वैश्विक इस्लामी समुदाय, ग्रिल्लत या उम्फ की अल्लामा इकबाल की वकालत, राष्ट्रवाद की उनकी व्यापक आलोचना से प्रेरित थी। राष्ट्रवाद का विचार, जिसमें मनुष्य राजनीतिक रूप से खुद को भाषा, प्षेत्र, इतिहास या नस्ल के आधार पर राष्ट्रों में संगठित करता है, 17वीं शताब्दी में यूरोप में विकसित हुआ। राष्ट्रवाद के विचार से पहले, मनुष्य विभिन्न स्थानीय समुदायों (जाति, जनजाति, क्षेत्र या पेशे) के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदायों (धर्मों के मामले में इस्लाम या ईसाई धर्म जैसे) के चारों ओर रांगठित थे लेकिन राजनीतिक रूप रो ऐरो राग्राज्य हुआ करते थे जिनकी शासन व्यवस्था समय के साथ, आक्रमणों, क्रांतियों आदि के साथ बदलती रहती थी। लोगों की निष्ठा और पहचान की भावना एक राजनीतिक समुदाय से संबंधित होने के बजाय एक धर्म, एक जाति, एक पंथ, एक भाषा, एक क्षेत्र या पेशे से अधिक उठी। उदाहरण के लिए, औपनिवेशिक शासन से पहले, 'मारतीय' केवल एक वर्णनात्मक शब्द था जो भारतीय उपमहाद्वीप से संबंधित लोगों, जो विभिन्न धर्मों, भाषाओं, राजनीतिक साम्राज्यों में विभाजित थे, को संदर्भित करता था न कि राजनीतिक रूप से संगठित राष्ट्र-राज्य को। भारतीय पहचान से किसी एक देश के प्रति देशभक्ति या प्रेम की भावना पैदा करने की उम्मीद नहीं की गई थी क्योंकि कुछ भी अस्तित्व में नहीं था।
राष्ट्रगाद को, इकबाल, एक विदेशी अवधारणा बताते है। यह एक ऐसा विचार है जो पश्चिम में पैदा हुआ और फिर यूरोप द्वारा उपनिवेशवाद और आर्थिक प्रभुत्व के माध्यम से पूर्व पर थोपा गया। वर्तमान में, एशिया के लोगों से, यह अपेक्षा की जाती थी कि वे स्वयं को राष्ट्रीयताओं के आधार पर संगठित करें। इसके अलावा, लोगों से देशभक्ति की भावना महसूस करने और अपने राष्ट्र-राज्यों, राजनीतिक समुदाय से प्यार करने और स्वयं को अन्य राष्ट्रीयवाओं से हटकर दिखाने की उम्मीद की गई थी। एक बार, राष्ट्र-राज्यों के राजनीतिक समुदाय में व्यक्त, राष्ट्रीयताओं में गठित होने के बाद लोगों से अपेक्षा की जाती शी कि वे अपने राष्ट्र-राज्यों पर गर्व महसूस करें और अपने राष्ट्रों के विकास के संदर्भ में सोचें। परिभाषा के अनुसार, भाषा या इतिहास के आधार पर राष्ट्र और राष्ट्रीयताएं विशिष्ठ पहचान थीं। इकबाल ने राष्ट्रवाद को इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में देखा। जबकि इस्लामी समुदाय ने नस्ल, संपत्ति, जाति, भाषा और क्षेत्र के क्मिदों से परे सार्वभौमिक भाईचारे के आधार की पेशकश की परन्तु राष्ट्रवाद ने लोगों को विभाजित किया और एक दूसरे को प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखने का कारण बना। एशियाई लोगों पर विचारधारा की बढ़ती पकड़ ने एक अखिल-इस्लामिक समुदाय के विचार को खतरे में डाल दिया जिसने लोगों को, उनके विश्वास और आध्यात्मिक विकास के लिए, सार्वजनिक खोज के आधार पर एकजुट करने की मांग की। राष्ट्रवाद ने धर्म को निजी दायरे में ले लिया जबकि इस्लाम ने इस बात की वकालत की कि धर्म केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत विश्वास का मामला नहीं है बल्कि समाज को धार्मिक सिद्धांतों के साथ संगठित किया जाना चाहिए। इकबाल को डर था कि धर्म को निजी दायरे में लाकर राष्ट्रवाद ने, अंततः, सार्वजनिक जीवन में नास्तिकता को प्राथमिकता दी। उन्होंने नास्तिक राष्ट्रवाद के उदय के गंभीर परिणाम के रूप में यूरोप में ईसाई धर्म के पतन की ओर इशारा किया।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box