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पाठयक्रम में सम्मिलित इतिहास विषयक पाठ की वर्तनी की विशेषताएँ लिखिए।

 इतिहास का प्रयोग विशेषतः दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की घटनाएं और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा। इतिहास शब्द का तात्पर्य है ‘यह निश्चय था’। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं, उसमें अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखने वाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है।

दूसरे शब्दों में, मानव की विशिष्ट घटनाओं का नाम ही इतिहास है या फिर प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली मानव जाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन ही इतिहास है। इन ऐतिहासिक साक्ष्यों का वर्णन ही इतिहास है। इन ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है। आधुनिक युग की उन्नति का आधार हमारा इतिहास है, इससे मानव को अपने अतीत का ज्ञान होता है। इतिहास का विषय-क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, क्योंकि जीवन के हर पहलू का बीता हुआ पल इतिहास की श्रेणी में आता है।

समाज में मानव का जीवन उसकी विभिन्न क्रियाओं के आधार पर विभिन्न ‘सामाजिक विज्ञानों’ के लिए विषयवस्तु की उत्पत्ति एवं विकास हुआ है। पाठ्यक्रम में निर्धारित इकाई के अंतर्गत इतिहास की घटनाओं का वर्णन करते समय भाषा का रूप कैसे बदलता है तथा ‘इ’, ‘ई’, ‘ईय’, ‘इक’ और ‘इत’ प्रत्ययों का विवेचन करते हुए इनसे बनने वाले शब्दों का परिचय है। उपर्युक्त प्रत्ययों की जानकारी प्राप्त करने के लिए पारिभाषिक शब्दों को समझने और उनके उचित प्रयोग को जानने की आवश्यकता है। 

र्तनी संबंधी कुछ नियम : 

यह पाठ इतिहास विषय पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित है। इससे संबंधी कई शब्द प्रयुक्त हुए हैं; जैसे-आंदोलन, अधिवेशन, राष्ट्रीय, संगठित आदि। किसी विषय विशेष से संबंधित शब्दों की पारिभाषिक शब्द कहते है

प्रत्ययों से शब्द रचना :

एक शब्द में दूसरे शब्दों के मेल से भाषा के बहुत सारे शब्द बनते हैं; जैसे-दया शब्द से निर्दय, दयावान, दयनीय, दयालु आदि शब्द बनते हैं। इसे प्रत्यय-प्रयोग कहते हैं। प्रत्यय का सही ज्ञान होने से प्रत्ययों से बनने वाले शब्दों में वर्तनी दोष नहीं होता है।

(i) प्रत्यय ‘ईय’ से बनने वाले शब्दों में दीर्घ /ई/ होता है; जैसे-स्वर्गीय, शासकीय।
इन शब्दों में ‘स्वर्ग’ से ‘स्वर्गीय’ बनता है, बाकी शब्द भी इसी प्रकार बने हैं।

(ii) प्रत्यय ‘इत’ विभिन्न प्रकार के शब्दों में जुड़ता है; जैसे

हर्ष - हर्षित
आनंद - आनंदित
शोभा - शोभित
पुष्प - पुष्पित

(iii) प्रत्यय ‘ई’ का प्रयोग संज्ञा शब्दों से विशेषण एवं भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए किया जाता है; जैसे-धनी, लालची, बुद्धिमानी, पहाड़ी, ऊनी आदि। कुछ अकारांत और आकारांत शब्दों में ‘ई’ प्रत्यय जुड़ने पर उनका रूप ऐसे बनता है

चतुर - चतुराई
अच्छा - अच्छाई
भल - भलाई

(iv) प्रत्यय ‘इ’ सिर्फ संस्कृत शब्दों में आता है; जैसे-क्रांति, गति, प्रकृति आदि।

वर्तनी के दो रूप : 

हिंदी भाषा में कुछ शब्द दो वर्तनी रूपों में आ गए हैं। हिंदी में गए-गये, गई-गयी दोनों रूप प्रयोग किए जाते हैं। इसी प्रकार कुछ अन्य शब्दों में भी यह स्थिति है

आयी - आई
पायी - पाई
लिये - लिए

उर्दू तथा अंग्रेजी से हिंदी में आए कुछ अन्य शब्दों में भी दो वर्तन रूप हैं, जैसे

बर्बादी - बरबादी
सर्कस - सरकस

संस्कृत से आए हुए कुछ अन्य शब्दों की वर्तनी में दो वर्तनी रूप हैं और दोनों सही माने जाते हैं, जैसे

महत्व - महत्व
पूर्ति - पूर्ति
अर्ध - अर्द्ध

पाठ में प्रयुक्त कुछ शब्दों की वर्तनी की विशेषताएं :-

(i) पूर्ण, स्वरूप, हीन, शील, शाली आदि प्रत्यय मूल के साथ मिलकर आते हैं। उदाहरण के लिए, महत्त्वपूर्ण, परिणामस्वरूप, शक्तिहीन, प्रगतिशील, शक्तिशाली।

(ii) हिंदी में दोनों प्रकार से लिखे जाने वाले संस्कृत के हलंत शब्द, जैसे

पश्चात - पश्चात्
संस्थान - संस्थान्
वरन - वरन्

(iii) दो शब्दों में अंतर

नम्र - नम्रता
भिक्षा - भिक्षुक
पूर्ण - पूर्णता

(iv) कुछ अंग्रेज़ी शब्द उच्चारण की विशेषता के कारण ‘ए’ से लिखे जाते हैं, किंतु उनका उच्चारण ‘ऐ’ जैसा होता है, जैसे-एक्ट, एसोसिएशन।

(v) संस्कृत शब्द ‘उपरि’ से दो शब्द बनते हैं

उपर्युक्त – ऊपर लिखा गया
उपर्युक्त (उपरि + उक्त) – ऊपर बताया गया। 
कई लोग अक्सर ‘उपरोक्त’ लिखते हैं, जो गलत है।

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