कार्ल मार्क्स ने समाज की संरचना को -उसके विभिन्न वर्गों के लेंस और उनके बीच संघर्ष के माध्यम से देखा। इस प्रकार से वर्ग, मार्क्स की सामाजिक समझ का एक अभिन्न अंग बन गया और उनके लिए संरचना -समाज के विभिन्न वर्गों के बीच, संघर्ष की व्युत्पत्ति और साथ ही घटक, दोनों बन गई। इसलिए उन्होंने, समाज के बारे में एक संघर्षपूर्ण दृष्टिकोण रखा। इस दृष्टिकोण को समझने में जो हमारी मदद करता है वह है मूल मार्क्सवादी अवधारणा -वर्ग के बारे में उनका विचार। मार्क्स ने पूंजीवाद पर अपनी चर्चा की पृष्ठभूमि में वर्ग को परिभाषित किया है। उनके अनुसार वर्ग, उन संबंधों से परिभाषित होता है जो संपत्ति के स्वामित्व या उत्पादन के साधनों के होने या न होने के गुण से विकसित होते हैं। जहाँ एक वर्ग के पास उत्पादन के साधन हैं तो दूसरे के पास नहीं है। मार्क्स के अनुसार पूंजीवाद के अर्न्तगत, पूर्व -औद्योगिक समाजों की तुलना में, ऐसा आर्थिक आधार -सामाजिक संबंधों को अधिक उपयुक्त रूप से आकार प्रदान करता है। ऐसे समाजों में सामाजिक समूह भी होते थे जिन्हें वर्गों के रूप में वर्गकृत किया जा सकता था और भले ही उनमे अंतर की प्रकृति विशुद्ध रूप से आर्थिक नहीं थी परन्तु वे अपने व्यवसाय -शूरवीर, पुजारी या सैन्य अभिजात वर्ग, आदि के कारण भी कुलीन हो सकते हैं|
वर्ग की, मार्क्सवादी परिभाषा तीन बुनियादी विशेषताओं का एक समूह है - समूह आधारित, उत्पादन के साधन और संघर्ष।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box