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सत्रहवीं शताब्दी में खगोल-शास्त्र और भौतिकी के विकास में प्राकृतिक दार्शनिकों के योगदान क वर्णन कीजिए?

 निकॉलस कोपरनिकस (1473-1543) ने अरस्तु और टॉलमी के विचारों को ध्वस्त कर दिया। अपनी पुस्तक ऑन द रिवोन्यूशन ऑफ द हेवनली सफीयर्स (साथी खगोलविदों के द्वारा अपमान की आशंका के कारण 1543 में मरणोपरांत प्रकाशित) में, कोपरनिकस ने सुझाव दिया कि सूर्य ब्रह्मांड का केन्द्र था और पृथ्वी तथा अन्य ग्रह इसके चारों ओर गोलाकार कक्षाओं में घूमते थे। इस “सूर्य-केन्द्रित’ अवधारणा में कहा गया था कि पृथ्वी नहीं बल्कि सूर्य ब्रह्मांड का केन्द्र है। यह उस समय की प्रमुख सोच के विपरीत था और इस विचार ने इस विषय पर सैकड़ों वर्षों की पारम्परिक शिक्षाओं को चुनौती दी।

कोपरनिकस की पुस्तक के बड़े वैज्ञानिक और धार्मिक परिणाम हुए। जब उन्होंने पृथ्वी को सिर्फ एक अन्य ग्रह के रूप में माना तो यह धारणा नष्ट हुई कि सांसारिक दुनिया स्वर्गीय दुनिया से अलग थी। कोपरनिकस के विचारों ने विज्ञान के क्षेत्र में दूसरे वैज्ञानिकों को भी प्रभावित किया। एक डेनिश खगोल-शास्त्री, टाइको ब्राहे (1546-1601) ने एक वेधशाला का निर्माण किया और तारों और ग्रहों की स्थिति पर लगातार बीस वर्षों तक आँकड़ें इकट्ठा करके आधुनिक खगोल विज्ञान के अध्ययन के लिए मंच तैयार किया। उनका सबसे बड़ा योगदान भारी मात्रा में आँकड़ों का संग्रह था, फिर भी उनके गणित के सीमित ज्ञान ने ब्राहे को आँकड़ों को सूझ-बूझ से इस्तेमाल करने से रोका। 

बाद में जोहान्स केपलर (1571-1630), जो एक जर्मन खगोल शास्त्री और ब्राहे के सहायक थे, के द्वारा इन आँकड़ों का उपयोग कोपरनिकस के विचार का समर्थन करने के लिए किया गया और उन्होंने यह स्थापित किया कि ग्रह सूर्य के चारों तरफ अण्डाकार कक्षाओं में घूमते हैं, न कि गोलाकार कक्षाओं में। केपलर के ग्रहों की गति के तीन नियम गणितीय गणनाओं पर आधारित थे और उन्होंने सूर्य केन्द्रित ब्रह्मांड में ग्रहों की चाल की सटीक भविष्यवाणी की थी। उनके कार्य ने अरस्तु और टॉलेमी की पुरानी मान्यताओं और व्यवस्थाओं को ध्वस्त कर दिया। वैज्ञानिक शब्द 1840 में गढ़ा गया था हालांकि सत्रहवीं सदी की प्रतिष्ठा महान वैज्ञानिक विकास के युग के रूप में है। यह गैलीलियो, केपलर, बेकन, पास्कल, देकार्त और न्यूटन की शताब्दी थी। लेकिन ये लोग स्वयं को प्राकृतिक दार्शनिक कहते थे। जोहान्स केपलर (1571-1630) ऐसे समय में रहे जब खगोल-विज्ञान और ज्योतिष को संयुक्त रूप से ही देखा जाता था।

जर्मनी में पैदा हुए जोहान्स केपलर एक धर्मनिष्ठ ईसाई (एक भावुक लूथरन) थे, जिनको उनके अपने धार्मिक विश्वास ने विज्ञान का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया था। उनका यकीन था कि ईश्वर ने एक बुद्धिमान योजना के तहत दुनिया का निर्माण किया था और ईश्वर द्वारा प्रदत बुद्धि या तर्कशक्ति के माध्यम से यह ईश्वर की योजना मनुष्यों को सुलभ थी, प्राप्य थी। केपलर का मानना था कि यह दुनिया एक निर्माता द्वारा बनाई गई थी जिसने व्यवस्था और स्वर-संगति (संगीत स्वर का मेल की भाँति) और ज्यामितिय प्रारूप का उपयोग किया था। उनकी सोच थी कि उनकी आकाशीय भौतिकी ने केवल ब्रह्मांड के लिए ईश्वर की ज्यामितिय योजना को ही उजागर किया था।  

इसी तरह गैलीलियो गैलिली (1564-1642) भी विज्ञान के कई अलग-अलग क्षेत्रों से परिचित थे। उन्होंने सिर्फ एक ही विशिष्ट पेशे को नहीं चुना। वह तम्बूरा या वीणा और ऑर्गन बजा सकते थे और चित्रकारी भी अच्छी कर सकते थे। उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन किया, गणित को खंगाला और ज्यामिती की प्रशंसा की। उनकी धर्मशास्त्र में भी रुचि थी। 1608 में यूरोप में कम शक्तिशाली टेलीस्कोप प्रयोग में थे जिन्हें स्पाईग्लास के नाम से जाना जाता था। इनके आविष्कार का श्रेय हालैंड के एक निवासी हैस लिपरशी को दिया जाता है। इन प्रांरभिक दूरबीनों की आवर्धन शक्ति बहुत सीमित थी। लेकिन इनके वश में एक बाजार था। गैलीलियो एक नये ऑप्टिकल उपकरण के रूप में इस आविष्कार के बारे में जानते थे।

उन्होंने ज्यादा आवर्धन शक्ति वाली बेहतर दूरबीनों का निर्माण शुरू किया। उनकी पहली दूरबीन ने केवल आठ गुना आवर्धन शक्ति तक का सुधार किया लेकिन उनकी दूरबीन में लगातार सुधार हुआ। गैलीलियों की दूरबीन अब सामान्य दृष्टि से लगभग दस गुणा आवर्घन करने में सक्षम थी हालांकि इसमें दृश्य का क्षेत्र सीमित ही था। गैलीलियो द्वारा इस उपकरण की सहायता से किये गये पर्यवेक्षणों से ही चन्द्रमा के पर्वतों और खड्डों और बृहस्पति के चन्द्रमाओं की खोज हुई। ब्रह्मांड के सूर्य केन्द्रित होने को सिद्ध करने वाले शुक्र ग्रह के चरणों का वर्णन और सौर कलंक के चित्र भी इन पर्यवेक्षणों का ही परिणाम थे।

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