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खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, बनिकको बनिज, न चाकरकों चाकरी। जीविका विहीन लोग सीद्यमान सोच बस, कहें एक एकन सों “कहाँ जाई, का करी?'

 खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिकको बनिज, न चाकरकों चाकरी।
जीविका विहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहें एक एकन सों “कहाँ जाई, का करी?'
बेदहूँ पुरान कही, लोकहँ बिलोकिअत,
साँकरे सबे पै, राम! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंध!
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।

प्रसंग-अपने युग की दयनीय दशा का वर्णन कर, रक्षा के लिए भगवान श्रीराम से प्रार्थना करते हुए, गोस्वामी तुलसीदास कह रहे हैं-

व्याख्या-हे भगवान राम! आज आपके रचे संसार की कितनी बुरी दशा हो रही है। किसानों के पास खेती-बाड़ी नहीं रह गई है। आज बेचारे भिखारियों को कहीं भीख तक भी प्राप्त नहीं होती! में आप पर बलिहारी राम! तनिक दुर्दशा का हाल तो देखिए-सुनिए! व्यापारियों के पास करने को व्यापार नहीं रह गए और नौकरी पाने के इच्छुकों को कहीं नोकरी तक नहीं मिल पाती। इस प्रकार जीवन तुम्हीं बताओ कि में कहाँ जाऊँ और क्‍या करूँ कि जीवन चेन से बीत सके। वेद-पुराण तो यह कहते ही हैं, आज लोक जीवन और लोक व्यवहार में भी यही सब अनुभव किया जा रहा है। संसार के सभी लोगों पर संकट मंडरा रहा है। आपने सदा संकट के समय हमारी रक्षा की है। अतः हे राम! आज भी कृपा कर हमारी रक्षा करो, संकटों से मुक्त करो। हे दीनबंधु राम! दरिद्रता रूपी रावण ने आपके भक्तों को दबा रखा हे, यातनाएं दे रहा है। चारों ओर पाप, अनाचार और अनीति की ज्वाला धधक रही है। उसे देखकर मेरा हृदय हाहाकार कर रहा है। मेरी इस कातर पुकार को सुनकर अपनी अनुकंपा से संसार को पीड़ामुक्त करो, रक्षा करो।

विशेष-1. कवि ने समकालीन युग की विषम सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की झलक दिखाई हे।

2. कवि का भविष्यद्रष्टा रूप स्पष्ट हे।

3. अन्तिम पंक्ति में रूपक अलंकार हे।

4. भाषा में माधुर्य और प्रसाद गुण हें।

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