ज़ाक देरीदा एक फ्रॉसिसी दार्शनिक हैं जो लक्षण-विज्ञान या लाक्षणिकी विश्लेषण (semiotic analysis) के एक रूप को विकसित करने के लिए सुप्रसिद्ध हैं जिसे विखंडन के नाम से जाना जाता है, जिसकी चर्चा इन्होंने अनेक ग्रंथों (texts) में की है और जिसे दृष्य प्रपंच शास्त्र अथवा घटना-क्रिया-विज्ञान- (phenomenology) के संदर्भ में विकसित किया। वे उत्तर-संरचनावाद और उत्तर-आधुनिक दर्शन से जुड़ी प्रमुख हस्तियों में से एक हैं।
विखंडन शब्द का पहला प्रयोग इनके द्वारा अपनी पुस्तक “ऑफ ग्रेम्मेटॉलोजी” में किया गया और इसने अभूतपूर्व तरीके से पाश्चात्य दार्शनिक परम्परा की मान्यताओं को चुनौती दी और साथ ही और व्यापक रूप से पाश्चात्य संस्कृति को दी गई अपनी चुनौती को विखंडन कहा। उन्होंने विखंडन के वास्तविक अर्थ के संबंध में एक स्पष्ट एवं ठोस परिभाषा देने से इनकार कर दिया और अपनी रचनाओं का वर्णन इसे जानने के लिए चल रहे प्रयासों की एक श्रृंखला के रूप में किया। जैसा वे लिखते हैं:
“मेरे सभी निबन्ध इस विकट प्रश्न से निपटने का प्रयास हैं। विखंडन शब्द का प्रयोग उनके अनुयायियों और दूसरों द्वारा उस निश्चित संदर्भ से परे किया गया है जिसमें देरीदा उसका इस्तेमाल करते हैं और तर्क (reasoning) के सभी रूपों के विरूट्स प्रहार के रूप में इसका निरंतर गलत अर्थ लगाया गया है।
देरीदा की रचनाओं का एक गहरा परीक्षण यह प्रदर्शित करता है कि विखंडन (जैसे देरीदा इसका प्रयोग करते हैं) एक सक्रिय आन्दोलन है (एक पद्वति नहीं) जो, अर्थ का उसके बारे में संदेह की सीमा (aporie) तक पीछा करते हुए, उस अपरिवर्तनीय परिवर्तकीयता (irreducible alterity) पर उसकी निर्भरता का प्रदर्शन करना चाहता है, जो पारगमन को और आगे बढ़ाने से इनकार करता है। परन्तु, यह मूलतः संघर्षों चुप्पियों, अन्तर्विरोधों और दरारों का खुलासा करने के लिए ग्रंथों के पठन का दार्शनिक और साहित्यिक विश्लेषण की एक विशेष विधि है।
प्लेटो. हइडेगर, हुर्सेल, नीत्शे, ऑस्टिन, मार्क्स, रूसो, सौस्सूर और फ्रोयड के ग्रंथों के सूक्ष्म पठन द्वारा देरीदा अक्सर एक ऊपरी तौर से उपांतिक या हाशिए की एक टिप्पणीया मूलभाव (motif) को चुनते हैं और उसे अपने वृतांत में केन्द्रीय बना देते हैं, ग्रंथ के आन्तरिक तनावों और अन्तर्विरोधों तथा उन क्षणों को दर्शाते हैं जब वह ग्रंथ स्वयं अपना विखंडन करते हैं, अतः उनका दावा है कि विखंडन की परिभाषा नहीं दी जा सकती और सही अर्थों में वह एक पद्वति ही नहीं है। उदाहरण के लिए, प्लेटो के “फाइड्रस इन डिस्सेमिनेशन” “Phaedrus in Dissemination ) के एक पठन में, देरीदा फार्माकोन (Pharmakon) शब्द के दोहरे और अन्तर्विरोधी अर्थों का अन्वेषण करते हैं,
एक उपचार और एक विष, दोनों के रूप में देरीदा का विखंडन का सिद्धांत एक स्थिर केन्द्र की उपस्थिति, वस्तुनिष्ठता और परम सत्य की पुरानी मान्यता जिसे सामान्यरूप से धारण किया गया है उसके द्वारा जिसे देरीदा “लोगोसेंट्रिज़्म’ (logocentrism) के नाम से पुकारते हैं – पाश्चात्य दर्शन द्वारा सभी ज्ञान के आधार की खोज, एक तर्क, या विवेक या सत्य में जो स्वयंसिद्व और स्वतः प्रभावित है, फोनोसेंट्रिज़्म (Phonocentrism) अर्थात लेखन की तुलना में भाषण या वाणी को प्राथमिकता देना तथा भाषा मूलक संरचनावाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया है जो इन वर्गीकरणों के प्रति भाष्य विज्ञान शैली (hermeneutics) में संदेह का पक्ष लेता है।
देरीदा के लिए विखंडन राजनीति इस विचार से प्रारंभ होती है कि अतीत की तात्विक (metaphysical). ज्ञानमीमांसक (epistemological), नैतिक और तार्किक प्रणालियों (लोगोसेंट्रिज़्म-logocentrism) का निर्माण संकल्पनात्मक विरोधों या (द्विआधारी विरोधों) के आधार पर किया गया था जैसे अनुभवातीत/आनुभविक, आंतरिक/बाहृय, मौलिक/अमौलिक, अच्छाई/बुराई सार्वभौमिक/निजी (universal/personal) तथा ईश्वर/शैतान good/devil) प्रत्येक द्विआधार जोडी के पदानुक्रम (hiererchy) में किसी एक शब्द को प्राथमिकता दी जाती है,
दूसरे को दबाया अथवा अपवर्जित किया जाता है। हाशियाकृत शब्दों (marginalized terms) और उनके अपवर्जन की प्रकृति के विश्लेषण द्वारा विखंडन यह प्रदर्षित करना चाहता है कि एक शब्द के लिए अपने विलोम की तुलना में प्राथमिकता अन्ततः अनुचित है।
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