डॉ. अंबेडकर ने हिन्दू कानून व्यवस्था में परिवर्तन लाने के लिए अनेक प्रयास किए। इन्हीं प्रयासों में एक क्रान्तिकारी प्रयास हिन्दू कोड बिल की रचना करना था। संवैधानिक रूप से स्त्रियों के लिए आर्थिक अधिकारों की निश्चितता सुनिश्चित हो। यह पहली बार था, जब किसी बिल में स्त्रियों के आर्थिक अधिकारों को सुनिश्चित किया गया था। इस बिल में निम्नलिखित प्रावधान किए गये थे। बाल विवाह पर प्रतिबंध, स्त्रियों को जीवनसाथी के चुनाव में स्वतंत्रता स्त्रियों को अन्तरजातीय विवाह का अधिकार, तलाक लेने का अधिकार, स्त्रियों का सम्पत्ति पर अधिकार तथा गोद लेने का अधिकार हिन्दू नारियों द्वारा सदियों से झेली जा रही वंचनाओं को समाप्त करने का यह संवैधानिक प्रयास था।
परन्तु संसद में तथा ससंद के बाहर हिन्दू कोड बिल का प्रबल विरोध किया गया। इसके विरोध के अनेक कारण थे, परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण कारण था- हिन्दू परिवारों के टूटने का भय । बिल के विरोध में अभिव्यक्त प्रतिक्रियाएँ- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय संविधान समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। इस अवसर पर मद्रास भारतीय महिला एसोसिएशन संस्था द्वारा 26 अप्रैल, 1949 को उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर उनका सम्मान किया गया था। महिला संस्था ने एक प्रस्ताव भी रखा, जिसमें यह कहा गया था कि राष्ट्र के सभी नेता लोकसभा में ‘हिन्दू कोड बिल’ को प्रस्तुत करने का प्रयास करें, ताकि जल्दी से जल्दी यह बिल एक कानून का रूप ले सके।
डॉ. पट्टाभिसीतारमय्या ने भी इस बिल का विरोध किया। हिन्द कोड बिल के विरोध में अनेक अवरोध खडे हो गए। इस बिल का विरोध करने वाले लोगों ने स्त्रियों के अधिकारों का विरोध इसलिए भी किया, क्योंकि उनका धर्म एवं परम्परायें स्त्री को निम्न दर्जा देते हैं। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का तो सम्पूर्ण परिवार ही इस बिल के विरोध में खड़ा हो गया था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की माँ ने कुछ अन्य महिलाओं को साथ लेकर संसद के बाहर इस बिल के विरन्ध में प्रदर्शन किया। वहीं मुखर्जी संसद के अन्दर बिल का विरोध कर रहे थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जग संघ की स्थापना की थी तथा वे चार वर्ष तक नेहरू मंत्रिमण्डल में मंत्रिपद पर कार्यरत भी रहे । हिन्दू कोड बिल का विरोध करते हुए उन्होंने कहा था कि इस बिल में सांस्कृतिक विवाह को धार्मिक विवाह बना दिया गया है।
हिन्दू समाज अनेक प्रकार की कठिनाईयों तथा विषमताओं के बावजद हजारों वर्षों से जीवित है। हिन्दू कोड बिल भारतीय हिन्दू स्त्री के लिए एक प्रगतिशील कदम तथा संवैधानिक कानून बनने जा रहा था। यह बिल हिन्दू स्त्रियों की दासत्व एवं निर्भरता से मुक्त कर उन्हें प्रगति की ओर ले जाने वाला कदम था। हिन्दू कोड बिल के विरोधियों में अन्य नाम थे- सांसद नजरूद्दीन अहमद, बाबूराम नारायण सिंह तथा श्यामनंदन सहाय । नजीरूद्दीन अहमद यह मानते थे कि हिन्दू कोड बिल संयुक्त परिवार प्रथा को समाप्त कर देगा। यह भी कहा गया कि यह वैदिक साहित्य के विरुद्ध है तथा हिन्दुओं की धार्मिक संरचना को बर्बाद कर देगा।
आचार्य कृपलानी हिन्दू कोड बिल के समर्थक थे। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने मंत्रिमण्डल की बैठक में हिन्दू कोड बिल के बारे में कुछ भी नहीं कहा, परन्तु जब बिल को संसद में प्रस्तुत किया गया, तो उन्होंने इस बिल को पास न करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। जवाहरलाल नेहरू भी हिन्दू कोड बिल के विरोध से पीछे हट गये। वे यह चाहते थे कि बिल के विवाह एवं तलाक के हिस्सों को अलग करके पेश करना चाहिए। आखिरकार हिन्दू कोड बिल विरोधियों के निशाने का शिकार हो गया। भारतीय नारी को उन्नति के अवसर देने वाले भारतीय नारी को सक्षम बनाने वाले तथा तलाक का अधिकार देने वाले इस बिल को दफन कर दिया गया।
इस बात से नाराज होकर अंबेडकर ने 100 अक्टूबर, 1951 को नेहरू मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। बाद में 1955-56 में हिन्दू कोड बिल को चार भागों में बाँटकर टुकड़ों में पारित किया गया। ये चार भाग इस प्रकार हैं
1. हिन्दू उत्तराधिकार कानून- 1956,
2. हिन्दू विवाह विषय विधि – 1955,
3. हिन्दू दत्तक ग्रहण तथा भरण-पोषण कानून- 1956,
4. हिन्दू अप्राप्तवयता और संरक्षकता कानून-1956
इन सभी कानूनों के पास होने से स्त्रियों को अत्यधिक लाभ हुआ। इन कानूनों के कारण ही स्त्रियों को पिता तथा पति की सम्पत्ति में अधिकार मिला, दत्तक पुत्र गोद लेने का अधिकार मिला, भरण-पोषण का अधिकार मिला तथा अपनी जाति से बाहर विवाह करने का अधिकार मिला। हिन्दू कोड बिल जैसा प्रगतिशील कानून तैयार करने तथा क्रान्तिकारी दृष्टिकोण के कारण डॉ. अंबेडकर को स्त्री मुक्ति संघर्ष का योद्धा कहा गया।
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