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'परीक्कुट्टि' का चरित्र।

चेम्मीन दुःखान्त कथा का नायक है परीक्कुट्टि। तकषि दृढतापूर्वक मानते थे कि कथापात्र चलते-फिरते सहज मनुष्य हों। इसका मतलब यही कि जीवन की परिस्थितियों में प्रकट होनेवाली सहजता उसमें हो। चेम्मीन के ही नहीं, तकषि की सभी रचनाओं के कथापात्र इस प्रकार के हैं। दिन प्रतिदिन सामने दिखाई देनेवाले मनुष्यों के समान सहज एवं सरल। परीक्कुट्टि का जन्म नीकुन्नम के सागर तट प्रदेश में नहीं हुआ था। उसका बाबा रु उसी प्रदेश का झींगा व्यापारी था। बाबा की हथेलियों में झूलकर बचपन ही में तट प्रदेश में 14 पहुँचा था। उसी दिन उसे करूतम्म से एक भेंट मिली थी सागर तट से चुनकर सुरक्षित रखा गया एक बड़ा गुलाबी शंख उस स्नेह प्रकटन के पश्चात् दोनों उसी तट प्रदेश में मित्रता से रहे और बड़े हुए। फिर उनके मैत्री बंध में प्यार का नया रंग चढ़ा।

लेकिन परीक्कुट्टि ने कभी अस्य स्त्रियों के रीति-रिवाज़ एवं तमीज़ को तोड़ने की प्रेरणा नहीं दि। नाव का छावमबठकर बहुत कुछ हसत थाजसम दूसरा का हसा नहीं आता था।। इसबीच, एक दिन उसने पूछा- नाव और जाल खरीदने का पैसा दोगे ? पिताजी की बातों को सुनकर ही उसने यह – मांग की थी; उसमें प्रेम का स्वर नहीं था; एक साधारण वाक्य । लेकिन उस वाक्य ने परीक्कुट्टि के ही नहीं दूर प्रदेश तृक्कुन्नप्पुषा के पलनि के जीवन को भी बदल डाला। करुतम्मा का परिवार शिथिल हुआ। परीक्कुट्टि एवं करुतम्मा के जीवन टूट गये। सर्वत्र दुरन्त फैलने लगा। वह प्रश्न दुरन्त का बीज था। उस प्रश्न की प्रेरणा स्त्रोत परीक्कुट्टि का प्यार भरा हृदय था। लैला-मजनू के मजनू के समान, उसका एकमात्र ध्येय प्यार था। उसके प्रमाण स्वरूप जब जब चेम्पनकुंजु ने चाहा तब-तब उसने पैसे दिये।

नाव खरीदी गयी जब अच्छी पकड़ मिली, उसका माल परीक्कुट्ट को न बेचकर उसने धोखा दिया। उसकी परवाह किये बिना परीक्कुट्टि ने अपने भंडार की सूखी मछलियाँ चेम्पनकुंजु को दे दी | जिससे दूसरी नाव खरीदी गयी। ‘चाकरा’ के मौसम में असीम धन राशि मिली तो भी उसने परीक्कुट्टि के पैसे वापस नहीं दिये। परीक्कुट्टि चकना चूर हो गया। तब ‘चाकरा’ के सिलसिले में आये पलनि के साथ अपनी प्रेयसी के विवाह बन्ध पक्का करने की बात मालूम हुई। उनके भावोज्वल विदाई के समय परीक्कुट्टि ने कहा तृक्कुन्नप्पुषा में रहनेवाली करुतम्मा की याद में नीर्छन्नम में बैठकर गाते गाते मैं जान दे दूंगा। प्रेम के लिए प्रेमवाली धारण को दृढ करने वाला मुहूर्त। करुतम्मा जब पलनि के साथ गयी तो अस्वस्थता से चक्कि गिर पड़ी। तब उसने परीक्कुट्टि को बुला भेजकर अनेक दुःख भरी बातें बतायी और चेम्पनकुंजु की लालच की शिकायत की। उसके बाद उसने यह माँग की कि उसे करुतम्मा को बहन मानना चाहिए। चक्कि की मृत्यु की खबर देने गया।

चतुर्थवेदी (इस्लाम) जब मृत्यु की खबर देने गया तो करुतम्मा के जीवन में समस्याएँ बढ़ी। तृक्कुन्नपुषा के लोगों ने अफवाहें फैलायीं। पलनि अपनी पत्नी पर शक करने लगा। गिरी नारी के पति पर विपदा आ। पड़ती है इस विश्वास से प्रेरित होकर कोई भी पलनि को अपनी नाव में ले जाना नहीं चाहता था। पलनि अकेले छोटी नौका में काँटे में मछली फाँसने जाता था। समस्याएँ । बढ़ी। तब भी करुतम्मा एक धर्मनिष्ठ पत्नी बनकर रही करुतम्मा की छोटी बहन पंचमी ने आकर छोटे मियाँ की कष्ट-दशाएँ बतायी तो करुतम्मा ने पूछा- छोटे मियाँ कभी मेरी याद करते हैं? पलनि ने यह प्रश्न सुना तो उसका सन्तुलन नष्ट हुआ। वह अपनी पत्नी के विश्वास को समझने की कोशिश कर रहा था। गुस्से में आकर पलनि अपनी छोटी नौका लेकर समुद्र में गया। उसी रात को परीक्कुट्ट ने आकर करुतम्मा को बुलाया।

उस आश्रय हीन पुरूष को, जो अपनी ही कारण सभी प्रकार से चकनाचूर हो गया था, एक पल का आश्वास प्रदान करना चाहा, करुतम्मा के अन्दर की प्रेमिका ने वह, बाकी सब भूल गयी समुद्र में गये पलनि को भी भूल गयी। चाँदनी बिछी वह रात कालीरात बनी। परीक्कुट्टि का बुलावा स्वीकार कर करुतम्मा उसके साथ चली। दो दिन बाद सागर तट पर उनके शव दिखाई पड़े।

करुतम्मा एवं परीक्कुट के प्रेम सम्बन्ध में अपूर्व कल्पना शक्ति एवं चारुता है। इसी दशा में परीक्कुट्टि साधारण पुरूष एवं नायक बन जाता है। लगता है एक साधारण व्यक्ति, दूसरों के ही समान; लेकिन सबसे भिन्न है। अपनी प्यारी प्रेयसी दूसरे की पत्नी बनी माता बनी। तब भी उसके प्रति जो मनोदशा थी, उसमें कोई अन्तर नहीं पड़ता। यही अपूर्वता है। करुतम्मा के ही कारण परीक्कुट्टि की अजीविका, जीवन पारिवारिक संबन्ध सब नष्ट हुए यही साधारण धारणा हो सकती है। लेकिन इस असाधारण नायक के मन में ऐसी धारणा नहीं थी। वे दोनों, विशेषकर परीक्कुट्ट चाहता था कि जीवन में साथ-साथ मिलन न हो पाए तो मृत्यु के बाद हो जाए। धन, कर्ज, घाटा, चेम्पनकुंजु का धोखा में से एक भी उसके लिए समस्या नहीं।

सभी भौतिक परिवेश में वह प्रेमी था केवल एक प्रेमी करुतम्मा के परिचय से प्रेरित होकर परीक्कुट्टि ने पैसे दिये यह जानकारी जब प्राप्त हुई तब चेम्पनकुंजु ने कर्ज चुकाना चाहा। तब तक वह परीक्कुट्टि से कहा करता था कि ‘जब पैसा तब व्यापारा यह वाक्य सुनकर चुपचाप पराजित-सा परीक्कुट्टि लौट जाता था। उसका एक ही कारण था करुतम्मा के प्रति प्यार पागल बनकर निराधार प्रेतात्मा की तरह तट प्रदेश में भटकनेवाला चेम्पनकुंजु, कुछ परीक्कुट्टि के हाथों थमा देट’ है। 

तब उसने सोचा हो कि इस पैसे से जीवन दुबारा हरा-भरा बन जाएगा, तो वह परीक्कुट्टि बन नहीं पाता उसके लिए प्रेम ही सबसे मूल्यवान है। दूसरे दिन उसने करुतम्मा से मिलना चाहा। इस प्रकार के अपूर्व भावाविष्कार के मुहूर्त में उपन्यासकार सफलता प्राप्त करता है। सब ऐसा सोचते हैं की प्रेम का साक्षात्कार विवाह में है। परीक्कुट्ट विवाह की सोचता तक नहीं। इसलिए घर छोड़कर भागने की बात भी नहीं जैसे जीवन की पूर्णता मृत्यु में है वैसे यहाँ प्रेम, मृत्यु से पूर्ण हो जाता है। परीक्कुट्टि के ज़रिये तकषि ने अपूर्व प्रमानुभूति को अभिव्यक्त किया है। यह कथापात्र व्यक्त कर देता है कि तकषि का प्रेम दर्शन असाधारण है।

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