कालेकर रिपोर्ट की सिफारिशों को अस्वीकार करने से पिछड़े वर्ग नाराज हो गये। 1950 के दशक में कालेकर की रिपोर्ट को अस्वीकार किये जाने के समय से लेकर 1990 में वी. पी. सिंह सरकार द्वारा मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा तक पिछड़े वर्ग, समाजवादी नेताओं और राजनीतिक दलों तथा किसानों के नेताओं ने केन्द्र में सर्वजनिक स्थानों पर पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू करने के लिए समर्थन प्राप्त किया। राज्यों में आरक्षण के संबंध में दक्षिण भारत के राज्यों में 1950 से 1970 के दशकों में आरक्षण लागू कर दिया था और उत्तर भारतीय राज्यों में यह माँग अधिक बनी रही।
1970 के दशक के मध्य तक सार्वजनिक संस्थाओं में पिछड़े वर्गों का आरक्षण समाज के लिए एक साझा एजेंडा बन गया। किसान नेता चौधरी चरण सिंह को किसानों का खासकर जाट, यादव, कुर्मियों का समर्थन था तथा हिंदी बेल्ट में अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग फेडरेशन (ए.आई.बी.सी.एफ) का भी बना। 1977-79 में जनता पार्टी ने केन्द्र में सरकार बनाई थी उसमें मुख्य रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व था। पिछड़े वर्गों की पहचान करते और केन्द्र सरकार के संस्थानों में आरक्षण शुरू करने के प्रयास सुझाने के लिए मोरारजी देसाई सरकार पर दबाव डाला गया और पिछड़ा वर्ग आयोग गठन करने की माँग की गई।
इस प्रकार 1979 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार ने दूसरे पिछड़े वर्ग आयोग का गठन किया जिसे हम मंडल आयोग के नाम से जानते हैं। इसके अध्यक्ष बी. पी. मण्डल थे। मंडल आयोग ने पिछड़ेपन के लिए ग्यारह मापदंड तय किये थे और उन्हें तीन श्रेणियों में रखा। इनमें सामाजिक, आर्थिक और शेक्षिक श्रेणी थी जो कि पिछड़े वर्गों की पहचान कर सके। आयोग ने लगभग 3743 जातियों की पहचान की जो कि पिछड़े वर्ग में आ सके इनकी जनसंख्या करीब 52 प्रतिशत थी। जैसा कि सब जानते हैं 1931 की जनगणना के बाद जाति जनगणना हुई थी। इसी जनगणना को आधार बनाकर मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों की पहचान की थी। मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1980 में पेश की थी। इसके बाद इसे लागू करने की माँग उठने लगी।
विभिन्न राजनीतिक दलों के ओ.बी.सी. नेताओं ने इसे लागू करने की माँग उठाई। काँग्रेस से निकलने के बाद वी. पी. सिंह ने जनता दल का गठन किया। जनता दल में कई ओ.बी.सी. नेता भी शामिल थे। इसके परिणामस्वरूप जनता दल के चुनावी घोषणा पत्र में मंडल आयोग की सिफारिसों को लागू करने को शामिल किया गया था। 1989 के लोक सभा चुनावों में इसे विशेष रूप से घोषणा पत्र में शामिल किया गया था। इन चुनावों में काँग्रेस की पराजय हुई थी और वी. पी. सिहं ने नेतृत्व (1989-90) में गैर काँग्रेसी दल जनता दल की सरकार बनी थी। यह एक गठबंधन की सरकार थी जिसमें राष्ट्रीय मोर्चा और वाम-मोर्चा शामिल थे। क्योकि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की माँग घोषणा पत्र में शामिल थी इसलिए वी.पी. सिंह की सरकार ने जुलाई, 1990 में इसे लागू करने की घोषणा की। इस रिपोर्ट के लागू हाने के बाद देश में हिंसात्मक प्रदर्शन हुए, विशेषकर उत्तर भारत में।
कई याचिकाएं भी इसके खिलाफ दायर हुई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं को एक साथ 1992 में इन्द्रा साहनी बनाम सरकार के मामले में सुनवाई की। इसने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के विधि को उचित ठहराया। लेकिन इसमें कुछ शर्ते लगाई: पहली, इन वर्गों के अंदर क्रीमी लेयर लोगों को (आर्थिक रूप से मजबूत) लोगों को इससे बाहर रखा जाये।
उन्हें ओ.बी.सी. आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इसका मतलब है कि गैर क्रीमी लेयर, को आय की न्यूनतम सीमा में रखी गयी है। दूसरी, आरक्षण की अधिकतम सीमा वर्गों को 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसमें एस.सी., एस. टी. के लिए 22.5 प्रतिशत रखी गयी जबकि ओ.बी.सी. के लिये यह सीमा 27.5 प्रतिशत रखी गयी थी। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मुताबिक सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को 1993 में स्वीकार कर लिया था। 2006 में यू.पी.ए. ने सरकार ने केन्द्रिय सरकार ने शैक्षिक संस्थाओं में ओ.बी.सी. आरक्षण का विस्तार कर दिया था।
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