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एक क्षेत्र के रूप में पूर्वोत्तर भारत के गठन की चर्चा करें।

आज़ादी से पूर्व यह क्षेत्र मुख्य रूप से असम एवं बंगाल क्षेत्र में विभाजित था। विभाजन के पश्चात् तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्र में असम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों से अलग होकर धीरे-धीरे सात राज्यों का गठन हुआ। इन राज्यों के उद्भव ,में प्रमुख रूप से राजनीतिक एवं स्थानीय समुदायों ने अहम भूमिका निभाई। स्थानीय समुदाय जैसे- नगाओं की मांग पर नगालैंड राज्य का गठन किया गया। उत्तर-पूर्व क्षेत्र में इन सात राज्यों के अतिरिक्त सिक्किम को भी शामिल किया जाता है। यद्यपि सिक्किम मूल रूप से भारत का हिस्सा नहीं था लेकिन वर्ष 1975 में सिक्किम की इच्छा के अनुरूप इसको भारत में शामिल कर लिया गया। इसके उत्तर में चीन एवं भूटान, पूर्व की ओर म्यांमार तथा दक्षिण में बांग्लादेश अवस्थित है। इसकी अवस्थिति भू-सामरिक एवं आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत के अन्य हिस्सों से यह क्षेत्र सिलीगुड़ी गलियारे के माध्यम से ही प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है जिससे कनेक्टिविटी इस क्षेत्र के लिये प्रमुख समस्या है।

साथ ही यह क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है तथा यहाँ विकास से जुड़ी गतिविधियाँ भी सीमित ही रही हैं। इसके अतिरिक्त भौगोलिक स्थिति तथा स्थानीय जनजातीय संस्कृति एवं अलगाववाद भी इसके विकास में बाधक बना रहा। पूर्वोत्तर का महत्त्व-आर्थिक विकास का असमान दृष्टिकोण तथा किसी विशेष क्षेत्र की पिछड़ी स्थिति उस देश की आर्थिक संवृद्धि में बाधक बन सकती है। इसके अतिरिक्त भारत के पश्चिम में पाकिस्तान की उपस्थिति मध्य-पूर्व में भारतीय हितों के प्रसार को बाधित करती है। इसकी पूर्ति भारत पूर्व के देशों से कर सकता है। इसी संदर्भ में भारत ने 90 के दशक में ‘लुक ईस्ट’ नीति को बल दिया था जिसे बदल कर अब मौजूदा सरकार ने ‘एक्ट ईस्ट’ कर दिया है। भारत के लिये न सिर्फ यह पूर्व के देशों से जुड़ने का एक द्वार है बल्कि इसके माध्यम से इस क्षेत्र के विकास पर भी बल दिया जा सकता है।

भारत ने बांग्लादेश, भूटान तथा म्यांमार के साथ कुछ समझौतों को अंजाम दिया है जिसके माध्यम से यह क्षेत्र आर्थिक संवद्धि की ओर बढ़ सकता है। प्रायः ऐसा माना जाता है कि कोई क्षेत्र यदि आर्थिक रूप से पिछड़ा है एवं उसका सीमित विकास ही हो सका है तो ऐसे स्थान पर उग्रवाद एवं अन्य समस्याओं को बल मिलता है। इसी कारण स्वायत्तता एवं विकासात्मक मुद्दों के चलते यह क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही से ही उग्रवाद एवं अलगाववाद से ग्रसित रहा है। विभिन्न सरकारी प्रयासों के चलते इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो सकी है। मणिपुर के कुछ क्षेत्र अब भी उग्रवादी गतिविधियों से ग्रस्त हैं। पूर्वोत्तर में कानून व्यवस्था सुधरने के पश्चात् इस क्षेत्र में अवसंरचनात्मक सुधार पर बल दिया जा रहा है, अवसंरचना निर्माण के बाद यह क्षेत्र भी आर्थिक विकास की दौड़ में शामिल हो सकेगा।

पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों के दृष्टिकोण से समृद्ध है। पेट्रोलियम एवं खनिज संसाधनों की उपलब्धता के साथ-साथ इस क्षेत्र का पर्यावरण पर्यटन के लिये अनुकूल माहौल उपलब्ध करता है। यदि उपर्युक्त संसाधनों के दोहन हेतु अवसंरचना का विकास किया जाता है तो यह क्षेत्र आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनने की भी क्षमता रखता है। चुनौतियाँ-यद्यपि पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य (सिक्किम को छोड़कर) भौगोलिक रूप से एक-दूसरे के साथ संबद्ध हैं फिर भी इस क्षेत्र में बहुत अधिक में विविधता मौजूद है। ब्रह्मपुत्र एवं बराक घाटी (जहाँ बड़ी संख्या में लोग निवास करते हैं) के अलावा अन्य क्षेत्रों में लोगों की आबादी बहुत कम है।

अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य में जनसंख्या घनत्व 13 है, तो असम में यह घनत्व 300 के करीब है। भारत में निवास करने वाले 635 जनजातीय समुदायों में से 200 इसी क्षेत्र में निवास करते हैं। इन जनजातियों की भाषा एवं बोलियाँ तथा सांस्कृतिक विश्वास अलग अलग हैं। इसके अतिरिक्त ये समुदाय अपनी संस्कृति के प्रति तीव्र लगाव रखते हैं जिससे विभिन्न प्रकार की समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पर्याप्त अवसंरचना की कमी को माना जा सकता है। इस क्षेत्र में ऊर्जा, सड़क, रेल, नदी मार्गों एवं हवाई अड्डों का उचित विकास नही हो सकता है। बड़ी संख्या में नदियों एवं पहाड़ी क्षेत्र के कारण अवसंरचना निर्माण में न सिर्फ अधिक समय लगता है बल्कि अधिक खर्चीला भी है।

इस क्षेत्र के किसानों को (न सिर्फ देश के बाहर बल्कि देश के भीतर भी) उपयुक्त बाज़ार उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण यहाँ कृषक गतिविधियाँ भी सीमित रूप से ही विकसित हो सकी हैं। जिस प्रकार देश के अन्य भागों में शासन में सुधार की आवश्यकता है वैसे ही इस क्षेत्र में भी सुधार किया जाना ज़रूरी है। किसी भी योजना को लागू करने और उसकी सफलता के लिये आवश्यक है कि स्थानीय स्तर पर, जैसे कि पंचायत एवं ग्रामीण स्तर से राज्य स्तर तक अभिशासन में सुधार किया जाए। उपाय-ज़मीनी स्तर पर नियोजन के माध्यम से लोगों को सशक्त करना, इसके लिये शासन और विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। इससे लोगों की ज़रूरतों को समझने में आसानी होगी तथा उनके लिये उपयोगी कार्यकम बनाना भी आसान होगा जिससे इस क्षेत्र में विकास का एक माहौल तैयार हो सकेगा।

कृषिगत उत्पादकता को सुधार कर तथा गैर-कृषिगत रोज़गार के अवसरों का निर्माण कर ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर ध्यान देना। पूर्वोत्तर क्षेत्र में मौजूद संसाधनों पर आधारित विकास को बढ़ावा देना। यह क्षेत्र नदी तंत्र से घिरा हुआ एवं पहाड़ी होने के कारण जलविद्युत की अत्यधिक क्षमता रखता है। इसके अतिरिक्त पर्यटन, कृषि से जुड़े प्रसंस्करण उद्योग, कीटपालन तथा इस क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों पर आधारित अवसंरचना में निवेश आदि पर भी बल देना आवश्यक है। नवाचार एवं कौशल शिक्षा के माध्यम से उद्यमिता के लिये माहौल तैयार करना तथा योजना एवं कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन के लिये क्षमता निर्माण करना। सड़क, रेलवे, अंतर्देशीय जलमार्ग, वायु परिवहन सेवाओं, जल विद्युत, कोयला, जैव-ईंधन और संचार नेटवर्क के माध्यम से बुनियादी ढाँचे को संवर्द्धित करना। सरकार द्वारा पूर्वोत्तर के मणिपुर को म्याँमार होते हुए थाईलैंड से जोड़ने की त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना पर पहले ही निर्माण कार्य किया जा रहा है। भारत के अन्य भागों एवं पूर्वोत्तर के मध्य बांग्लादेश उपस्थित है, इससे प्रत्यक्ष कनेक्टिविटी प्रदान करने में बाधा उत्पन्न होती है।

भारत द्वारा बांग्लादेश से सड़क, रेलवे तथा अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से ट्रांज़िट की सुविधा प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। कालादान परियोजना के ज़रिये भी भारत, म्यांमार के सितवे बंदरगाह से पूर्वोत्तर को जोड़ने पर कार्य कर रहा है। इस प्रकार की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ न सिर्फ इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देंगी बल्कि पूर्वोत्तर के समग्र विकास में भी सहायक होंगी। उपर्युक्त कार्यों को बल देने के लिये अत्यधिक निवेश की आवश्यकता होगी, इस निवेश की पूर्ति सरकार बजट के माध्यम से तथा निजी निवेश को आकर्षित करके कर सकती है। आरंभिक स्तर पर यह कोष केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा दिया जाना चाहिये। इस निवेश से जब इस क्षेत्र की स्थिति में सुधार प्रदर्शित होने लगेगा तब निजी क्षेत्र भी इस ओर आकर्षित होगा।

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