी। एक दिया ठुड्ड घर उजियारी ।

एक जीउ डुड़् घर संचारा। एक भगिनि ठुड्ड ठार्स बाया।।

सूफी मत में साधना के सात सोपान हैं-अनुपात, आत्म-संयम, वैराग्य, दारिद्रय, धर्य, विश्वास, सन्‍्तोष और प्रेम | सूफी सन्त ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रेम की भावना को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं । सूफी सन्‍्तों के अनुसार ईश्वर सत्तर हजार पर्दों के पीछे रहता है । इतने आवरण हटाता हुआ मनुष्य प्रकाश की ओर बढ़ता है । सात सोपानों के अलावा सूफी साधना के चार मुकाम या पड़ाव भी मानते हैं । पहला मुकाम मारफत है, जहाँ अनुभूति से ईश्वर की उपलब्धि होती है | दूसरा मुकाम प्रेम का उदय, तीसरा समाधि और चौथा आत्मा-परमात्मा का अभेद होना ।

सूफी मत के अनुसार इश्क मजाजी (लौकिक प्रेम), ईश्क हकीकी (ईश्वरीय प्रेम) के रास्ते का पड़ाव है । सूफी साधक ईश्वर की कल्पना पत्नी रूप में करता है | वह स्वयं को उसका प्रेमी मानता है | सूफी कवियों में जायसी, कुतुबन, मंझन तथा उसमान आदि कवियों का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ।

मुल्ला दाऊद द्वारा रचित चन्दायन' प्रथम उपलबध सूफी-काव्य है | दूसरा महत्त्वपूर्ण उपलब्ध ग्रन्थ 'मृगावती” है । इसके रचियता शेख कुतुबन हैं । जायसी रचित 'पद्मावत” सूफी काव्य परम्परा का जगमगाता हुआ सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रन्थ है । मंझन की मधुमालती, उसमान रचित चित्रावली, कवि जान द्वारा रचित रत्नावली, नूर मुहम्मद द्वारा रचित अनुराग बांसुरी और सुप्रसिद्ध प्रेमाख्यानक काव्य हैं ।

सूफी कवियों ने लौकिक प्रेम-कथाओं को काव्यात्मक रूप प्रदान कर उनमें प्रेम तत्त्व का निरूपण किया । सभी प्रेम-काव्यों में कहानियाँ एक ही प्रकार की हैं। सभी में अनेक अतिमानवीय घटनाओं का वर्णन है । इन प्रेम-काव्यों में वस्तु और घटना का अपेक्षित प्रवाह नहीं है। इन प्रबन्ध-काव्यों में घटनाओं की क्रम-योजना भी मिलती-जुलती है । मंगलाचरण, ईश्वर स्तुति, पैगम्बर नमस्कार, शहंशाह की प्रशस्ति, गुरु महिमा, वंश परिचय, रचना काल आदि क्रम सभी काव्यों में हैं । मृगावती, मधुमालती, पद्मावत, चित्रावली इत्यादि सभी सूफी काव्य प्रबन्ध काव्य हैं तथा इनमें वर्णित घटनाएं काफी मिलती-जुलती हैं ।

सूफी प्रेमाख्यान काव्यों का आधार हिन्दी जीवन में प्रचलित प्रेम कथाएं रही हैं । अपने सिद्धान्तों को लोक-जीवन से गहरे जोड़ने के उद्देश्य से सूफी कवियों ने हिन्दुओं की प्रेम कथाओं को ही अपने काव्य का विषय बनाया । कुछ लोगों का विचार है कि सूफी कवि हिन्दू कथाओं को काव्य का आध्प र बनाकर परोक्ष रूप से इस्लाम का प्रचार करना चाहते थे । यह आक्षेप किसी सीमा तक सत्य भी सिद्ध हो सकता है, लेकिन यह भी निर्विवाद है कि इस पद्धति से उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया ।

सभी सूफी कवियों ने हिन्दू जीवन की प्रचलित लोक कथाओं को ही अपने काव्य का आधार बनाया है अतः उनके काब्य में हिन्दू-जीवन में प्रचलित अंधविश्वासों और मान्यताओं को ज्यों का त्यों चित्रित किया गया है | लोक-व्यवहार, उत्सव, तीर्थ, व्रत, मंत्र-तंत्र, विवाह, जादू-टोना, रहन-सहन आदि सभी की स्पष्ट झांकी सूफी काव्य में मिलती है ।

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