1970 के दशक तक विकास कार्यक्रमों में महिलाओं की आवश्यकताओं को विशेष रूप से उनकी प्रजनन भूमिकाओं के परिप्रेक्ष्य से संबोधित किया गया | नतीजतन, विकास नीतियों में भी ध्यानाकर्षण माता तथा बाल स्वास्थ्य, शिशुपालन व देखभाल तथा खाद्य पोषण पर रहा। तदन्तर, जनसंख्या वृद्धि और गरीबी के बीच संबंध की बढ़ती स्वीकृति के साथ, परिवार नियोजन या जनसंख्या नियंत्रण भी ऐसी नीतियों में प्रमुखता से शामिल होने लगा। यह धारणा थी कि विकास और आधघुनिकीकरण की दिशा में उन्मुख व्यापक आर्थिक रणनीतियां धीरे-धीरे गरीबों तक पहुंचेगी और गरीब महिलाओं को भी लाभ होगा।
लेकिन यह धारणा कि अर्थव्यवस्था में समग्र सुधार के साथ या उनके पति की आर्थिक स्थितियों में वृद्धि के साथ, महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा, अप्रत्यक्ष रूप से इस दृष्टिकोण 137 को नारीवादी समर्थकों द्वारा चुनौती दी गई थी, क्योंकि उन्होंने देखा कि महिलाएं अभी भी अभावों से घिरी हुई हैं। परिणामस्वरूप, महिलाएं पारंपरिक और पिछड़ेपन के साथ जुड़ी हुई थीं, जबकि उनके पुरुष समकक्ष आधुनिकता और प्रगतिशीलता की ओर अग्रसर थे। आर्थिक विकास और कल्याणकारी परियोजनाओं को पुरुषों की सहायता के लिए उनके आधुनिकीकरण परियोजना में लिया गया था, जैसे नई कृषि प्रौद्योगिकियों और दुर्घटना फसलों की शुरूआत, जिसमें से महिलाओं को बाहर रखा गया था।
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