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प्रतिनिधात्मक लोकतंत्र की क्या सीमाएऐं है? विस्तापूर्वक समझाइए।

लोकतंत्र और प्रतिनिधित्व एक-दूसरे से संबंधित है। लोकतंत्र के अंतर्गत सरकारें प्रतिनिधियों से निर्मित होती हैं, क्योंकि उनको चुना जाता है। यदि चुनाव स्वतंत्रतापूर्ण लड़ा गया है, और यदि भागीदारी व्यापक रूप से रही है, और नागरिक राजनीतिक स्वतंत्रता का पूरा लाभ उठाते हैं, इस स्थिति में सरकार जो भी कार्य करेगी, वे कार्य लोगों के हित में होंगे।

प्रत्यक्ष लोकतंत्र की समस्या यह है कि विभिन्न मंचों पर हमें अपने आप का प्रतिनिधि त्व करना पड़ता है, इसलिए अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि लोकतंत्र को लाया गया है। प्रतिनिधित्व वह प्रक्रिया है जिसमें समस्त नागरिक या उनका कोई समूह सरकार पर राजनीतिक शक्ति और प्रभाव रखते हैं। उनकी स्वयं की अनुमति से यह प्रभाव उनमें से कुछ लोग इस्तेमाल करते हैं जिसका पालन संपूर्ण समुदाय जिसका प्रतिनिधित्व हुआ है, उसके लिए अनिवार्य है।

इसी प्रकार से, प्रतिनिधित्व सरकार के सम्बन्ध में यह माना जाता है कि यह “सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करती है या इसके काफी सारे लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। यह लोगों के द्वारा एक निश्चित समय के लिए चुने गए अपने उप अधिकारियों के माध्यम से नियंत्रण का इस्तेमाल करती है। इसके संदर्भ में, जे.एस. मिल अपना तर्क प्रस्तुत करते हैं कि लोगों के पास यह अन्तिम शक्ति अपनी संपूर्णता में वे जब भी चाहें, उन्हें सरकार के संचालन का मालिक होना चाहिए।

संकल्पनात्मक रूप से एक उदार लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व के पाँच आवश्यक सिद्धान्त हैं, जिनके नाम निम्न प्रकार से हैं:

• अंतिम शक्ति लोगों में निहित होती है (संप्रभुता का लोकप्रिय सिद्धान्त);

• इस लोकप्रिय शक्ति का प्रयोग कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा काफी सारे लोगों के लिए होता है (प्रतिनियुक्ति का सिद्धान्त)।

• सामयिक चुनावों द्वारा लोग अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों को शासन का आदेश देते हैं (लोकप्रिय सहमति का सिद्धान्त)

• चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा जो फैसले किए जाते हैं और जो कार्य किए जाते हैं, वे समुदाय के लिए अनिवार्य हैं (शासन का सिद्धान्त): तथा

• अंतिम स्वामी होने के नाते, लोग ही सरकार तथा अपने प्रतिनिधियों के प्रदर्शन का आकलन करते हैं (उत्तरदायित्व का सिद्धान्त)।

एडमंड बर्क, एक अंग्रेज़ दार्शनिक तथा राजनीतिज्ञ ने तर्क प्रस्तुत किया है कि एक प्रतिनिधि को चार चीज़ों से मार्गदर्शन लेना जाना चाहिए। ये हैं – निर्वाचन क्षेत्र के विचार, तर्कशील निर्णय, राष्ट्रीय हित तथा व्यक्तिगत धारणा या अंतर्विवेक।

आधुनिक विश्व में अधिकतर लोग अपने प्रतिनिधि को बर्क की व्याख्या से माध्यम से देखते हैं – एक व्यक्ति जिसके पास विवेक है और जो स्थानीय, राष्ट्रीय तथा व्यक्तिगत अनिवार्यताओं का उत्तर आशानुरूप देगा। जबसे प्रतिनिधित्व के संस्थानों की स्थापना हुई है, उनकी मूल आधारिक संरचना एक जैसी ही है:

• शासक, वे जो शासन करते हैं उनका चयन चुनाव के माध्यम से होता है।

• जबकि नागरिक हमेशा चर्चा करने, आलोचना करने और माँग करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, वे सरकार को कानून रूप से बाध्य करने वाले निर्देश नहीं दे सकते।

• शासकों को सामयिक चुनावों का सामना करना पड़ेगा।

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