1857 के विद्रोह ने भारतीय राजनीति तथा समाज को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
1857 के विद्रोह का भारतीय राजनीति पर प्रभाव-भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया। भारत पर ब्रिटेन के सम्राट तथा संसद का नियंत्रण स्थापित हो गया। बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल तथा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को समाप्त कर दिया गया। ब्रिटेन के सम्राट तथा संसद ने भारतीय प्रशासन पर नजर रखने के लिए एक भारत सचिव की नियुक्ति की। इस सचिव को 15 सदस्यों की एक सभा शासन सम्बन्धी कार्यों में सहायता देती थी। भारत में गर्वनर जनरल के स्थान पर सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी को अब वायसराय कहा जाने लगा।
भारतीय लोगों को यह आश्वासन दिया गया कि उन्हें बिना किसी भेदभाव के ऊँचे पद दिये जायेंगे, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अपने इस वायदे को पूरा नहीं किया। भारतीय शासकों तथा राजाओं को यह विश्वास दिलाया गया कि अब उनकी रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में नहीं मिलाया जायेगा। ब्रिटिश सरकार ने यह भी घोषणा की कि यह देशी राजाओं तथा कंपनी के मध्य हुई सभी सन्धियों का पालन करेगी। इस प्रकार की घोषणाओं से देशी राजाओं में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादारी उत्पन्न की गयी। ब्रिटिश सरकार ने देशी राजाओं को पुत्रहीन होने की स्थिति में दत्तक पुत्र गोद लेने की अनुमति दी।
अंग्रेजी सेना में भारतीय लोगों को शामिल किया गया। अब ब्रिटिश सेना में भारतीय सैनिकों तथा यूरोपीय सैनिकों का अनुपात 2:1 हो गया। सेना के बड़े पर्दों पर अब भी केवल यूरोपीय लोगों को ही रखा गया। तोपखाना भी पूर्णतः अंग्रेजों के ही हाथों में रहा। 1857 के विद्रोह में जिन जातियों ने भाग लिया था, उन्हें ब्रिटिश सेना में बिल्कुल भी भती नहीं किया गया। 1857 के विद्रोह ने भारतीयों के मन के स्वतंत्रता के बीज बो दिये, जिसके फलस्वरूप अनेक राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना की गई। 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने भारतीय लोगों की एकता को तोड़ने के लिए 'फूट डालो तथा राज करो” की नीति का उपयोग किया। 1857 के विद्रोह का भारतीय समाज पर प्रभाव-1857 के विद्रोह का भारतीय समाज पर भी प्रभाव पड़ा। 1857 के
विद्रोह के बाद भारतीय समाज में हिन्दू-मुस्लिम एकता बढ़ी। दोनों धर्मों के लोग एक-दूसरे का सहयोग करने लगे। अंग्रेजों ने भारतीय लोगों की एकता को तोड़ने की जी-जान से कोशिश की तथा वे इसमें सफल भी रहे। इससे साम्प्रदायिकता का जन्म हुआ। अंग्रेजों ने सभी भारतीयों को अधिक सन्देह तथा घृणा से देखना शुरू कर दिया। भारतीय समाज में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए जागृति उत्पन्न हुई।
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