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बालमन की यह खरोंच ग्रंथि बन गई थी जब भी वह पच्चीस की संख्या पढ़ता या लिखता, उसे पच्चीस ……………………………., जिनके उत्तर उसके पास नहीं थे।

प्रस्तुत गद्य ओमप्रकाश वल्मीकि कि पच्चीस चौका डेढ़ सौ से लिया गया है। “पच्चीस चौका डेढ़ सौ इस अर्थ में उल्लेखनीय कहानी है कि यह बेहद मारक ढंग से सवर्ण दुष्चक्र की अमानवीयता और उसके कुत्सित इरादे को बेनकाब करती है। यह उन दलित कहानियों से अलग है जो घटनाओं और विचारों को फौरी तौर पर कथा विन्यास में शामिल कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देती है।

जैसा कि इस इकाई के आरंभ में कहा गया था कि कथा में मितकथन की कलात्मकता मौजूद है, यह भी कहानी की एक उल्लेखनीय विशेषता है। नायक सुदीप नयी पीढ़ी का वह दलित है ‘पच्चीस चौंका डेढ़ सौ. कहानी में पीढ़ियों का द्वंद्व भी प्रभावी ढंग से चित्रित हुआ है।

कथा – विन्यास की सुदंरता इस अर्थ में उल्लेखनीय है कि पीढ़ियों का द्वंद्व तो चित्रित है पर कहीं संबंधों में तनाव नहीं आया है। कथाकार ने असहमति का पहला दृश्य उस समय चित्रित किया है, जब पहाड़ा याद करते समय सुदीप किताब में लिखे के मुताबिक पच्चीस चौका सौ कहता है।

परसुदीप के पिता को बेटे का ऐसा पढ़ना गलत लगता है। इसके पीछे सवर्ण अवसरवाद की वह भूमिका है, जिसके तहत चौधरी ने अपने निहित स्वार्थ के कारण रुपये एंठने के चक्कर में कर्जदार सुदीप के पिता को पच्चीस चौका सौ की जगह पच्चीस चौका डेढ़ सौ बताया। दूसरी तरफ पिता को गिनती नहीं आती थी।

लेकिन वह चौधरी के अहसानों तले खुद को दबा महसूस करते थे। उन्हें यह भी लगता था कि जो मुसीबत के समय काम आया वह भला कैसे गलत हो सकता है।

उन्हें लगता था कि मास्टर मिश्र चौधरी से अधिक भला कैसे जान सकते हैं। पिता सुदीप को पढ़ते समय जब उसके द्वारा यह बोलते हुए सुनते हैं- पच्चीस चौका सौ। तब उनकी त्यौरी चढ़ जाती है। वे बोले, ‘नहीं बेटे.. पच्चीस चौका सौ नहीं पच्चीस चौका डेढ़ सौ ।

सुदीप ने असहमति व्यक्त करते हए अपनी किताब की नजीर दी। लेकिन पिता को चौधरी की बात सही और किताब की बात गलत लगती है, और कहा, ‘तेरी किताब में गलत भी हो सके नहीं तो क्या चौधरी झूठ बोलेंगे? तेरी किताब से कहीं ठाड्डे (बड़े) आदमी हैं चौधरी जी। उनके धोरे (पास) तो ये मोट्टी-मोट्टी किताबे हैं…… वह जो तेरा हेडमास्टर है वो बी पाँव छुए हैं।

चौधरी जी के फेर भला वो गलत बतावेंगे मास्टर से कहणा सही-सही पढ़ाया करे…।’ इतना ही नहीं पिता ने सुदीप को एक थप्पड़ भी रसीद दिया। यह बात कील की तरह सुदीप के मन-मस्तिष्क में टंग गयी। वह सोते-जागते, दिन रात इसी चिंता में रत रहने लगा कि कैसे पिता की गलतफ़हमी को दूर करे ?

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