जनवरी 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल दवारा पूर्वोत्तर राज्यों- असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में जिला परिषदों की स्वायत्तता तथा वित्तीय संसाधनों एवं कार्यकारी शक्तियों में वद्धि के लिये के लिये अनुच्छेद 280 तथा संविधान की छठी अनुसूची में संशोधन को मंजूरी दी। मेघालय के तीन स्वायत्त ज़िला परिषदों (Autonomous District Councils- ADCS) ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) से आग्रह किया कि वह राज्य सरकार को उसके मामलों में हस्तक्षेप न करने निर्देश दे।
तीनों परिषदों ने 15वें वित्त आयोग को इस बात से भी अवगत कराया कि उनके द्वारा एकत्रित राजस्व से उनके दिन-प्रतिदिन की प्रशासनिक गतिविधियों और प्राथमिक कर्तव्यों (जैसा कि छठी अनुसूची में परिकल्पित है) की पूर्ति ही कठिनाई से हो पाती है तथा विकास कार्यों के लिये उनके पास कोई धनराशि शेष नहीं बचती। पृष्ठभूमि भारत की जनसंख्या में 100 मिलियन जनजातीय आबादी शामिल है जिन्हें संवैधानिक रूप से दो अलग-अलग उपबंधों- पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची, के माध्यम से संबोधित किया गया है।
पाँचवीं और छठी अनुसूचियों पर संविधान सभा में 5-7 सितंबर, 1949 को चर्चा की गई थी उसके बाद फिर इसे पारित किया गया था। पाँचवीं अनुसूची नौ राज्यों में विद्यमान जनजातियों के बहुमत पर लागू होती है जबकि छठी अनुसूची चीन और म्यांमार की सीमा से लगे उत्तर-पूर्वी राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों को दायरे में लेती है।
छठी अनुसूची जनजातीय समुदायों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करती है। असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिज़ोरम छठी अनुसूची के तहत ही स्वायत्त क्षेत्र हैं। छठी अनुसूची के अंतर्गत ज़िला परिषद (District Council) और क्षेत्रीय परिषद (Regional Council) विधान निर्माण की वास्तविक शक्ति रखते हैं; विभिन्न विधायी विषयों पर उनका मंतव्य महत्त्वपूर्ण होता है; विकास, स्वास्थ्य-देखभाल, शिक्षा, सड़क संबंधी योजनाओं के लिये भारत की संचित निधि से अनुदान प्राप्त करते हैं; और राज्य नियंत्रण के प्रति एक विनियामक शक्ति रखते हैं।
हस्तानांतरण (Devolution), विसंकेंद्रण (Deconcentration) एवं शक्ति-वितरण (Divestment) का अधिदेश उनके रीति-रिवाजों के संरक्षण, बेहतर आर्थिक विकास और इन सबसे महत्त्वपूर्ण उनकी नृजातीय सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। यद्यपि छठी अनुसूची की अपनी कमियाँ भी हैं जैसे- विधि-व्यवस्था का भंग होना, चुनावों का आयोजन न होना, सशक्तीकरण के बजाय बहिर्वेशन (Extrapolation) की स्थिति तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में जनजातियों को बहुत आवश्यक सुरक्षा प्रदान प्राप्त नहीं हो पाती और वे सरकारी वित्तपोषण पर निर्भर बने रहते हैं।
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