'सेंसरशिप' शब्द की उत्पत्ति, 443 बीसी में रोम में स्थापित सेंसर कार्यालय से हुई। इसके द्वारा नैतिकता को नियंत्रित करने और अनुष्ठानिक रूप से लोगों को शुद्ध करने का मकसद था। इस कार्यालय से 'नियंत्रण' शब्द आधुनिक रूप से परिभाषित हुआ, जिसने सार्वजनिक कृत्यों, विचारों की अभिव्यक्तियों और कलात्मक प्रदर्शनों को परखने, प्रतिबंधित और निषेध करने का कार्य किया। नियंत्रण को आज के समय में सामान्यतः एक अशिक्षित और अधिकाधिक दमनकारी दौर के अवशेष के रूप में माना जाता है। समाज के अन्तर्गत प्रसारित विचारों, सार्वजनिक संचार व सूचनाओं के माध्यमों का दमन या अकंश, नियंत्र (सेंसरशिप) कहलाता है। रितु मेनन का तर्क हैं, कि नियंत्रण" तब होता जब एक ऐसा विचार व्यक्त करने वाली कला, जो वर्तमान मान्यताओं के तहत नहीं आती है, उसे जब्त कर लिया जाता है, उसमें कटौती या उसे वापस लिया जाता है या अनदेखा या बदनाम किया जाता हैं अथवा दर्शकों की पहुंच से दूर कर दिया जाता है। नियंत्रण एक ऐसा तरीका हैं जिसका उपयोग राज्य या समाज सांस्कृतिक क्षेत्र में छल-कपट के माध्यम से अपनी सत्ता शक्ति को बनाए रखने के लिए करता है। समाज में 'क्या स्वीकार्य है', इसका निर्णय लेने में सांस्कृतिक क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। क्योंकि सांस्कृतिक आधिपत्य कुछ शब्दों या कृत्यों को सभ्य और अन्य को असभ्य घोषित करता है और आगे चलकर इसके अर्थ व विचार को नियंत्रित करता है। सांस्कृतिक समझ के अतिरिक्त धर्म तानाशाही और बाजार जैसे कई अन्य स्रोत भी "नियंत्रण हेतु उपयोग हो सकते हैं। सर्वप्रथम, धार्मिक नेतृत्व के द्वारा नियंत्रण का इस्तेमाल किया गया। प्रारंभ में, सभी कला और साहित्यिक कार्यों को धार्मिक विचारों ने काफी प्रभावित किया गया था तथा अच्छा और स्वीकार्य" जैसे शब्द उन कार्यों के साथ जुड़े हुए थे, जो मौजूदा यथास्थिति की सराहना करते थे। जबकि जो लोग जिरह करते थे, उन्हें "'ईशनिंदक, अश्लील और तर्कहीन” माना जाता था।
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