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कार्यालयी हिंदी

 कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही बढ़ा है, लेकिन सरकारी कार्यालयों में जो पद्धति अपनायी गई, उसका स्वरूप अंग्रेजी शासन व्यवस्था के समान ही रहा, इसलिए कार्यालयी कामकाज के लिए अनुवाद का सहारा लिया गया। संपूर्ण कार्यविध साहित्य अंग्रेजी में था। कार्यालयी हिंदी के विकास में अनुवाद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कार्यालयी हिंदी में सरलता, स्पष्टता और बोधगम्यता प्रशासन ने आम जनता के लिए की है, जिससे उन्हें समझने में आसानी हो सके।

कार्यालयी भाषा औपचारिक होती है तथा इसकी औपचारिकता अधिकारी तंत्र के पदानुक्रम पर भी आधारित होती है। इसके साथ इसमें पारिभाषिक शब्दावली का सुनिश्चित अर्थ में प्रयोग होता है। भाषा का मुख्य उद्देश्य है अपनी बात सामने वाले से या जिसके लिए प्रयुक्त हो उसे आसानी से समझाई जा सके वह आसानी से ग्राह्य हो। समस्त उपबंधों के होते हुए भी आम लोगों में यह धारणा है कि हिन्दी का प्रयोग कठिन होगा क्योंकि साहित्यिक हिंदी अपेक्षाकृत कठिन होता है और यदि इस हिंदी का प्रयोग आम पत्राचार में किया जाए तो हास्यास्पद या समझने में कठिनाई आएगी।

शायद इसी भ्रम के करण लोग हिंदी को अपनाने से कतराते हैं। इस समस्या के निजात के लिए भारत सरकार, राजभाषा विभाग द्वारा आसान हिंदी के प्रयोग पर बल दिया जाता है। आसान हिंदी का अर्थ है- स्थानीय एवं आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग सरकारी कार्यों के लिए किया जाए। इस प्रकार से हिंदी का प्रचलन बढ़ेगा।  चूंकि हमारा देश विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों से युक्त है अतः आसान हिंदी समझ पाना सबके लिए आसान होगा तथा क्षेत्र विशेष के प्रचलित शब्दों के प्रयोग से भाषा की धारा भी सुचारु रूप से चलती रहेगी तथा इससे हिन्दी का प्रयोग भी बढ़ेगा।

आमतौर पर देखा गया है कि आसान शब्दों को ग्रहण करने में जितनी आसानी होगी, उतनी ही कठिनाई एवं भारी भरकम शब्दों के साथ आएगी। जिन सरकारी कार्यालयों में इस विधि का अनुसरण किया गया, वहाँ हिंदी का प्रचार प्रसार अपेक्षाकृत अधिक ही हुआ। उदाहरणस्वरूप अंग्रेजी का शब्द approval के लिए हिंदी के कई विकल्पों का प्रयोग किए जा सकता है, जो अनुमोदन, संस्तुति आदि हो सकता है। यह भी प्रावधान किया गया कि यदि कोई कार्मिक हिंदी लिखने में वर्तनी संबंधित यदि कोई त्रुटि भी करता है, तो उसे इस बात के लिए हतोत्साहित करने की बजाय प्रोत्साहित किया जाए कि उसने हिंदी में लिखने का प्रयास तो प्रारम्भ किया। कई बार ऐसा देखा गया ही कि अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों को हिंदी में अनूदित करवाने की आवश्यकता पड़ जाती है।

अनुवाद करते समय अधिकांशतः लोग शब्दानुवाद का प्रयास करते हैं। शब्दानुवाद कुछ हद तक तो ठीक है पर जब हम यह अनुवाद आसानी से भाषा के कथ्य को समझने के लिए करते है तो कहीं-कहीं शब्दानुवाद के कारण उस विषय का मूल अर्थ भारी और उबाऊ होने के साथ समझ से परे हो जाता है। ऐसे में यह सलाह दी जाती है कि भावानुवाद किया जाए तथा दिये गए अंग्रेजी पाठ के मूल कथ्य को प्रदर्शित किया जाए ताकि उसे समझने में आसानी हो तथा उसके अनुरूप पत्राचार किया जा सके। सरकारी कामकाज में पहले देखा गया है कि अंग्रेजी के कुछ ऐसे वाक्य होते हैं, जिनका हिंदी अनुवाद बड़ा ही कठिन लगता है या हिंदी में उन शब्दों या वाक्यों का प्रयोग करना बड़ा ही अटपटा लगता है,

जैसे- I am directed to say / I am directed to forward… ऐसा माना जाता है कि पत्र जारी करने वाला अधिकारी अपने से कुछ नहीं कर रहा है। वह सरकार के अनुदेश पर समस्त कार्य करता है. इसीलिए हमेशा पत्राचार में यह वाक्य प्रयोग किया जाता है। इनका हिन्दी में अनुवाद मुझे यह कहने का निदेश हुआ है/मुझे…. अग्रेषित करने का निदेश हुआ है। अंग्रेजी के पत्र में सम्बोधन के लिए Dear Sir का प्रयोग होता है, पर हिंदी में महोदय लिखा जाता है। अंग्रेजी पत्राचार में Yours faithfully, लिखा जाता है, पर इसके हिंदी रूप में आपका विश्वासी लिखना कतई उपयुक्त नहीं होगा। इसके स्थान पर हम ‘भवदीय’ लिखते हैं।

कार्यालयीन हिन्दी एवं अंग्रेजी में यदि हम अंतर देखें का प्रयास करें, तो सदा यह सलाह दी जाती है कि आसान हिन्दी का प्रयोग करें। इसके लिए आपके मन में जो विचार आता है, या जो कहा जाना है उसे साफ एवं स्पष्ट शब्दों में प्रस्तुत करें। राजभाषा अधिनिय के उपबंधों के अनुसार हिन्दी में प्रस्तुत किए गए मसौदे या नोट के लिए कोई भी अधिकारी उसके अंग्रेजी अनुवाद की मांग नहीं कर सकता है। चूंकि बहुत कम लोग ही सीधे अंग्रेजी में सोचकर अपनी बात अंग्रेजी में ही लिख पाने में समर्थ होते हैं, अधिकांशत: आम भारतीय कोई भी बात अंग्रेजी में लिखने से पूर्व अपने मातृभाषा में सोचता है फिर उन शब्दों या वाक्यों को मन ही मन अंग्रेजी में अनूदित करने का प्रयास करता है।

अब अनुवाद की प्रक्रिया में हमेशा व्याकरणिक शुद्धियों का ध्यान रखना पड़ता है। यदि थोड़ी सी अशुद्धि हो जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाने का अंदेशा रहता है। अंग्रेजी लिखने के इस प्रयास में अत्यधिक मानसिक श्रम करना पड़ता है । इसके इतर यदि हम हिन्दी में लिखने का प्रयास करते हैं तो हमें अधिक श्रम करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। हिन्दी में लिखने का सबसे बड़ा फाइदा यही है कि वाक्य संरचना में शब्दों की क्रम यदि आगे पीछे भी हो जाए तो वाक्य का अर्थ नहीं बदलता है । और फिर अपनी भाषा में अपनी बात कहना अधिक आसान होता है। हिन्दीतर भाषाई क्षेत्र के लोगों के लिए भी अपने मातृभाषा से अंग्रेजी की बजाय हिन्दी में कोई बात अनूदित कर कहना अत्यधिक आसान होता है। ऐसे में हिन्दी में सरकारी काम अत्यधिक आसान होता है । बस मन का डर दूर कर प्रयास करने की आवश्यकता है।

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