संविधान का अनुच्छेद 143 सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श की अधिकारिता प्रदान करता है। सार्वजनिक महत्व की विधि या तथ्य के किसी ऐसे प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय की राय राष्ट्रपति माँग सकता है जिसके बारे में उसका विचार हो कि ऐसी राय प्राप्त करना है।
परामर्शवादी भूमिका सर्वोच्च न्यायालय की साधारण भूमिका से अलग है। इसके तीन प्रमुख कारण है।
(1) यदि दो पक्षों में कोई मुकदमा न हो,
(2) परामर्शीय राय सरकार पर बाध्य नहीं होगी, तथा
(3) कोर्ट का यह निर्णय लागू न माना जाये। सर्वोच्च न्यायालय की परामर्श तभी तक मान्य है जब तक कि किसी महत्वपूर्ण मसलों पर उसकी राय नहीं माँगी गयी हो। इसी प्रकार यह सरकार के लिए भी एक अच्छा विकल्प होता है किसी राजनीतिक मुद्दों को हल करने के लिए।
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