धानी मुंडा मुंडा जाति के स्वाधीनता युद्ध के सपनों का फेरीवाला ही है। मुलकई। लड़ाई के समय ही वह बिरसा के अंदर (जब बिरसा किशोर था) भविष्य के नायक को देखा था। मुलकई लड़ाई का योद्धा धानी इस समय से ही सरदारों को बोलता “अब हाथों में बलोया रहेगा, तीर-धनुक रहेंगे।” छोटानागपुर इलाके के इतिहास का बहुदर्शी साक्षी है धानी मुंडा । लेखिका उसके अनुभव के अंदर से की इतिहास को पाठकों से परिचित करवाती है।
सर्वमुखी शोषण में शोषित मुंडाओं का जीवन सत्य गानों में किस तरह उद्घाटित होता, उसके वर्णन के लिए लेखिका ने धानी मुंडा के युवा समय में गाये गये गीत का एक अंश उद्धृत किया है। इस गाने की सारकथा है- “बेगारी करते-करते मेरे कंधे से खून बहने लगा है। जमींदार का सिपाही रात-दिन मुझे डाँटता रहता है। मैं दिन-रात रोता रहता हूँ। बेगार करते करते मेरा यह हाल हो गया।
घर नहीं है, तो मुझे सुख कौन देगा? मैं दिन रात रोता रहता हूँ। आँसुओं की तरह मेरा खून नोनखरा (नमकीन) हो गया है।”
प्रसंगतः लेखिका मुंडाओं के जीवन में गीतों से उनके गहरे जुड़ाव के संबंध में लिखती हैं, “धानी को मालूम है। जीवन में सब यातनाओं यंत्रणाओं के अवसरों को मुंडा लोगों ने गान-गान में भर रखा है। वे गाने किसने बनाए, कौन सुर देता था, किसी को पता नहीं।” धानी मुंडा के गल्प-कहानी से स्पष्ट होता है- और मुंडा लोग एवं सवताल लोग लड़ते हैं मरते हैं एवं अन्यत्र भागते हैं। धानी के युवा समय में छोटानागपुर के राजा का भाई हरनाथ शाही एकबार खुटकट्टि ग्राम को भिन्नदेशी महाजन ठेकेदारों को दे दिया था। तब भी मुंडा लोगों को दिकु लोगों के हाथों कई सौ गाँव छोड़ने पड़े। मुंडाओं के वैभव हरण की यह परम्परा धानी के एक वाक्य से पता चलती है, “दिकु लोगों से देश छा गया। खोजने पर एक मुंडा नहीं मिलता था जिसके घर में दस रुपये भी हों। सब भिखारी हो गए।”
वृद्ध धानी मुंडा सरदारों के आंदोलन के व्यर्थ हो जाने से हतोत्साहित नहीं हुआ था। उसकी गतिविधियों को लक्ष्य करने पर पता चलता है कि मुंडा जाति के आत्म जागरण के लिए जैसे वह एक समर्पित सैनिक हो। इस जागरण के प्रयास के दुसमय की अंधेरी रातों में भी पथिक की तरह स्वतंत्रता के प्रदीप को बचा कर सत्य पथ को खोज में वह अकेला निकल पड़ा था इसलिए बिरसा के पास बार-बार तिरस्कृत उपेक्षित होने के बाद भी वह बिरसा को नहीं छोड़ता था। बिरसा के मध्य में वह ‘भगवान’ के आत्मजागरण को जगाना चाहता है। इसलिए चाइबासा मिशन से बड़े दिन की छुट्टी पर बिरसा जब गाँव जा रहा था तो रोकोमबा से धानी मुंडा बिरसा का पीछा करता है। फिर वह बिरसा को समझाने लगता है कि ‘भगवान’ बनने के सारे लक्षण सिर्फ बिरसा में ही हैं, जो भगवान मुंडा लोगों की ओर से आयेगा।
मुलकी लड़ाई की मंद-मंद आग से सब कुछ जला देगा। साहब – दिकु सबको भगा देगा हमारे अपने गाँवों में मुंडा लोगों की बस्ती बना देगा। धानी, बिरसा को स्पष्टता से आह्वान करके बोलता है-“बिरसा, तू कर सकता है। छोटानागपुर तेरे आदि पुरुषों का बनाया हुआ है। तू भगवान बन सकता है।” यह धानी मुंडा ही मुंडा विद्रोह का चारण होता है। साहबों के अत्याचारों से जब मुंडा संत्रस्त और दिशाहारा होते हैं, तब धानी सिर्फ विद्रोह की सम्भावना को टटोलता ही नहीं बल्कि विद्रोह में नई शक्ति के संचार करने की परिकल्पना भी बनाता है। बिरसा को भगवान होने के लिए कहना, इस परिकल्पना का ही एक अंग है।
परवर्ती रणकौशल से बिरसा को परिचित कराना भी इसी रणकौशल का एक अंग है एवं प्रमुखता से वह बिरसा को बोलता है- “पुराने सरदारों से काम न होगा।” धानी जाति के प्रति कितना गंभीर था, | यह बात हम धानी से बिरसा के साथ मिलने एवं बोलने के वार्तालाप में पाते हैं। वह बिरमा से बोलता है- “तू वह मिशन छोड़ दे साहेब क्या कहते हैं-मुंडा जंगली हैं, नंगे रहते हैं सारे मुंडा चोर और डाकू हैं। वह मिशन छोड़ दे।” 1895 ई. में बिरसा के गिरफ्तार हो जाने के बाद बिरसा के भावावेश का प्रसार करते हुए आगे ले जाने में बिरसा के अनुगामियों में वृद्ध धानी मुंडा का स्थान प्रमुख है। धानी जेल तोड़ कर भाग आता है। शाली उसे गुप्त गुफा में ले जाकर रख आती है। 1897 के नवम्बर महीने में बिरसा जेल तोड़कर भागने के लिए धानी मुंडा को तिरस्कृत करता है।
बिरसा उसके पास से अंग्रेजों के जारी किए गए जंगल के कानून के बारे में जानना चाहता है। धानी कहता है- “लगान बढ़ाने का कानून बना लगान वसूल करने का कानून बना। एक ही कानून में कह दिया कि लगान बढ़ायेंगे और जब देखेंगे कि रैयत को सामर्थ नहीं हैं, तो लगान माफ कर देंगे। जो रैयत ज्यादा लगान नहीं दे सकेगा, वह बेगारी देगा। जिसके साथ पैसे की बात हो, वह बेगारी न देकर रुपये देकर रिहाई पा जायेगा।” बिरसा की अनुपस्थिति में जब दो साल फसल न हुई, खैरात नहीं बँटी. कर्ज-उधार नहीं मिला, लगान बढ़ गए, बेगारी का बड़ा शोर मचा तो उसपर धानी मुंडा ने मुंडाओं को जमींदारों के घर से धान लेने के लिए बुद्धि दी।
जिसके फलस्वरूप सरकार ने ‘पिदुनी’ खजाना जारी किया जिसमें गाँव से चोरी हो गये कर को सभी गाँव वालों को मिल कर देना पड़ेगा। मुंडा लोग पिटुनी खजाने से बचने के लिए जंगल में छिप जाते थे। इस अवस्था में बिरसा की मुक्ति के बाद 7 दिसम्बर की एक सभा में धानी मुंडा बिरसा को कहता है. “अब मुंडा लोगों को पता चल गया है कि तुम्हारे बिना उनकी गति नहीं है।”
मुंडाओं की स्वाधीनता की लड़ाई के स्वप्न में अपने बालों को सफेद कर देने वाला धानी मुंडा, किशोर उम्र से ही छाया की तरह उसके पीछे लग गया था, उसे मुंडाओं के मुक्तिदाता ‘भगवान’ के आसन पर प्रतिष्ठित करने के लिए। उपन्यास के दसवें अध्याय में उसके उस स्वप्न को सार्थक होते देखा जाता है, जब बिरसा धर्म संस्कार एवं चेचक के प्रतिरोध की भूमिका का त्याग करके गाँव-गाँव में तीर भेजना चालू करता है। वह मुंडाओं का लड़ाई के लिए आह्वान करता है और उसमें आनंद के अतिरेक से धानी कूद पड़ता है। इस दिन को देखने के लिए ही वह कितने दिनों से धैर्य रखकर प्रतीक्षा कर रहा था।
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