प्रस्तुत कविता कंबल भारती की ‘तब तुम्हारी निठा क्या होती से लिया गया है। इन पंक्तियों में कहा गया है कि यदि तुम (अछूत, दलित) वेद का एक शब्द भी सुन लो, तो तुम्हारे कानों में पिघला हुआ शीसा डाल दिया जाएगा। इसी प्रकार यदि तुम वेदपाठ करने की धृ-टता करो तो तुम्हारी जिह्वा काट दी जाएगी। इसी प्रकार यदि तुम यज्ञ करने का दुस्साहस करो तो तुम्हारी धन संपत्ति छीन ली जाएगी। तुम्हारा उसी समय, उसी स्थान पर वध कर दिया जाएगा।
इन प्रश्नों की बौछार करते हुए कवि द्विज वर्ग को पूछता है कि इन परिस्थितियों में दण्ड पाने के बाद भी क्या तुम्हारी नि-ठा इसी प्रकार कायम रहेगी यहां ज्ञातव्य है कि धर्म सूत्रों के अनुसार यदि कोई शूद्र वेद का एक शब्द भी सुन ले तो उसे धर्म की अवज्ञा करने पर दण्ड देने का कठोर आदेश था। मनुस्मृति के सूत्र 12.4) में कठोरता से यह घोनित किया गया है। इसमें आगे कहा गया है कि यदि धर्मोपदेशं
राम द्वारा शंबूक का वध मनुस्मृति के इसी धर्मसूत्रों में दिए गए इसी विधि-विधान के पालन हेतु किया गया था। किसी ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु के लिए शंबूक को दोष दिया गया था। ज्ञान प्राप्ति हेतु अध्ययनरत शंबूक काय दुस्साहस ब्राह्मणवाद का सीधे-सीधे उल्लंघन था अतः श्रेष्ठी ब्राह्मण वर्ग ने अयोध्या के नरेश राम को राजा के कर्तव्य पालन का आदेश दिया। प्रजारक्षक राम ने धर्म विरोधी आचरण के लिए शंबूक का इसीलिए शिरोच्छेद कर दिया था। कविता में वर्णित अन्य पक्तियों के अनुसार शूद्र यदि यज्ञ करने का प्रयत्न करे तो संपत्ति छीन लेने का आदेश भी दिया गया है क्योंकि शूद्र को धन संचय करने की धर्म शास्त्रों द्वारा मनाही की गई है।
यदि शूद्र इन आदेशों की अवहेलना करते हुए धन संचय करने का साहस जुटाता है तो उसके लिए कठोर दण्ड मनोनीत किए गए हैं। मनुस्मृति के अनुसार शूद्र द्वारा धन संचय करने से ब्राह्मण को दुःख पहुंचता है। कवि ब्राह्मणवाद के इस अन्यायपूर्ण आदेश को नकारते हुए प्रश्न करता है कि क्या तुम्हारी नि-ठा तब भी वैसी ही बनी रहती जब तुम्हारी भी संपत्ति छीनने का आदेश धर्म द्वारा दिया गया होता और उसके पश्चात् तुम्हारे वध करने का आदेश दिया जाता।
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