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जे. एस. मिल की स्वतंत्रता की परिकल्पना का परीक्षण कीजिए।

जॉन स्टूअर्ट मिल का स्वतंत्रता संबंधी विचार ऑन लिबर्टी (1859) नामक ग्रंथ में निहित है। मिल का स्वतंत्रता संबंधी ग्रंथ अंग्रेजी भाषा में स्वतंत्रता के समर्थन में लिखा गया, सबसे महत्वपूर्ण वक्तव्य माना जाता है। इसकी तुलना मिल्टन के एरियोपेरेजिटिका ग्रंथ से की जाती है। इस पुस्तक में धाराप्रवाह भाषा और तार्किक श का भरपूर प्रयोग हुआ है। यह पुस्तक सभी तरह के निरंकुशवाद के विरुद्ध एक मुखर आवाज है। इसलिए इस पुस्तक को एक श्रेष्ठ रचना और मिल को एक सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक चिंतक माना जाता है।

स्वतंत्रता पर निबंध लिखने की प्रेरणा-इस रचना के प्रतिपादन के पीछे मिल के प्रमुख प्रेरणा स्रोत – व्यक्तिगत अनुभव एवं समकालीन राजनीतिक वातावरण है। मिल का विश्वास था कि स्वतंत्रता के द्वारा ही व्यक्ति के मस्तिष्क और आत्मा का विकास हो सकता है। इससे ही सामाजिक कल्याण में वृद्धि हो सकती है। सामाजिक प्रगति व्यक्ति की मौलिक रचनात्मक प्रतिभा पर निर्भर करती है। उसने देखा कि इंग्लैंड की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी। राज्य के कार्य क्षेत्र का विस्तार हो रहा था। बेंथमवाद से उत्प्रेरित राज्य प्रजा पर अपना कानूनी शिकंजा कसता जा रहा था।

संसद ही सर्वोच्च थी। उसे भय था कि बहुमत का प्रतीक संसद अल्पसंख्यकों का शोषण करेंगे। उन पर जनमत का कानून थोपा जाएगा। इसलिए मिल ने बेंथम के उपयोगितावाद के स्थान पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उसने अपनी रचना में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पूरी व्याख्या प्रस्तुत की। स्वतंत्रता की परिभाषा-मिल ने अपने स्वतंत्रता सिद्धांत में स्वतंत्रता को दो प्रकार से परिभाषित किया है। प्रथम परिभाषा के अनुसार व्यक्ति अपने मन व शरीर का अकेला स्वामी है अर्थात् व्यक्ति की स्वयं पर प्रभुता है। इस परिभाषा के अनुसार व्यक्ति के कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।

मिल ने कहा है “अपने आप पर, अपने कार्यों पर तथा अपने विचारों पर व्यक्ति अपना स्वयं संप्रभु है।” मिल का कहना है कि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास स्वतंत्र वातावरण में ही संभव है। उसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति का कार्य दूसरों के लिए हानिकारक नहीं है तो उस पर प्रतिबंध लगाना न्यायसंगत नहीं है। यह परिभाषा व्यक्ति के आत्मपरक कार्यों के संबंध में पूरी स्वतंत्रता प्रदान करने के पक्ष में है। यह परिभाषा उपयोगिता के स्थान पर आत्म विकास पर जोर देती है। दूसरी परिभाषा के अनुसार व्यक्ति उन कार्यों को नहीं कर सकता, जिनसे दूसरों के हितों को हानि पहुंचती हो।

मिल का कहना है कि “व्यक्ति को उस कार्य को करने की स्वतंत्रता है जिसको वह करना चाहता है, किंतु वह नदी में डूबने की स्वतंत्रता नहीं रख सकता।” व्यक्ति केवल वही कार्य कर सकता है जिससे दूसरों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता हो।  इस परिभाषा के अनुसार व्यक्ति को सकारात्मक कार्य करने के अधिकार प्राप्त हैं। यदि व्यक्ति कोई अनुचित कार्य करता है तो समाज या राज्य के पास उसे रोकने का अधिकार है। यह परिभाषा अन्यपरक कार्यों से संबंधित है। इस प्रकार मिल का स्वतंत्रता से तात्पर्य करने योग्य कार्यों को करने तथा न करने योग्य कार्यों पर रोक से है। स्वतंत्रता के दार्शनिक आधार-मिल ने अपने स्वतंत्रता के सिद्धांत का समर्थन दो प्रकार के दार्शनिक आधारों पर किया है।

पहला- व्यक्ति की दृष्टि से तथा दूसरा- समाज की दृष्टि से। पहला – मिल का मानना है कि व्यक्ति का उद्देश्य अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास है जो कि स्वतंत्र वातावरण में ही संभव हो सकता है। यदि व्यक्ति को स्वतंत्रता प्रदान न की जाए तो उसके जीवन का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए व्यक्ति के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए स्वतंत्रता का होना बहुत जरूरी है।

दूसरा – दार्शनिक आधार के समर्थन में मिल ने कहा है कि मानव समाज की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों को विकास के अवसर प्रदान किए जाएं, ताकि वे अपना सर्वांगीण विकास कर सकें। मिल का मानना है कि समाज का विकास विशेष व्यक्तियों के कारण होता है। ये व्यक्ति कला, विज्ञान, साहित्य आदि क्षेत्रों में नवीनता लाने का सतत् प्रयास करते रहते हैं। परंतु उस समाज में रूढ़िवादिओं की संख्या अधिक होने के कारण परिवर्तन में बाधा पहुंचती है। इससे समाज के उत्थान का मार्ग अवरुद्ध होता है।

वे नवीन विचारधाराओं के प्रवर्तकों को सनकी समझते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं। लेकिन मिल का मानना है कि समाज की प्रगति इन्हीं पागल सनकी व दीवाने व्यक्तियों के कारण होती है। इस प्रकार मिल ने व्यक्ति व समाज के विकास के लिए स्वतंत्रता को आवश्यक माना है।

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