जाति संगठनों द्वारा उठाये गये मुद्दों में प्रमुख – आत्म-सम्मान, गौरव, मानव अधिकार, न्याय, संसाधनों का बंटवारा, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, और जाति के अंदर आंतरिक समस्याऐं इत्यादि होते हैं। दलित एवं अन्य पिछड़े वर्ग के संगठन वर्तमान में जारी आरक्षण को सही मानते हैं तथा वे इस निजि क्षेत्र में भी लागू करने की माँग कर रहे हैं। कुछ उच्च जातीय संगठन भी उच्च जातियों के लिए आरक्षण की माँग करते हैं। इसके जवाब में अभी हाल ही में 124वां संविधान में संशोधन करके आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है जिसमें उच्च जातियाँ भी शामिल है।
रूडोल्फ एण्ड रूडोल्फ के अनुसार जाति संगठन जातियों को सशक्त बनाने में अपनी लोकतांत्रिक भूमिका निभा रहे हैं। यद्यपि, सभी जातियों ने अपने संगठन बना लिये हैं, लेकिन दलित एवं पिछड़े वर्गों के संगठन अपने वर्गों को सशक्त बनाने में अपनी भूमिका अधिक निभा रहे हैं। ये संगठन न केवल आंतरिक मतभेद एवं विवादों को सुलझाते हैं बल्कि, चुनावों में भी भागीदारी के लिए लोगों को संगठित करते हैं। कई प्रकार के मुद्दों को वे उठाते हैं जैसे, आत्म-सम्मान, जाति-आधारित हिंसा, उत्पीड़न, शारीरिक प्रताड़ना तथा मानव अधिकार जैसे ‘मुद्दे भी शामिल हैं।
इसके अलावा भी मुद्दे है जैसे आरक्षण, छूआछूत इत्यादि। ये सभी मानव अधिकार से जुड़े मुद्दे है क्योंकि यू.एन, मानव अधिकार की परिभाषा के अनुसार वे सभी अधिकार जो कि व्यक्ति से जुड़े हुए हों, मानव अधिकार की श्रेणी में आते हैं। जातिगत संगठन अपनी जाति के सदस्य जिन्होंने परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त किया था खेल एवं अन्य गतिविधि में नाम कमाया है उनको सम्मानित करते हैं। ये संगठन इनके सम्मान में समारोह भी आयोजित करते हैं कई संगठन डा. अम्बेडकर के नाम पर भी बनाये गये है जिनका मकसद डा. अम्बेडकर के विचारों को प्रसारित करना तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है।
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