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प्रक्रियात्मक और वास्तविक लोकतंत्र के मध्य अंतर कीजिए।

लोकतंत्र को दो भिन्न आयामों के जरिए ठीक तरीके से समझा जा सकता है- प्रक्रियात्मक (न्यूनवादी) और मौलिक (अधिकतावादी)। प्रक्रियात्मक आयाम अपना ध्यान केवल लोकतंत्र प्राप्ति की प्रक्रिया अथवा साधनों पर केन्द्रित करता है। इसका तर्क है कि सार्वजनीन व्यस्क मताधिकार पर आधारित नियमित प्रतिस्पर्धी चुनाव और बहुत राजनीतिक सहभागिता के माध्यम से लोकतान्त्रिक रूप से चयनित सरकार बनती है।

जोसफ स्चुम्पेटर ने 1942 में अपनी पुस्तक ‘कैपिटलिज्म, सोशलिज्म और डेमोक्रेसी’ में कहा है कि लोकतंत्र राजनीतिक निर्णयों तक पहुँचने का एक संस्थात्मक व्यवस्थापन है जिसमें व्यक्ति प्रतिस्पर्धात्मक संघर्ष के माध्यम से लोगों के मत प्राप्त कर निर्णय करने की शक्ति प्राप्त करता है। हंटिगटन ने भी इसी तरह के विचारों को प्रतिबिंबित किया है, “लोकतंत्र की केंद्रीय प्रक्रिया उन लोगों द्वारा प्रतिस्पर्धी चुनाव के माध्यम से नेताओं का चयन है, जो शासित होते हैं। हालांकि, न्यूनवादी विचार में चुनावी भागीदारी से लोगों को निष्क्रिय माना जाता है और इस प्रकार से वे अपने प्रतिनिधियों द्वारा शासित होते हैं।

इस दृष्टिकोण का जोर इस बात पर है कि कैसे एक लोकतंत्रिक सरकार का चुनाव करें, नाकि स्वतंत्रता और आजादी पर व्यवस्था में नियंत्रण और संतुलन’ के अभाव में निर्वाचित नेता अपने लाभ के लिए प्रक्रियाओं और शक्तियों में हेर-फेर कर अधिनायकवादी बन सकते हैं। एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ऐसी सरकार जो लोगों की शक्ति अपने पास रखती है जो आधारभूत अधिकार अपने पास रखती है, वह कुलीन लोगों के लिए कार्य कर सकती है। इस तरह की घटनाओं का अस्तित्व 1980 और 1990 के बीच अर्जेंटीना और ब्राजील में देखने को मिला।

यद्यपि समय-समय पर आवधिक चुनाव होते रहते हैं परन्तु शक्तियों के एक व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित होने के कारण मध्य एशियाई देशों की सरकारों को भी प्रक्रियात्मक लोकतन्त्रों की श्रेणी में रखा जा सकता है। टेरी कार्ल का कहना है कि एक ऐसी परिस्थिति जहाँ चुनावी प्रक्रिया को लोकतंत्र के अन्य आयामों से प्राथमिकता दी जाती हो, न्यूनवादी दृष्टिकोण ‘चुनाववाद में दोष’ का कारण हो सकता है। फरीद जकारिया इसे ‘अनुदारवादी लोकतंत्र’ कहते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में सरकारें लोकतान्त्रिक पद्धति से निर्वाचित होती हैं लेकिन संविधान में वर्णित उनकी शक्तियों की सीमाओं का नजरअंदाज करते हैं और अपने नागरिकों के मूलभूत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से वंचित रखते हैं।

वास्तविक लोकतंत्र प्रक्रियात्मक लोकतंत्र की कमी को दूर करने का प्रयास करता है, इसका मानना है कि सामाजिक और आर्थिक असमानता लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में जनसहभागिता में बाधा हो सकती है। शासन करने के बजाय, वास्तविक अर्थों में यह अपना ध्यान सामाजिक समानता जैसे परिणामों पर केन्द्रित करता है। एक अर्थ में, यह सीमित लोगों के हित के बजाय सामान्य-हित की बात करता है। पुनर्वितरणात्मक न्याय के माध्यम से वांछित वर्ग यथा-महिलाओं और गरीबों के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है और ऐसी परिस्थिति का निर्माण राज्य द्वारा हस्तक्षेप के माध्यम से ऐसे वर्गों की राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित करके की जा सकती है।

विभिन्न राजनीतिक विज्ञानी यथा – जॉन लॉक, जीन जैक्स रूसो, इमैनुअल कांट, जॉन स्टुअर्ट मिल ने इस दृष्टिकोण के विकास में अपना योगदान दिया है। स्कम्पेटर का विश्वास है कि लोकतंत्र की ऐसी संकल्पना जो समानता के महत्वकांक्षी स्वरूप को अपना लक्ष्य मानती है खतरनाक है। इसके विपरित रूसो का तर्क है कि लोकतंत्र का औपचारिक प्रकार दास-प्रथा के समान है और केवल समतावादी लोकतंत्र ही राजनीतिक वैधता को प्राप्त है।

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