महिलाओं के उत्पीडन और प्रकृति पर प्रभुत्व का एक दूसरे से संबंध है और दोनों एक दूसरे को परस्पर शुद्ध करते हैं अतः उन्हें सामूहिक रूप से संबोधित किया जाना चाहिए – यह दार्शनिक दृष्टिकोण वर्णक्रम के आर पार ईकोफेमिनिस्टों को एकजुट करता है। अधिकांश ईकोफेमिनिस्टों विद्वता जैसे ऐलिस वॉकर वंदना शिवा इवोन गेबारा, रोजमेरी रूथर सैली मैकफेग, पौला गन ऐलन, ऐंडी स्मिथ और कैरन वॉरन अन्य, प्रकृति के साथ मानव संबंध के नैतिक आधार पर विचार करती हैं।
बीसवीं सदी के उतरार्ध में ईकोलॉजिकल नारीवाद या पारिस्थितिक नारीवाद का उदय पर्यावरण संबंधी और नारीवादी सिद्धांतों के प्रतिच्छेन के साथ हुआ। इस शब्द को सर्वप्रथम 1974 में फ्रॉस्वा ओबन द्वारा लिखित पुस्तक “ल फेमिनिज्म ऊ ला मोर्त’ अर्थात नारीवाद या मुत्य में प्रस्तावित किया गया। ईकोफेमिनिस्ट यह तर्क देते है कि पितृसता पदानुक्रम के द्वैतवादी ढाँचों के माध्यम से समाज में अपने आपको अभिव्यक्त करती है: संस्कृति बनाम प्रकृति, नर बनाम नारी, भौतिक बनाम भाव, श्वेत बनाम अश्वेत इत्यादि।
पितृसत्तात्मक उत्पीडन की व्यवस्थित प्रणाली इन विचरों बाईनरी को आरोपित करते हुए न केवल अपने आपको सुदढ़ बनाती है बल्कि ईकोफेमिनिस्टों के अनुसार, वह विज्ञान और धर्म, दोनों का प्रयोग उपकरणों के रूप में करते हुए, इन्हें पवित्र भी बना देती है। इस प्रकार जब तक किसी भी सामाजिक संरचना के परम आवश्यक या अनिवार्य घटक के रूप में ये वैध अवस्थाएँ बनी रहेगी, ये पितृसता को पनपने में मदद करेंगी।
इन आधारों पर ईकोफेमिनिस्ट बाईनेरी पदानुक्रमों में संस्कृति के विभाजन की अवज्ञा करते है। उनकी ऐतिहासिक पद्वति पदानुक्रमित द्विविधनाओं के स्थान पर विविधा के अन्तर्गत एक संबंध के अनुपालन का सुझाव देती हैं। यह पद्धति, ऐसी विविधताओं की शक्ति पर बल देने के कारण, एक नारीवादी उपागम है जो पर्यावरण के विचारों को नारीवाद के विचारों से जोडती है। रूथर अपनी 1975 की कृति ‘न्यू वुमन न्यू अर्थ’ और मेरी डेली 1978 में अपनी कृति ‘गाइनइकोलजी’ के माध्यम से इस विचारधारा के पथप्रदर्शक बने।
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