संदर्भ और प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित यशोधरा से उद्धृत है। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को नेत्र अवस्था में छोड़कर सन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात यशोधरा इस प्रसंग में दुखी होकर सखी से मन की बात कह रही है।
व्याख्या : यशोधरा का विचार है कि सिद्धार्थ ने जाकर उसके प्रति अच्छा ही आचरण किया। विश्व पूर्वक सिद्धि प्राप्त करें। कभी भी यशोधरा के दुख से वे पीड़ित ना हो। यशोधरा उन्हें किसी भी प्रकार उलाहना नहीं देना चाहती है। इस व्यवस्था में भी वे अधिक प्रिय लग रहे हैं क्योंकि उन्होंने संसार के कल्याण हेतु यह त्याग किया है।
यशोधरा की स्पष्ट मान्यता है कि उनके पति भले ही अपनी गृह त्याग दिया है लेकिन उन्हें सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी। सिद्धि प्राप्ति के पश्चात उनका पुनरागमन होगा और तभी यशोधरा के व्यथित प्राण उन्हें प्राप्त कर सकेंगे उनके दर्शन कर सकेंगे। यह सिद्धि उनसे अधिक संपूर्ण लोगों के कल्याण हेतु फलप्रसू होगी।
विशेष :-
. भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
. नाटक, गीत, प्रबंध,पद्य और गद्य सभी के मिश्रण एक मिश्रित शैली में यशोधरा की रचना हई
. बृहतर प्रेम हेतु निजी प्रेम को त्यागने की भावना तत्कालीन युग स्पंदन का प्रतीक है।
. तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता है।
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