प्रसंग-प्रस्तुत पद जायसी कृत “पद्मावत' के 'सिंहलद्वीप खंड' से लिया गया है। इस खण्ड में राजा रत्नसेन गुरु रूपी तोते से सिंहलगढ़ के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हें।
व्याख्या-राजा ने तोते की बात सुनकर कहा कि मुझे पद्मावती जहाँ भी मिल सकेगी मैं वहीं जा सकता हूं। मैं उसके लिये पर्वत पर ही क्या आकाश में भी विचरण कर सकता हूं। जिस पर्वत पर उसका दर्शन होगा मैं वहाँ सिर केबल पर भी चलने को तैयार हूं। मुझे भी वहाँ जाना अच्छा लगता हे। मैं ऊँचे स्वर से उसका नाम लेकर पुकारता हूं। हर व्यक्ति में साहस होना चाहिये। उसे सदेव ऊपर की ओर ही बढ़ना चाहिए। नीचे पैर करके चलना पुरुष को शोभा नहीं देता। मनुष्य को अपने जीवन में सदैव ऊँचे व्यक्ति की ही सेवा करनी चाहिए, क्योंकि बड़े आदमी की बुद्धि भी बड़ी ही होती है। इसलिए उनकी संगति अच्छी ही हाती है। इसलिये यदि उस व्यक्ति के लिये जान भी देनी पडे तो दे ही देनी चाहिये, जिसकी आकांक्षा ऊपर उठने की होती है, वह प्रतिदिन ऊपर ही बढा जाता है; यदि वह ऊपर चढ़ते-चढ़ते गिर भी पडे तो भी अपनी प्रतिज्ञा से उसे डिगना नहीं चाहिये।
विशेष-यहाँ कवि ने पद्मावती को ब्रह्म का प्रतीक माना है। रत्नसेन जीवात्मक का प्रतीक हे।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)

0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box