क्लाउड लेवी स्ट्रास और एडमंड लीच का योगदान-लेवी स्ट्रास फ्रांस के समाजशास्त्री और मानवशास्त्री थे। ब्राजील के विश्वविद्यालय में उन्होंने वर्षों तक समाजशास्त्र के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया। संभवतः सामाजिक संरचना के सिद्धान्त में सर्वाधिक प्रेरक और विवादास्पद योगदान लेवी स्ट्रास का ही था जो अपने श्रेष्ठ, काल्पनिक और सगोत्रीय प्रणाली के अनुप्रस्थ सांस्कृतिक विश्लेषण के लिए विख्यात हैं। लेवी स्ट्रास के लिए संरचना का अर्थ है लोग। वास्तव सामूहिक रूप से अपने दिमाग में नियम, समूह आदि की जो तस्वीर बनाते हैं, वही संरचना है। लोगों की सोच का जो तरीका है उसकी तुलना अनेक सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं से की जाती है। उसकी धारणा को संरचनावाद कहते हैं। परंतु यह धारणा दूसरे संरचनावादियों से भिन्न है। लेवी स्ट्रास ने संरचना के बारे में एक दूसरे ढंग से ही चर्चा की है।
सामाजिक संरचना वास्तविक नातेदारी के प्रकारों या मिथकों या टोटम, जो सच है, को नहीं कहते हैं बल्कि संरचना का मतलब है एक मॉडल या नमूने का होना, जो कुछ शर्तों को पूरा करता है। उदाहरण के लिए, मॉडल से किसी व्यवस्था का पता जरूर लगना चाहिए। व्यवस्था का अर्थ है अनेक चीजें एक साथ इस तरह से जुड़ी हुई हैं कि एक स्थान पर प्रभाव डालने से उसका प्रभाव दूसरे स्थानों पर भी पड़ता है। मॉडल का यह मतलब है कि एक मॉडल आसानी से दूसरे मॉडल में तब्दील हो सके। उसने कहा कि सामाजिक संरचना के तत्त्व-जैसे भाषा, धर्म, बोली को हम वास्तविक रूप से जानने का प्रयास करें तो ये सामाजि संरचना बढ़ी। दरअसल हम ऐसी तस्वीर या मॉडल बनाते हैं जो हमारी इच्छाओं के अनुकूल होता है; जो कुछ वास्तविक भी होता है। वह कुछ आदर्श भी होता है।
ऐसे मॉडल को स्ट्रास ने संरचना मॉडल कहा, जो एक समाज के लोगों की दिमागी अवस्था, उसमें उनके सोच के तरीके और उनके सामाजिक और आर्थिक अवस्था पर निर्भर करता है। इसीलिए उसने कहा कि सामाजिक संरचना का आभास होना एक मानसिक प्रक्रिया है और यह समाज में मनोवैज्ञानिक यथार्थ के रूप में उपस्थित होता है। लेवी स्ट्रास ने सामाजिक संरचना को समझने के लिए मॉडल को दो हिस्सों में बाँट दिया। उसने कहा कि सामाजिक संगठनों के विशाल अस्तित्व के लिए मॉडल बनाने की आवश्यकता है जिससे तुलना करके वास्तविकता का पता लगाया जा सकता है। उसके अनुसार फ्रांस के समाजशास्त्रियों ने इस मामले में मानव विज्ञान की मदद ली, जिससे एक प्रक्षेपित तस्वीर उभर सके। उसने कहा कि इस प्रकार का मॉडल यांत्रिक मॉडल कहलाता है।
ऐसे मॉडल में मॉडल के तत्त्व उसी पैमाने पर शामिल किए जाते हैं जैसा उस घटना या संरचना में होता है। इसका सरल अर्थ यह है कि उन सभी चीजों या सूची को जो वास्तव में है उनके मानसिक प्रतिरूप को शामिल करते हैं। उसके अनुसार, सांख्यिकी का मॉडल वह है जिसमें घटना के भिन्न पैमानों पर प्रतिरूपों को जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए सामाजिक संरचना में जो है उसके स्वरूपों को अथवा जो वास्तव में नहीं है उसके मूल स्वरूपों को शामिल कर लेते हैं। स्वयं स्ट्रास ने यह नहीं कहा कि स्केल या मापक से वे क्या समझते हैं। इस समस्या को एडमंड लीच जो उससे प्रभावित था और जो उसकी आलोचना करता था, ने सांख्यिकी मॉडल को समझने की कोशिश की है। उसने कहा कि विधि के नियम यांत्रिक मॉडल के अंग हैं और ये नियम गिने जा सकते हैं और जिनकी निश्चित संख्या है,
उसे सांख्यिकी मॉडल कहते हैं। विधि के नियमों में गुणात्मकता होती है और व्यवहार का यह तरीका सामाजिक अनुशासन से स्वीकृत होता है। दूसरी ओर सांख्यिकी का मॉडल केवल व्यक्तियों द्वारा किए गए व्यवहार का औसत होता है। लेवी स्ट्रास और लीच दोनों ही मानते हैं कि उनकी सामाजिक संरचना वास्तविक नहीं है वरन् केवल यह औसत प्रतिमान है जो इस रूप में वास्तविकताओं का पता कर लेते हैं। पर असल मॉडल तैयार करना एक औसत प्रारूप को तैयार करना है। अधिकतर आलोचकों ने यह कहा कि दो अमूर्त मॉडल में सम्बन्ध बिठाना आसान है, परंतु एक यथार्थ और अमूर्त मॉडल में सम्बन्ध स्थापित करना बहुत कठिन है। इस प्रकार माना गया कि सामाजिक संरचना का मॉडल बनाने से लाभ है। इससे संरचनावादी उन तत्त्वों को अलग कर देते हैं जो वास्तविकता से जुड़े हैं। दूसरी ओर सामाजिक संरचना के अमूर्त तत्त्व भी लोगों के दिमाग में साफ होने लगते हैं।
लेवी स्ट्रास ने एक संरचना का निर्माण किया। वैसे तो वे ब्राउन से एकदम अलग हैं लेकिन संचार की संरचना के लिए दोनों एक ही बात करते हैं। सामाजिक संरचना संचार से सक्रिय होती है। संरचना कोई मनमानी चीज नहीं है। यह नियमों पर आधारित होती है। संरचना के स्वरूप की चर्चा की जाती है, उसके तत्त्व की नहीं। यानी उसने बराबर गणित की चर्चा की तथा उससे जुड़े रहे। इसके चलते ही वे संरचना की एक काल्पनिक गणितीय धारणा उपस्थित कर देते हैं। लेवी स्ट्रास ने संरचनात्मक भाषा विज्ञान की चर्चा की। उन्होंने कहा कि भाषा सामाजिक संरचना का अंग है। पहले नातेदारी का सम्बोधन भाषा से जुड़ा था अथवा ऐसा माना जाता था। इसलिए नातेदारी की जानकारी के लिए भाषा की चर्चा की जाती थी।
लेवी स्ट्रास ने इस तरह की चर्चा को असम्बद्ध कहा और कहा कि भाषा की संरचना जानने से हम उन बातों की जानकारी प्राप्त कर लेंगे। संरचनात्मक भाषाशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें भाषा के साथ-साथ नातेदारी, परिवार, विवाह जैसी चीजों की धारणा बनी रहती है। महत्त्वपूर्ण बात यह नहीं है कि वास्तविकता क्या है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम देखना क्या चाहते हैं। लेवी स्ट्रास ने कहा कि भाषा और संस्कृति अपनी संरचना में एक जैसी हैं और यह भी कहा कि भाषा और संस्कृति एक-दूसरे के समान हैं। भाषा और संस्कृति एक-दूसरे से कार्यों में भी समान हैं। ऐसे वक्तव्य में स्ट्रास ने भाषा को बहुत महत्त्वपूर्ण माना। उसने कहा कि सभी समस्याएं भाषा की हैं। भाषा संस्कृति का सबसे उत्तम तत्त्व है। हम सभी चीजों को भाषा के माध्यम से जानते हैं।
नातेदारी और परिवार तथा विवाह के अध्ययनों के सम्बन्ध में उसने कहा कि नियम नातेदारी को निर्देशित करता है। यह इन निषेधों पर निर्भर करता है, जो स्वप्न को भी निर्देशित करता है। एक उदाहरण देकर उसने कहा कि निकट सम्बन्धों में यौन सम्बन्ध का जो निषेध है, वह स्त्रियों के विनिमय से सम्बन्धित है। जानवरों में यौन सम्बन्ध सभी से बनते है, परंतु मानव में निषेधों के चलते एक श्रृंखला बन जाता है। अपनी पुस्तक ‘टोटमवाद’ में उसने उन प्राकृतिक वस्तुओं, कुलों के प्रतीकों को अलग-अलग रूप से चुना। टोटमवाद से प्रकृति और संस्कृति के सम्बन्ध का पता चलता है। टोटम की चर्चा करते हुए स्ट्रास ने कहा कि इसके द्वारा अपने समूह के बाहर विवाह करने के नियम का पता चलता है।
आदिम जातियों की मानसिक अवस्था लगभग पिछड़ी हुई होती है और यह मिथकों को विकसित करती है एवं इसका इस्तेमाल करती है। वे कहते हैं कि ये एक तरह से वे मानसिक मान्यताएँ हैं, जिनका व्यवहार पर असर पड़ता है। स्ट्रास की प्रशंसा इसलिए की जाती है कि उसने हमारी मानसिक प्रक्रिया, मूल्य प्रभावित उपकरण और एक नियमित छवि निर्मित करने की प्रक्रिया को उजागर किया है। उसकी आलोचना इसलिए की जाती है कि यह सिद्धान्त बड़ा अस्पष्ट है और इसने अनेक चीजों को एक साथ मिला दिया है। सारांश-सामाजिक संरचना एक ऐसी महत्त्वपूर्ण अवधारणा है जिस पर लगभग हर समाजशास्त्री एवं मानवशास्त्री ने अपना योगदान दिया है, चाहे वह समाज के एक भाग का ध्यान आकर्षित करने से सम्बन्धित हो या पहले के विचारों का समर्थन या फिर सामाजिक संरचना का सिद्धान्त।
वास्तव में सामाजिक संरचना से सम्बन्धित बहस दो विज़यों पर आधारित है। पहला समाज के किस भाग में संरचनात्मक सम्बन्ध है और दूसरा सामाजिक संरचना वास्तविक है अथवा मानक, शोधकर्ता जिसका निर्माण करते हैं। सामाजिक संरचना पर दो श्रेष्ठ विचारों से लेवी स्ट्रास संरचना सम्बन्धी अपनी प्रणाली से जुड़े हुए हैं, इनके अनुसार सामाजिक संरचना वह प्रतिमान है जो सामाजिक व्यवहार का अध्ययन करने के लिए बनाई गई है। रेडक्लिफ ब्राउन के अनुसार सामाजिक संरचना एक आनुभविक सत्ता है। ब्राउन ने लेवी स्ट्रास संरचना के बारे में असहमति प्रकट की और कहा कि प्रतिमान के रूप में सामाजिक संरचना का विचार भ्रांतिमूलक है। रेडक्लिफ ब्राउन के अनुसार शब्द संरचनात्मक प्रकार लेवी-स्ट्रास के शब्द प्रतिमान के समान हैं।
मानवशास्त्री एस.एफ. नाडेल ने ब्राउन और स्ट्रास के विचारों को मिलाने का प्रयास किया। अपनी पुस्तक ‘द थ्योरी ऑफ सोशल स्ट्रक्चर’ नाडेल इस बात से असहमत थे कि सामाजिक संरचना एक आनुभविक वास्तविकता है। उसने इस बात से अहसमति जताई कि सामाजिक संरचना का वास्तविकता से कुछ लेना-देना नहीं है। उन्होंने ब्राउन के इस मत को स्वीकार किया कि प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक संरचना में एक अलग पहचान रखता है, किन्तु अन्तर्वैयक्तिक प्रभाव की आनुभविक वास्तविकता इंद्रियगोचर सत्ता से अमूर्त स्तर की ओर चले गए जहाँ व्यक्ति ऐसा अभिनेता बन जाता है, जो अन्य से सम्बन्धित भूमिका को अभिनीत करता है।
उन्होंने सामाजिक संरचना को परिभाषित करते हुए कहा कि हम मूर्त जनसंख्या और इसके संव्यवहार से अमूर्त द्वारा समाज की संरचना तक पहुँचते हैं, जो अभिनेताओं के दूसरे से सम्बन्धित उनकी अभिनय क्षमता में प्राप्त सम्बन्धों की प्रतिमान या पद्धति है। इनके अलावा कुछ अन्य समाजशास्त्रियों ने भी सामाजिक संरचना में भूमिका को महत्त्व दिया है। पारसन्स के अनुसार सामाजिक पद्धति की संरचना ‘मानकीय संस्कृति का संस्थात्मक प्रतिमान है। सामाजिक संरचना का उद्देश्य मानवीय संव्यवहार को नियंत्रित करना है। पीटर ब्ला ने भी सामाजिक स्थितियों के बारे में कहा कि इनके मध्य जनसंख्या का विभाजन होता है।
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