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मानव संसाधन विकास के कार्यों का वर्णन कीजिए ।

1) प्रशिक्षण एवं विकास: किसी भी प्रशिक्षण एवं विकास में मुख्य ध्यान इस बात पर होता है। कि कर्मियों के ज्ञान, दृष्टिकोण और कौशल में परिवर्तन एवं संवर्धन होना चाहिए। यहां दो महत्वपूर्ण शब्दों का प्रयोग हुआ हैः 'प्रशिक्षणः और विकास | प्रशिक्षण मुख्यतः कर्मियों को अपने ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि करने में सहायक होता है ताकि वे अपने कार्य बेहतर तरीके से कर सकें। उदाहरण के लिए संगठन में आई नई मशीनों ,/यंत्रों का प्रयोग करने के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। प्रशिक्षण कर्मियों के व्यवहारिक कौशल में भी सुधार कर सकता है। यह उनके दृष्टिकोण को भी बदल सकता है। उदाहरण के लिए जेंडर संवेदनशीलता का स्तर सुधारने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हो सकते है। विकास का केन्‍्द्रण अधिक दीर्घकालिक होता है। विकासात्मक गतिविधियों कर्मियों के वर्तमान एवं भावी कार्य-दायित्वों का ध्यान रख उनकी योग्यताओं को बढ़ाने पर केन्द्रित हो सकती हैं। संगठन में प्रशिक्षण एवं विकास गतिविधियों के विविधापूर्ण स्वरूप हो सकते हैं। संप्रेरण एवं कार्य-प्रारंभ करने के कार्यक्रम नए कर्मियों को संगठन, उसके जीवन मूल्यों, सामान्य मानकों, कार्य संबंधित गतिविधियों आदि के विषय में जानकारी दे सकते है। किसी कार्य या कौशल के तकनीकी आयामों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम हो सकता है। प्रशिक्षण एवं विकास गतिविधियों में सिखाना, समझाना, मार्गदर्शन करना आदि ऐसे सभी कार्य सम्मिलित हो सकते हैं जो कर्मियों के समग्र स्तरीय विकास में वृद्धि कर सकते हों। साथ ही ये कार्यक्रम सभी स्तरों के कर्मियों के लिए अर्थात सामान्य कर्मचारियों से लेकर संगठन के वरिष्ठ प्रबंधकों तक, सभी के लिए हो सकते हैं।

2) संगठनात्मक विकास: यह संगठन की प्रभावोत्पादक तथा इसके सदस्यों विज्ञान की संकल्पनाओं प्रर आधारित इस्तक्षेप युक्तियों की सड्ठायता से किए जाते हैं। संगठनात्मक विकास समष्टि एवं व्यष्टि स्तरीय संगठनात्मक परिवर्तनों पर बल देता है। समष्टि परिवर्तन पूरे संगठन पर केन्द्रित होते हैं। जबकि व्यष्टि परिवर्तन संगठन में व्यक्तियों, किन्हीं टीमों और समूहों पर केन्द्रित रहते है। मानव संसाधन विकास व्यावसायिक न केवल परिवर्तन लाने बल्कि उपयुक्त हस्तक्षेप युक्तियों का विकास करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

3) जीवन वृत्ति विकास: मानव संसाधन विकास का अन्य महत्वपूर्ण कार्य कर्मियों के जीवन वृत्ति विकास को बढ़ावा देना है। हमने इस इकाई में बार-बार आग्रह किया है कि मानव संसाधन विकास व्यक्तियों की योग्यता-दकता को बढ़ाने पर केंद्रित रहता है ताकि वे अपने वर्तमान एवं भावी कार्यदायित्वों को मली प्रकार निमा सकें। उनके जीवन वृत्ति के प्रबंधन एवं विकास मानय संसाधन विकास के इसी कार्य के अनुरूप होते हैं। इस जीवन वृत्ति विकास प्रक्रिया में कर्मी उन विभिन्‍न सोपानों से गुजरते हैं जिनमें प्रत्येक के अपने मुद्दे कार्य और विषय धाराएं होती हैं। इसे मुख्यतः दो प्रक्रियाओं में विभाजित किया जा सकता है: जीवन वृत्ति नियोजन तथा जीवन वृत्ति प्रबंधन नियोजन में कर्मियों के कौशल एवं योग्यता के अनुसार उनके लिए जीवन यृत्ति निर्धारित होते हैं। यह योजनाएं कर्मी स्वयं परामर्शदाताओं और वरिष्ठ कर्मियों की सलाह से बनाते हैं। जीवन वृत्ति प्रबंधन में उपर्युक्त नियोजन प्रक्रिया में निर्धारित योजनाओं को लागू किया जाता है। अतः जीवन वृत्ति में वे कदम सम्मिलित होंगे जिनसे जीवन वृत्ति योजनाएं सिद्ध हो सकती हैं। यह कर्मियों के जीवन वृत्ति विकास में संगठन की मूमिका पर भी केन्द्रित रहता है।

4) यौक्तिक प्रबंधन: प्रबंधन के स्तर पर लिए गए निर्णय और उठाए गए वे कदम जो संगठन एवं बाहय वातावरण या परिवेश के बीच तालमेल स्थापित करें, यौक्तिक प्रबंधन कहलाते हैं। इसका मुख्य केन्द्र /ध्यान संगठन के निष्यादन में सुधार है। इसमें युव्ति निरूपण, क्रियान्चयन एवं नियंत्रण जैसी प्रक्रियाएं सम्मिलित रहती है। यौक्तिक प्रबंधन में यह आवश्यक है कि वरिष्ठ प्रबंधक संगठन के मिशन, लक्ष्यों, उद्देश्यों, युक्तियों, कार्यक्रमों और नीतियों तथा संसाधनों एवं प्रौद्योगिकियों की बार-बार पुन: समीक्षा करते रहते रहें। साथ ही उन्हें उस बाहय परिवेश पर भी ध्यान रखना चाहिए जो संगठन के लिए अवसरों और चुनौतियों की रचना करता है। फिर बाहय एवं आन्तरिक आंकलनों के आलोक में संगठन के उन आयामों की पहचान की जाती हैं जिनमें परिवर्तन-परिमार्जन की आवश्यकता हो। इस संदर्भ में हम आन्तरिक एवं बाहय तार तम्य की बात भी कर सकते हैं। बाहय तार-तम्य संगठन की यौक्तिक योजनाओं के बाहरी परिवेश के साथ तालमेल है। आंतरिक तार तम्य संगठन की यौक्तिक योजना और उसके मिशन, लक्ष्य एवं उद्देश्यों, विश्वास एवं जीवन मूल्यों आदि के साथ तालमेल है। संगठन के अन्यान्य उप-तंत्रों, अर्थात प्रबंधन व्यवहार, (कर्मियों के साथ सलूक और उनका प्रबंधन), संगठनात्मक संरचना (संगठन में वरिष्ठतानुक्रम की रचना, मानव संसाधन तंत्र (विभिन्‍न मानव संसाधन प्रबंधन कार्य जैसे कि चयन, निष्पादन समीक्षा आदि) और अन्य कार्य संबद्ध व्यवहार एवं तंत्र (ध्रौद्योगिकीय आयाम, प्रयुक्त सूचना तंत्र आदि)। अतः किसी संगठन के प्रभावी रूप से कार्य करने और अपने लक्ष्य पाने के लिए इसके सभी उपतंत्रों के बीच तारतम्य होना चाहिए तथा उन्हें एक साथ समन्वित रूप से कार्य करना चाहिए।

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