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महादेवी वर्मा के काव्य की प्रमुख विशषताओं को रेखांकित कीजिये।

छायावादी कवियों के काव्य में प्रकृति चित्रण एक प्रमुख विशेषता रही है। आपके काव्य में भी प्रकृति का मर्मस्पर्शी और मनोहारी चित्रण उपस्थित है। आपकी कविताएँ गीतों के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। लय, ताल, गति, तुकबन्दी आदि की उपस्थिति के कारण गेयता का तत्त्व भी आपकी लगभग सभी कविताओं में उपस्थित है। आपके काव्य में बिम्ब और प्रतीकों का भी कुशलतापूर्वक प्रयोग किया गया है। भाषा में तत्सम शब्दों की प्रधानता है लेकिन तत्सम शब्दों की उपस्थिति के बाद भी आपका काव्य जटिल नहीं हुआ है।  आपका काव्य अलंकारों से सुसज्जित है। सबसे अधिक लगाव आपको रूपक अलंकार से है। कुछ लोगों का आरोप है कि आपका काव्य पलायनवादी है लेकिन यदि सूक्ष्म स्तर पर आपके काव्य का अध्ययन किया जाए तो यह कर्मवाद की प्रेरणा देता है।

यदि रस योजना की बात करें तो आपके काव्य में शृंगार रस की उपस्थिति बहुतायत में है। संयोग और वियोग दोनों उपस्थित हैं लेकिन विरह वेदना के कारण वियोग शृंगार की प्रधानता हैं। समग्रतः स्पष्ट है कि आपके काव्य में विरह की वेदना के साथ ही प्रेमानुभूति-वैयक्तिकताचित्रात्मकता-दार्शनिकता-आत्मीयता-संगीतात्मकता-भाव प्रवणता-आत्मनिवेदन-मार्मिकता और भावनात्मक रहस्यवाद जैसे तत्त्व उपस्थित हैं। आपके काव्य में उपस्थित विरह वेदना की गहनता के कारण आपको ‘आधुनिक युग की मीरा’ भी कहा जाता है। छायावादी काव्य एक नई संवेदनशीलता का काव्य था। इस युग के कवि विशिष्ट अर्थ में संवेदनशील थे।

महादेवी वर्मा के संदर्भ में उनका व्यक्तित्व अपनी इंद्रधनुषी आभा लिए उनके काव्य-लोक में उपस्थित होता है। इस प्रसंग में उनका नारी होना उनके पक्ष में जाता है। उन्होंने काव्य रचना को अत्यंत गंभीरता से लिया है। उनकी जीवन-दृष्टि मानवीय गुणों से सम्पृक्त और संवेदनाओं से अनुप्राणित है। उसमें उदात्त और गौरवमय भाव मिलते हैं और समस्त प्राणि-जगत के प्रति उनकी करुणा उमड़ी पड़ती है। आगे के अंशों में हम इन बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे और महादेवी की कविताओं में उनका अवतरण भी देखेंगे। 

छायावादी युग भारतीय नवजागरण का काल था, जहाँ सभी स्तरों पर मुक्ति के लिए संघर्ष सक्रिय था। नारी भी अपनी मुक्ति की खोज में रत थी। महादेवी में मुक्ति की उड़ान स्पष्ट, असीम और अनंत है। उनमें नारी के अभिमानी रूप की अभिव्यंजना हुई है। मुक्ति की आकांक्षा भाषा के स्तर पर भी प्रकट होती है और शिल्प के स्तर पर भी। छायावादी भाव-बोध के लिए गीत आदर्श विधा बनकर आई। महादेवी ने अपने काव्य के लिए गीत विधा को ही चुना। वस्तुतः अपने गीत काव्य में महादेवी वर्मा की काव्य संवेदना का सहज प्रत्यक्षीकरण हुआ है।

अपने युग का अध्यात्म और भौतिकता का द्वंद्व उन्हें रहस्य का आवरण लेने को बाध्य करता है और वह अभिव्यक्ति के स्तर पर प्राय: प्रतीक का सहारा लेती हैं। महादेवी की रहस्य भावना पर हम आगे सविस्तार चर्चा करेंगे। जबकि उनकी प्रतीक योजना पर हम अलग इकाई में प्रकाश डालेंगे। महादेवी की काव्य संवेदना की निर्मिति और विकास में उनके व्यक्तिगत एकाकीपन की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसकी वेदना विभिन्न आयामों में उनके काव्य में प्रकट हुई है। वेदना के विविध रूपों की उपस्थिति उनके काव्य जगत की विशिष्टता है।

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