महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग : द्विवेदी युग का नामकरण आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के व्यक्तित्व को ध्यान में रखकर किया गया। उन्होंने ‘सरस्वती’ नामक पत्रिका के सम्पादक के रूप में हिंदी जगत की महान सेवा की और हिंदी साहित्य की दिशा एवं दशा को बदलने में अभूतपूर्व योगदान किया। महावीरप्रसाद द्विवेदी सन 1903 में सरस्वती पत्रिका के सम्पादक बने। इससे पहले वे रेल विभाग में नौकरी करते थे। उन्होंने इस पत्रिका के माध्यम से कवियों को नायिका भेद जैसे विषय छोड़कर विविध विषयों पर कविता लिखने की प्रेरणा दी, काव्यभाषा के रूप में ब्रजभाषा को त्यागकर खड़ी बोली का प्रयोग करने का सुझाव दिया। जिससे गद्य और पद्य को भाषा एक हो सके।
द्विवेदी जी ने ‘कवि कर्त्तव्य’ जैसे निबंधों द्वारा कवियों को उनके कर्तव्य का बोध कराते हुए अनेक दिशा निर्देश दिए। जिससे विषय-वस्तु, भाषा-शैली, छंद योजना आदि अनेक दृष्टियों से काव्य में नवीनता का समावेश हुआ। द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार, व्याकरण शुद्धि, विराम चिह्नों के प्रयोग द्वारा हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान करने का प्रशंसनीय कार्य किया।
हिंदी नवजागरण और सरस्वती पत्रिका :
हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल वस्तुतः जागरण का सन्देश लेकर आया। सन 1857 ई. में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने नवजागरण का बिगुल बजा दिया और भारतीय जनमानस में देशभक्ति, स्वतंत्रता, राष्ट्र उत्थान, स्वदेशाभिमान की भावनाएं जाग्रत होने लगीं। इसीलिए हिंदी नवजागरण को हिन्दू जाति का जागरण माना है। सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन सन 1900 ई.से प्रारम्भ हुआ तथा सन 1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका सम्पादन भर संभाला। द्विवेदी जी इस पत्रिका में ऐसे लेखों को प्रकाशित किया जिन्होंने नवजागरण की लहर को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण योगदान किया।
आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी से प्रेरणा लेकर तथा उनके आदर्शों को लेकर आगे बढ़ने वाले अनेक कवि सामने आए जिसमें प्रमुख हैं-मैथिलीशरण गुप्त, गोपालशरण सिंह, गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ और लोचनप्रसाद पाण्डेय आदि। इसके अलावा बहुत सारे ऐसे कवि जो पहले ब्रजभाषा में कविता लिख रहे थे तथा उनकी विषय वस्तु एवं शैली प्राचीन पद्धति पर थी, अब द्विवेदी जी एवं ‘सरस्वती’ से प्रेरित होकर काव्य के चिर-परिचित उपादानों को छोड़कर नए विषयों पर खडी बोली में कविता लिखने लगे। ऐसे कवियों में प्रमुख हैं- अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, श्रीधर पाठक, नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ तथा राय देवीप्रसाद पूर्ण’। इन सभी कवियों की कविताएं नवजागरण, राष्ट्रीयता, स्वदेशानुराग एवं स्वदेशी भावना से परिपूर्ण हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-“खड़ी बोली के पद्य विधान पर द्विवेदी जी का पूरा-पूरा असर पड़ा। बहुत से कवियों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित होती थी। द्विवेदी जी ऐसे कवियों की भेजी हुई कविताओं की भाषा आदि दुरुस्त करके ‘सरस्वती’ में छापा करते थे। इस प्रकार कवियों की भाषा साफ होती गई और द्विवेदी जी के अनुकरण में अन्य लेखक भी शुद्ध भाषा लिखने लगे।” वस्तुतः ‘सरस्वती’ पत्रिका ने भाषा और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में परिष्कार किया।
मैथिलीशरण गुप्त :- राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के सबसे बड़े कवि थे। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से विदेशी पराधीनता से राष्ट्र को मुक्त करने के लिए सुप्त जनमानस को झकझोर कर राष्ट्र गौरव की चेतना जगाई। उक्त बातें सिमुलतला आवासीय विद्यालय में महाकवि राम इकबाल सिंह राकेश साहित्य परिषद के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती के अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजीव रंजन ने कही। उन्होंने कहा कि आज के समय में जब युवाओं के मन में राष्ट्रीय चेतना का लोप होता जा रहा है, राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की कृतियां और कविताएं उन्हें भारतीय सनातन संस्कृति और राष्ट्रवाद के गौरव से भर सकती है।
आज जरूरत है कि स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में गुप्त की रचना को शामिल किया जाए। व्यंग्यकार डॉ. सुधांशु कुमार ने कहा कि गुप्त की रचनाएं भारतीय सनातन संस्कृति की झांकी और राष्ट्रीयता का उद्घोष है। द्विवेदी युग के वह सबसे बड़े कवि थे। उन्होंने खड़ी बोली हिंदी को काव्यभाषा के आसन पर बिठाया और अत्यंत सहज सरल काव्य शैली से सामान्य सुप्त जनमानस को झकझोरा। डॉ. शिप्रा ने कहा कि रामचरित मानस के बाद साकेत सबसे महान प्रबंध काव्य है जिसमें भारतीय वैज्ञानिक सनातन संस्कृति और उज्ज्व ल परंपरा संरक्षित है।
रंजय कुमार और राधाकांत दुबे ने मैथिली शरण गुप्त की कविताओं को भारतीय गौरव की आधारशिला बताया। शिक्षिका कुमारी नीतू ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त बड़े कवि थे। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से विदेशी पराधीनता से राष्ट्र को मुक्त करने के लिए जनमानस को जगाने का काम किया।
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध : द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और गद्य लेखक अयोध्या सिंह उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में निजामाबाद में हुआ था ! इनके पिता का नाम पं० भोलासिंह उपाध्याय था, इन्होंने सिख धर्म को अपनाकर अपने नाम में सिंह शब्द को जोड़ लिया, किन्तु इनके पूर्वज सनाढ्य ब्राह्मण थे और पूर्वजों का मुगल शासकों के दरबार में बहत ही सम्मान था, हरिओध जी की प्रारम्भिक शिक्षा इनके गाँव निजामाबाद में सम्पन्न हुई. पांच वर्ष की अवस्था में इन्होंने ।
अपने चाचा के संरक्षण में फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया, गाँव से आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद ये बनारस के क्वींस कालेज में अंग्रेज़ी पढने गये किन्तु कुछ समय के उपरांत इनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया जिसकी वजह से इन्होंने क्वींस कालेज की शिक्षा को अधूरे पर ही छोड़कर वापस अपने गाँव निजामाबाद आ गये, गाँव आने के बाद इन्होंने अपने घर से ही संस्कृत,उर्दू, फारसी ओए अंग्रेज़ी आदि का गहन अध्ययन किया, यह एक सरल स्वभाव के बालक थे जो अपनी सरलता के कारण काफी चर्चित थे, 1884 ई० में इन्होने निजामाबाद के उच्च प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के पद पर अपनी सेवाओं को देना आरम्भ किया, नौकरी प्रारम्भ करने के कुछ वर्षों में ही इनका विवाह आनन्द कुमारी के साथ हो गया |
रामनरेश त्रिपाठी
रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई0 में जिला जौनपुर (उ0 प्र0) के अन्तर्गत कोइरीपुर ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। घर के धार्मिक वातावरण तथा पिता की परमेश्वर भक्ति का पूरा प्रभाव बालक रामनरेश पर प्रारम्भ से ही पड़ा। केवल नवीं कक्षा तक स्कूल में पढ़ने के पश्चात् इनकी पढ़ाई छूट गयी। बाद में इन्होंने स्वाध्याय से हिन्दी, अंग्रेजी, बँगला, संस्कृत, गुजराती का गम्भीर अध्ययन किया और साहित्यसाधना को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। सन् 1962 ई० में इनका स्वर्गवास हो गया।
त्रिपाठीजी मननशील, विद्वान् तथा परिश्रमी थे। ये द्विवेदी युग के उन साहित्यकारों में हैं, जिन्होंने द्विवेदी मण्डल प्रभाव से पृथक रहकर अपनी मौलिक प्रतिभा से साहित्य के क्षेत्र में कई कार्य किये। त्रिपाठीजी स्वच्छन्दतावादी कवि थे,ये लोकगीतों के सर्वप्रथम संकलनकर्ता थे। काव्य, कहानी, नाटक, निबन्ध, आलोचना तथा लोक-साहित्य आदि विषयों पर इनका पूर्ण अधिकार था। त्रिपाठीजी आदर्शवादी थे।
रचनाएँ : इनकी रचनाओं में नवीन आदर्श और नवयुग का संकेत है। इनके द्वारा रचित पथिक और ‘ मिलन’ नामक खण्डकाव्य अत्यन्त लोकप्रिय हए। इनकी रचनाओं की विशेषता यह है कि उनमें राष्ट्र-प्रेम तथा मानव-सेवा की उत्कृष्ट भावनाएं बड़े सुन्दर ढंग से चित्रित हुई हैं। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष की प्राकृतिक सुषमा और पवित्रप्रेम के सुन्दर चित्र भी इन्होंने अपनी कविताओं में चित्रित किये हैं।
Subcribe on Youtube - IGNOU SERVICE
For PDF copy of Solved Assignment
WhatsApp Us - 9113311883(Paid)
0 Comments
Please do not enter any Spam link in the comment box