तेलुगु साहित्य को अनेक सन्त-कवियों ने समृद्ध किया है। तेलुगु में अनेक सन्त-कवि हुए हैं, जिनमें से कुछ का परिचय नीचे दिया जा रहा है
(1) संत वेमना 1556-1650) तेलुगु साहित्य में सन्त वेमना का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। संत वैमना के पद तेलुगु में इतने लोकप्रिय हैं कि शायद ही कोई तेलुगु व्यक्ति होगा, जो वेमना का एक पद भी न जानता हो। वेमना को तेलुगु साहित्य का कबीर माना जाता है।
हिन्दी साहित्य एवं तेलुगु साहित्य परंपरा में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि हिन्दी साहित्य में पहले निर्गुण धारा का विकास हुआ, उसके बाद सगुणधारा का विकास हुआ।
कबीर निर्गुणधारा के ही सन्त-कवि थे, परन्तु तेलुगु साहित्य में पहले सगुणधारा का विकास हुआ, उसके बाद निर्गुणधारा का विकास हुआ।
वेमना निर्गुणधारा के सन्त कवि थे। तेलुगु साहित्य में किसी विशिष्ट धारा का प्रचलन नहीं हुआ, परन्तु इतना सत्य अवश्य है कि तेलुगु साहित्य में निर्गुण प्रवृत्तियों को प्रचलित करने वाले संत अवश्य हुए हैं। इन सन्तों में वेमना सबसे श्रेष्ठ सन्त-कवि थे।
सन्त बेमना ने धार्मिक पाखण्डों, अंधविश्वासों, सामाजिक असमानताओं एवं असंगतियों का खुलकर विरोध किया। निर्गुण भक्तिधारा के कवि कबीर में जो स्पष्टवादिता हमें दिखाई देती है, वही स्पष्टवादिता हमें वेमना में भी दिखाई देती है।
वास्तव में वेमना को कबीर की ही तरह एक महान सन्त, समाज सुधारक तथा युगपुरुष माना जाता है। वेमना ने तेलुगु प्रान्त में अपने विचारों को प्रसारित किया। वेमनार के जन्म के विषय में विद्वानों के बीच मतभेद है।
पोतुलूरि वीर ब्रह्म (1608-1693) वीर ब्रह्म के पद भी काफी लोकप्रिय हैं। आम जनता की जुबान पर वीर ब्रह्म के पद आज भी जिन्दा हैं। विशेषकर ग्रामीण प्रान्तों में इन्हें खूब गाया जाता है।
यह माना जाता है कि वीर ब्रह्म का जन्म योग-शक्तियों के साथ हआ था। काल का ज्ञान बताने वाले योगियों में वीर ब्रह्म का स्थान सबसे ऊंचा है।
उनका जीवन अनेक अद्भुत घटनाओं से भरा पड़ा है। तेलुगु में एक कहावत प्रचलित है “वेमना जैसा कोई संत नहीं है, वीर ब्रह्म जैसा कोई गुरु नहीं है और सिद्धव्या जैसा कोई शिष्य नहीं है।
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