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कॉलरिज के प्रमुख सिद्धांतों की चर्चा कीजिए।

 सेमुअल टेलर कोलरिज (1772-1834) वईसवर्थ के साथ स्वच्छेदतावादी आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में प्रसिध्द हैं। कोलरिज कवि के साथ ही दर्शन और मनोविज्ञान के ज्ञाता भी थे। साहित्य समीक्षा को दर्शन और मनोविज्ञान से जोड़कर कोलरिज ने नई समीक्षा प्रणाली विकसित की। उनकी सर्वाधिक चर्चित कृति "बायोग्राफिक लिटरेरिया" 1817 में प्रकाशित हुई जिनमें काव्य सृजन-प्रक्रिया तथा कवि-प्रतिभा की गहन व्याख्या और कल्पना सिध्दांत का प्रतिपादन किया गया। उनका कल्पना-सिध्दांत पश्चिमी काव्यशास्त्र में आज भी मील का पत्थर है।'सेंट्सबरी' ने आलोचक के क्षेत्र में अरस्तू, लॉगिनुस के बाद तीसरा स्थान मानते है। विलियम वईडसवर्थ कोलरिज के मित्र थे।अत: दोनों ने मिलकर "लिरिकल बैलेड्स" में अपनी कविताओं का प्रकाशन किया। कोलरिज अभिजात वर्ग की भाषा बनाने के पक्षधर थे जबकि वर्डसवथ ग्राम जीवन (अशिक्षित जनता) के तथा दोनों में मतभेद हो गया। कोलरिज कविता की परिभाषा देते है-"कविता सर्वोत्तम शब्दों का सर्वोत्तम क्रम विधान है। और गध शब्दों का सर्वोत्तम क्रम-विधान है। अत: वे गध और कविता में अन्तर मानते है। कविता का मूल प्रयोजन आनंद हैं इसको नहीं मानते वे काव्य-रचना को भावों का सहज उच्छलन के बदले कला को मानते है। और जैव सिध्दांत से जोड़ते उनका कहना है कि संपूर्ण कविता से मिलने वाला आनंद उसके प्रत्येक खंड या अवयव से भी मिलना चाहिए। सच्ची कविता वही है जिससे विविध भाग परस्पर अनुपात में छन्‍दोविधान के साथ समंजित हों तथा उसके उद्देश्य एवं ज्ञात प्रभावों का उन्नयन करें। कोलरिज ने सर्प का उदाहरण दिए-जिस प्रकार सर्प हर कदम पर रूककर, आधा पीछे को चलकर उस प्रतिवर्ती गति से पुन: आगे चलने की शक्ति संचय करता है, उसी प्रकार पाठक को हर श्लोक पर रूककर उसका रसास्वादन ग्रहण करना चाहिए, उससे आगे पढ़ने की प्रेरणा पानी चाहिए। जो कविता पाठक को घोड़े की तरह सरपट भगाए, वह उत्तम नहीं कही जा सकती। कोलरिज का कहना है कि व्यंजना की महिमा के कारण ही कोई उत्तम काव्य बार-बार पढ़ने पर भी नीरस नहीं लगता क्योंकि उससे हर बार नयी छटा की, नये सौंदर्य की प्रतीति होती रहती है। कोलरिज अच्छे कवि के गुण के लिए विचार की गंभीरता तथा ऊजजैस्विता होनी चाहिए अर्थात्‌ कोई भी व्यक्ति बिना गंभीर दार्शनिक हुए महान कवि नहीं हो सकता। कोलरिज से पूर्व कल्पना तथा ललित कल्पना को एक माना जाता था। पर कोलरिज ने उन दोनों को भिन्‍न माना है।

कल्पना सिध्दांत-कोलरिज की स्थापनाओं में कल्पना का विशेष महत्व है। कोलरिज से पूर्व कल्पना के बिषय में अनेक तरह की असंगत धारणाएँ प्रचलित थीं। इनमें एक प्रमुख धारणा यह कि कल्पना प्रकृति का वरदान या दिव्य रहस्यमयी शक्ति है, इसलिए इसकी व्याख्या तर्क के आधार पर नहीं की जा सकती। लेकिन कोलरिज ने कल्पना पर तर्कसंगत ठंग से विचार किया और कहा यह बेशक दिव्य शक्ति हो सकती है, कितु रहस्यमय नहीं उनका काव्य-सर्जन का मूलाधार ही कल्पना है। 'फैंसी' शब्द ग्रीक शब्द के 'फांतासिया और 'इमैजिनेशन' शब्द लैटिन के इमाजिनातियो से बना है। फैंसी शब्द हिन्दी में रम्यकल्पना (ललित कल्पना) तथा इमैजिनेशन के लिए कल्पना शब्द आया है। कोलरिज ने कल्पना के दो भेद माने हैं- 1) मुख्य 2) गौण । मुख्य कल्पना वह शक्ति है। जिसके द्वारा इन्द्रियगोचर पदार्थों का बोध होता है। हमारी आंखों के सामने न जाने कितनी वस्तुएं लगातार आती रहती हैं- मकान, सड़क, पेड़, नदी, पक्षी आदि। इन सब अव्यवस्थित बिखरे बिम्बों को व्यवस्थित कर ज्ञान कराती है। यह एक जीवित एवं महत्वपूर्ण शक्ति है, जिससे हमें मानवीय पदार्थों का बोध होता है। यदि वह वैसा न करे तो लौंकिक कार्यकलाप ठप्प पड़ जाये। यह वास्तव में एक सहज एवं स्वाभाविक मानवीय गुण है। गौण कल्पना विशिष्ट लोगों में पायी जाती है। यह एक आत्मिक उर्जा है जिसमें मन:शकक्‍्ति, ज्ञान शक्ति, विचार शक्ति, मनोवेग आदि समाहित रहते है। सजीवता एवं क्रियाशीलता में गौण कल्पना मुख्य कल्पना के समान ही होती है; वह भी ऐंद्रिय संवेदना को दूर कर व्यवस्था लाती है, किन्तु दोनों में अन्तर है, जहाँ मुख्य कल्पना का काम सहज भाव से, अनजाने ढ़ग से चलता रहता है, वहां गौण कल्पना का काम ज्ञानपूर्वक, ईच्छापूर्वक होता है। जैसे कोई चित्रकार चित्र तैयार करता है तो उसे कल्पना का सहारा लेना पड़ता है।तब गौण कल्पना बाहय जगत से प्राप्त ऐंद्रिय संवेदनों को नये रूप में ढालकर उन्हें नयी आकृति प्रदान करती है ओर रमणीयता का आवरण चढ्ाकर उसे मोहक बना देती है। अत: मुख्य कल्पना ओर गौण कल्पना कुछ अन्तर इस प्रकार है- 1) मुख्य कल्पना के अस्तित्व पर ही गौण कल्पना आश्रित है। कोलरिज ने गौण कल्पना को मुख्य कल्पना का प्रतिध्वनि कहा है। 2) मुख्य कल्पना अचेतन (अनैच्छिक) रूप में जबकि गौण कल्पना चेतन (ऐच्छिक) रूप में होती है। तात्पर्य मुख्य कल्पना हमारे चाहे और बिना जाने काम करती रहती है जबकि गाौण कल्पना हमारे चाहने पर ही काम करती है। 3) मुख्य कल्पना केवल निर्माण (संघटन) का काम करती है।जबकि गौण कल्पना विनाश (विघटन) का कार्य करती है।

रम्य कल्पना (ललित कल्पना)--रम्य कल्पना को कोलरिज स्मृति का ही प्रतिरूप मानता है। लेकिन सामान्य स्मृति और रम्यकल्पना में कुछ भेद है, जहाँ स्मृति देश-काल के बंधन में रहती है, वही रम्यकल्पना देश-काल से म॒कक्‍त तथा इच्छाशक्ति के दवारा संचालित एवं रूपांतरित होती है। और उसकी उपयोज्य सामग्री स्थिर तथा सुनिश्चित होती है। जैसे बिहारी का दोहा -

'चममचात चंचल नयन बिच घूघंट पट झीन।

'मानहू सुरसरिता विमत्न जल उछरत जुग मीन।।

बिहारी ने निर्मल जल में कभी मछल्रियों को उछलते देखा होगा। जो स्मृति में संचित कविता रचते समय वह दृश्य उनके मानस-पटल पर एकाएक उभर आया होगा प्रस्तुत दोहे में घूघंट पट के भीतर ,नायिका की चमचमाती चंचल आंखों की शोभा को मूर्त रूप देने के लिए ,जब वह उसे बिंब के रूप में प्रयुक्त करता है। तो वह समय वह स्मृति देश-काल के बंधन से मुक्त हो जाती है। अत: कल्पना और रम्यकल्पना में कुछ अन्तर इस प्रकार है- 1) मुख्य कल्पना और गौण कल्पना का अंतर केवल मात्रात्मक होती है जबकि कल्पना और रम्यकल्पना का अंतर मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों होती है। अत: रम्यकल्पना बिंबों को केवल पास-पास रख देती है, उनमें कोई परिवर्तन नहीं करती, किन्तु कल्पना उन्हें विघटित, विगल्ित कर बिलकुल नये रूप में ढाल देती है। 2) कल्पना बिंबों में आंतरिक सामंजस्य और एकरूपता लाती है।जबकि रम्यकल्पना केवल निश्चित वस्तुओं में एकत्र का कार्य करती है। 3) कल्पना प्रत्यक्ष रूप में ग्रहण करती है जबकि रम्यकल्पना स्मृति रूप में ग्रहण करती है। अत: कल्पना का सम्बन्ध आत्मा और मन से है। और ललित कल्पना का मस्तिष्क से। ४) कल्पना का कार्यपच्दित जैव हैं कितु रम्यकल्पना का यांत्रिक है। 4) कल्पना प्रतिभा की उपज है; रम्यकल्पना प्रज्ञा की।

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