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भाषण की शैलीगत विशेषताएँ बताते हुए संबोधन कारक का परिचय दीजिए।

लेखन की भाषा और भाषण (बोलचाल) की भाषा में फर्क होता है। यदि वक्ता ने भाषण देने से पूर्व उसे लिखित रूप नहीं दिया है, तो वक्ता को बोलते हुए अपने वाक्य की रचना करनी पड़ती है, भाषण में छोटे-छोटे वाक्य होते हैं, जो कई उपवाक्यों से मिलकर बनते हैं। लिखित भाषा की तरह लंबे, मिश्रित एवं जटिल वाक्य नहीं होते हैं, वक्ता अपने भाषण द्वारा अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए बात पर बल देने तथा लोगों को प्रभावित करने के लिए एक ही शब्द या वाक्य को कई रूपों में दोहराता है।

वक्ता, श्रोताओं को अपनी बातों में शामिल करने के लिए उन्हें प्रत्यक्ष संबोधित करता है।

1. पुनरावृत्ति- वक्ता भाषण में अपनी बात को स्पष्ट करने तथा उस पर बल देने के लिए बातों की पुनरावृत्ति करता है। उदाहरण के लिए, पाठ के रूप में इस इकाई में दिए जाने वाले भाषण के निम्नलिखित अंश प्रस्तुत हैं।

(क) आज का दिन, यह 13 अगस्त का दिन भारतवर्ष के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इस दिन हमने एक नया पन्ना पलटा। यहाँ रेखांकित वाक्यों में, कथन की पुनरावृत्ति है, जो अपनी बात को स्पष्ट करने तथा उस पर बल देने के लिए प्रयुक्त हुई है।

(ख) वर्षगाँठ चाहे व्यक्ति की हो, वर्षगाँठ चाहे देश की हो, एक शुभ अवसर होता है, खुशी का दिन होता है। इस वाक्यांशों में भी पुनरावृत्ति अपनी बात पर बल देने के लिए है।

(ग) वक्ता अपनी भाषण में पुनरावृत्ति के लिए एक ही शब्द के कई पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग भी कर सकता है, जिससे उसकी बात पर अधिक-से-अधिक बल पड़े, जैसे श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे राधा! जाकर अपनी सखी, सहेलियों से कह दो मेरे जैसा मित्र, सहचर नहीं मिलेगा। (इस वाक्यांश में सखी, सहेली, मित्र एवं सहचर पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग बल देने के लिए किया गया है।)

2. वाक्य-क्रम- भाषण की भाषा कुछ अव्यवस्थित होती है, क्योंकि वक्ता अपनी बातों को क्रम देते हुए बोलता है। भाषण की भाषा में लिखित भाषा की तरह पदों का क्रम तथा संगठन नहीं होता है। उदाहरणार्थ हमारे जो प्रश्न हैं, वे बहुत बड़े हैं, लेकिन ऐसे नहीं है कि जो हिम्मत से काबू नहीं कर सकें उन पर। उदाहरण में दिया गया वाक्य हिंदी व्याकरण के अनुसार गलत है, लेकिन बोलते समय भाषा के इस रूप में प्रयोग को दोष/गलत नहीं माना जाता है।

इसका सही वाक्य क्रम होगा-हमारे जो प्रश्न हैं, वे बहुत बड़े हैं, लेकिन ऐसे नहीं हैं कि उन पर हिम्मत से काबू नहीं किया जा सके। हिंदी के वाक्यों में प्राय: पहले कर्ता फिर कर्म और अंत में क्रिया का प्रयोग होता है। जैसे- ‘मीरा स्कूल जाती है।’

कर्ता, कर्म, क्रिया
'मीरा' 'स्कूल' 'जाती है'
  1. उपवाक्य- ऐसा पदसमूह, जिसका अपना अर्थ हो, जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उद्देश्य और विधेय हो, उपवाक्य कहलाता है। उपवाक्यों के आरम्भ में अधिकतर ‘कि’, ‘जिससे’, ‘ताकि’, ‘जो’, ‘जितना’, ‘चूंकि’, ‘यदि जब’, ‘जहाँ’ इत्यादि समुच्चयबोधक लगे होते हैं।

वक्ता अपने भाषण में उपवाक्यों का अधिक प्रयोग करता है, जिससे वाक्य-रचना ऐसी होती है कि कथ्य स्पष्ट होने के साथ-साथ बात पर भी पूरा बल पड़े, ताकि सुनने वाले प्रभावित हों। वाक्य, शब्दों का ऐसा समूह है जिससे पूरा विचार प्रकट होता है, लेकिन जब कोई पूरा विचार एक से अधिक वाक्यों में प्रकट होता है और उन्हें एक ही वाक्य में प्रस्तुत किया जाता है, तब उनमें से प्रत्येक बाक्य को उपवाक्य कहते हैं।  जैसे-“यह सभी जानते हैं कि शिक्षा व्यक्ति का मूल अधिकार है, लेकिन शिक्षा प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वयं परिश्रम करना पड़ता है।” इस वाक्य में दो उपवाक्य हैं।

(i) यह सभी जानते हैं कि………….अधिकार है

(ii) (लेकिन) ‘शिक्षा प्राप्त करने……………परिश्रम करना पड़ता है।’ ।

बोलने और लिखने, दोनों तरह की वाक्य रचनाओं में उपवाक्यों का प्रयोग किया जाता है, परंतु बोलने की भाषा में इसका अत्यधिक प्रयोग होता है। भाषण में उपवाक्य पूरी वाक्य रचना में बिखरे होते हैं, लेकिन लिखित में वाक्य-रचना छोटी और गठीली होती है। जैसे-आज बाजार बंद था, इसलिए वहाँ पर कुछ भी नहीं मिला। (भाषण का वाक्य) (11 शब्द) लिखने की भाषा में वाक्य रचना-बाजार बंद होने के कारण कुछ भी नहीं मिला। (भाषण का वाक्य)(9 शब्द)

संबोधित करना : वक्ता के भाषण में संबोधन की भाषा होती है, जिससे वह अपने श्रोताओं को सीधे संबोधित करता है। भाषण में वाक्य की शुरुआत इस प्रकार होती है। जैसे-‘आप जानते हैं कि’, ‘यहाँ पर खड़े होकर’, ‘हमारे किसान भाई’, ‘मजदूर भाइयो’, ‘मैं यहाँ बता देना चाहती हूँ’ आदि। भाषण में वाक्य कई बार अपने श्रोताओं को अलग-अलग वर्गों में बाटकर उनसे संबंधित बिन्दुओं पर अपने भाषण को केंद्रित करता है।

संबोधन कारक :

संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे किसी को बुलाने, पुकारने या बोलने का बोध होता है; जैसे-मेरे प्यारे देशवासियो! मेरे भाइयो! बहनो! आदि, तो इस तरह के शब्दों को ही व्याकरण में संबोधन कारक कहते हैं। संबोधन की पहचान विस्मयादिवाचक चिह्न (!) से होती है।

संबोधन कारक की रचना निम्न प्रकार से देख सकते हैं

        एकवचन        बहुवचन

पुल्लिग बालक! बालको
स्त्रीलिंग लड़की! लड़कियो!

संस्कृत भाषा में संबोधन कारक के कुछ अन्य रूप भी मिलते है। मूल शब्द के साथ संबोधन कारक के कुछ निम्नलिखित उदाहरण —

मूलशब्द संबोधन

प्रिय प्रिये!
राधा राधिके!
ब्राह्मण हे ब्राह्मण
बालिका बालिके!

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