शायद न्याय हेतु सबसे अच्छा दृष्टिकोण इसे एक सामंजस्य-संबंधी शब्द के रूप में देखना है। न्याय की समस्या सुलह-संबंधी समस्या है। न्याय का कार्य विभिन्न स्वतंत्रताओं (राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक) का एक दूसरे के साथ तुष्टिकरण; विभिन्न समानताओं (राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक) का एक-दूसरे के साथ और सामान्यतः स्वतंत्रता का उसके सभी रूपों में, मिलाप कराने का काम ही है। संक्षेप में, न्याय का अर्थ है विवादग्रस्त मूल्यों का सामंजस्य और उनको एक साथ किसी साम्यावस्था में रखना।
अनेक जाने-माने लेखकगण स्वतंत्रता बनाम समानता का पक्ष लेना पसंद करते हैं। लॉर्डऐक्टन कई साल पहले ही यह स्मरणीय उद्घोषणा कर चुके थे कि “समानता हेतु सनकने स्वतंत्रता की आशा को व्यर्थ कर दिया है” (वह फ्रांसीसी क्रांति के संदर्भ में बोल रहे थे)। "सिर्फ स्वतंत्रता” के हिमायतियों, उदाहरणार्थ डब्ल्यु. ई. लकी अपनी पुस्तक डिगोक्रेसी एण्ड लिबर्टी में, का दावा है कि “समानता केवल स्वाभाविक विकास के एक कठोर दमन के द्वारा ही मिलती है।”
दरअसल, स्वतंत्रता और समानता दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं, जैसा कि कैरिट का कथन है, दोनों ही एक-दूसरे के लिए आवश्यक हैं। यदि समानता है, तो स्वतंत्रता ज्यादा संतोष प्रदान करेगी। और, साथ ही, यह स्वतंत्रता ही है जो व्यक्ति को समानता की माँग करने के योग्य बनाती है। आदमी को आज़ादी दो और वह अभी, नहीं तो बाद में, समानता की माँग करेगा। स्वतंत्रता व समानता के बीच अन्तर्सबंध पर अनेक तरीकों से प्रकाश डाला जा सकता है। बोलने और वोट देने की स्वतंत्रता का ही उदाहरण ले लें, ये दोनों ही धन-संपत्ति के भारी असमान वितरण द्वारा निष्प्रभ किए जा सकते हैं। धनी जन न सिर्फ प्रतिस्पर्धा करने बल्किप्रचार करने हेतु भी एक बेहतर स्थिति में होते हैं। उनके पास प्रचार माध्यमों तक अपेक्षाकृत आसान पहुँच होती है। हैरॉल्ड लास्की के शब्द आज भी सत्य लगते हैं : “असमानों के समाज में अपनी स्वतंत्रता का दावा करने वाले व्यक्ति के हर प्रयास को ताकतवरों द्वारा चुनौती दी जायेगी।” संक्षिप्त में, हम पाते हैं कि राजनीतिक स्वतंत्रता एवं आर्थिक लोकतंत्र को कन्धे से कन्धा मिलाकर चलना पड़ता है। और, यदि विभिन्न राजनीतिक मूल्यों पर सूक्ष्मदृष्टि डालें, तो पायेंगे कि यद्यपि ऊपरी तौर से वे परस्पर विरोधी हो सकती हैं, ध्यापूर्वक न्याय देखे जाने पर वे संपूरक एवं अन्तर्सम्बद्ध पायी जाएँगी। बहरहाल, यह न्याय का काम है कि विविध एवं प्रायः-विरोधी मूल्यों के बीच संयोजन या सामंजस्य स्थापित करे। न्याय ही अन्तिम सिद्धांत है, जो स्वतंत्रता के साथ-साथ समानता के भी हित में विभिन्न अधिकारों (राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक) के वितरण को नियंत्रित करता है।
न्याय संबंधी इस प्रकार की अवधारणा एक सामाजिक विचार की विकास-प्रक्रिया के रूप में ऐतिहासिक रूप से विकसित होती है। इस अर्थ में यह एक विकासमान अवधारणा है जो समाज की वास्तविकता एवं अभिलाषा को प्रतिबिम्बित करती है।
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