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मैं तुम्हें जितना सरल हृदय समझती थी, तुम उससे कहीं बढ़कर कूटनीतिज्ञ हो। मैं तुम्हारा आशय समझती हूँ और इसलिए कहतीटियों और दोषों का प्रद……………………………… तुम मुझसे डरते हो, इसलिए तुम्हारे सम्मुख न आऊँगी, पर रहूँगी तुम्हारे ही साथ

प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण प्रेमचन्द करत उपन्यास ‘रंगभूमि’ से अवतरित हुआ है। उपन्यास में स्वाधीनता आंदोलन का नेतष्टत्व करने वाला पात्र विनय है जबकि जमींदार कुँवर भरत सिंह और रानी जाहनवी का पुत्र है। विनय ‘सेवा समिति’ का संचालक है ‘सेवा समिति का मुख्य कार्य संरचनात्मक कार्य करना है।

व्याख्या- सोफिया मि. जॉनसेवक की पुत्री है। उसे अपनी माँ मिसेज जॉतसेवक की कट्टर धार्मिक प्रवष्टत्ति रास नहीं आती। वह खुले विचारों की लड़की है जबरदस्ती कोई भी कार्य करना उसे पसंद नहीं माँ का कट्टर ईसाई होना। जाना उसे पसंद नहीं वह धर्म की ओर ‘मैंने देखा है, हिंदू भरानों में भिन्न-भिन्न मतों के प्राणी कितने प्रेम से रहते हैं। बाप सनातन धर्मावलंबी है, तो बेटा आर्य समाज पति ब्रह्म समाज में है तो स्त्री पाञ्चाण पूजकों में सब अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं।

कोई किसी से नहीं बोलता हमारे यहाँ आत्मा कुचली जाती है फिर भी यह दावा है कि हमारी शिक्षा और सभ्यता विचार स्वातंत्रय की पोजक हैं।  वह दोनों धर्मों की तुलना करते हुए विचार करती है सूफी विनय को कहती है मैं तुमकों जितना साफ, सरल मन वाला समझती थी, तुम उससे कहाँ बढ़कर कूटनीति करने वाले हों। मैं तुम्हार मतलब समझती हूँ और इसीलिए तुम्हें कर रही हूँ जैसी तुम्हारी इच्छा तुम वैसा ही करो पर तुम्हें शायद यह मालूम नहीं है कि यूवती का मन एक छोटे से बच्चे की तरह होता है।

इसे जिस बात के लिए मना करो, वह उसी तरफ ही डोलता है। अगर तुम अपनी प्रशंसा करते हुए अपने कार्य की अप्रत्यक्ष रूप से झींग मारते हो तो मुझे शायद तुमसे अरूचि हो जाती। अपनी त्रुटियों और दोखों का खुलासा करके तुमने मुझे और भी बळीभूत कर लिया है। तुम मुझसे डरते हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास नहीं आऊँगी पर रहूँगी तुम्हारे ही साथ विधर-विधर तुम जाओंगें मैं तुम्हारी परछाई की तरह हर समय तुम्हारे साथ रहूंगी। सोफिया जब कुँवर भरत सिंह के घर में रह रही है तेच विजय के देशप्रेम और कर्मठता को देखकर उसके प्रति समर्पित हो जाती है।

विनय भी उसके रूप, लावण्य गुणों से प्रभावित हुए बिना नहीं या पाता। दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। हालाँकि दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं लेकिन उनके प्रेम को विवाह की परिणति नहीं मिल पाती। रानी जाह्वनी इस तथ्य से भली-भाँति अवगत है सोफिया के गुणों से प्रभावित भी होती है लेकिन विवाह के पक्ष में नहीं आ पाती क्योंकि सोफिया एक तो ईसाई है और दूसरे वह विनय की देश सेवा के लक्ष्य में भी बाघ 1 हो सकती थी। विनय द्वारा आत्मबलिदान कर दिए जाने के बाद सोफिया भी आत्महत्या कर लेती है।

विशेष : 

  1. विनय के चरित्र पर प्रकाष्ठा पड़ता है।
  2. मानव स्वभाव का सुन्दर तथा सच्चा विठलेजण है।
  3. उपमा के सुन्दर प्रयोग तथा भाजा की प्राजलता से पता चलता है कि प्रेमचन्द साहित्यिक भाजा-शैली का प्रयोग भी कर सकते थे।

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