मंत्रीपरिषद सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत पर कार्य करती है। इस सिद्धांत के अंतर्गत सभी मंत्री अपने कार्य के प्रति एवं सरकार के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं। सामूहिक नेतृत्व के अंतर्गत, सभी मंत्री कैबिनेट के निर्णयों की जिम्मेदारी सामूहिक रूप से साझा करते हैं। शंका एवं असहमति केवल, कैबिनेट के कमरे तक सीमित रहती है।
एक बार यदि कोई निर्णय ले लिया तो यह सम्पूर्ण सरकार का निर्णय माना जाता है। यदि कोई मंत्री सरकार के निर्णयों से सहमत नहीं है तथा उनका समर्थन नहीं करता है तो उसे नैतिक आधार पर मंत्रीपरिषद से त्यागपत्र देना पड़ता है।
यदि मंत्रीपरिषद का गठन विभिन्न राजनीतिक दलों के गठबंधन से किया गया हो तो यह न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर आधारित होता है ताकि सभी मंत्रालयों में सामन्जस्य बना रहे तथा सभी राजनीतिक दलों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के साथ खड़ा रहना चाहिये ।
यदि वे ऐसा नहीं करते तो मंत्रीपरिषद अस्तित्व में नहीं रह सकती। मंत्रीपरिषद के भीतर एकता न केवल इसके लिए अनिवार्य है बल्कि इसको कुशलता और कार्यक्षमता के लिए भी जरूरी है।
इसके लिए जनता का विश्वास जीतना भी आवश्यक है। जनता सरकार के सदस्यों के बीच सार्वजनिक आक्षेप और लोक नीति जैसे मामलों में आपसी टकराव इसके पतन का प्रमुख कारण था 1979 में।
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