आधुनिक युग में मनुष्य का विश्वास अलौकिक शक्तियों पर से हटता गया क्योंकि विश्व में मनुष्य के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि अलौकिक शक्ति एक कल्पना मात्र है। आस्था का केंद्र मनुष्य ही है। मनुष्य स्वयं अपना भाग्य विधाता है सृष्टि के क्रम विकास में उसका स्थान सर्वश्रेष्ठ है। यही विश्वास आधुनिक मानवतावादी विचार धारा की मूल चेतना है। गुप्त जी के काव्य पर इस मानवतावादी विचार धारा का गहरा प्रभाव दिखाई देता है।
उनके काव्य के विषय अधिकार पौराणिक कथानकों पर आधारित हैं विशेष रूप से नहुष और दिवो दास काव्य इसी दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं जिसमें मानव के स्वावलंबी बनने की और विकास की ओर बढ़ने के संकल्प को व्यक्त किया है। लीला नामक काव्य में विश्वामित्र का कथन
अमर जो ना कर सके उसे नर कर सकते हैं व्रत साधन पर अमर भला कब मर सकते हैंविकास के पथ पर आगे बढ़ने का संकल्प लिए मानव आज उस संकल्प की पूर्णता की ओर अग्रसर है। मानवीय मूल्यों की स्थापना और उसके अनुसार चलने की कटिबद्धता मानव निभा रहा है। द्वापर में उग्रसेन कर रहा है
सच पूछो तो ऐसा अद्भुत अपना यह मानव ही कभी देव बन जाता है तो कभी दानव भी मैं कहता हूं यदि मनुष्य ही बने मनुष्य हमारा तू कट जाए देवों का कलह कलुष यह सारा।गुप्ता जी ने अपने काव्य में जातिवाद वर्ण भेद जैसी सामाजिक बुराइयों का विरोध किया और इन बुराइयों के कारण मनुष्य मनुष्य के बीच जो दरार पड़ी थी उस दरार को मिटाने के प्रयास सोया मनुष्य ही करें इस उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु गुप्तजी ने अपने द्वापर, गुरुकुल काव्य संग्रह की रचना की थी। मानवतावादी दृष्टिकोण से ही गुप्तजी ने नारी की सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाने हेतु यशोधरा, साकेत, विष्णुप्रिया काव्यों की रचना की।
इन कार्यों के प्रमुख नारी पात्र त्याग दया करुणा अहिंसा आदि बौद्ध धर्म के तत्वों को अपनाते हुए मानवता की स्थापना के लिए कार्यशील दिखाई देते हैं। बौद्ध धर्म के तत्व मानवतावाद की स्थापना के मूल तत्व माने गए हैं। गुप्त जी का विश्वास था कि अनेक विसंगतियां और त्रुटियों के बावजूद विश्व का विकास होगा क्योंकि मनुष्य ही इस विकास के केंद्र में है।
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