कार्य और आजीविका का घनिष्ठ संबंध है। आइए, यह समझने का प्रयास करें कि आजीविका को हम किस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं। एक लोहार लोहे का सामान बनाकर बेचता है, किसान फसल उगाता है तथा उसका कुछ हिस्सा अपने परिवार के लिए रखकर शेष की बिक्रीकर धनोपार्जन करता है। रिक्शा चालक धूप, सर्दी, बरसात हर मौसम में यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाता है : प्राप्त धन का उपयोग परिवार के पालन-पोषण हेतु करता है। अतः धन की अपेक्षा के साथ किया गया श्रम आजीविका है। इस श्रम का न केवल आर्थिक मूल्य है वरन् सामाजिक मूल्य भी है।
अपने देश की सामाजिक, आर्थिक स्थिति से आप भलीभांति परिचित हैं। अधिकांश व्यक्ति अपनी आजीविका अर्जित करने के लिए श्रम करते हैं। क्या वे श्रम सिर्फ पैसे के लिए करते हैं या फिर उन्हें उसे करने से किसी प्रकार की खुशी/आनंद मिलता है। कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाकर उसे अलग-अलग आकार देता है तथा उसे सजाता है। क्या वह ऐसा सिर्फ धन के लिए करता है ? किसान अपने खेत में फसल उगाता है। अच्छी फसल लगने पर वह खुश होता है। किसान को यह खुशी क्या केवल इसीलिए होती है कि वह फसल को बेचकर अच्छा . कमा सकता है या वह इस बात से खुश है कि उसके श्रम से प्राप्त यह उपलब्धि कई लोगों की भूख मिटा सकती है।
वास्तव में किसी भी कार्य में लगे श्रम से न केवल धन की प्राप्ति होती है बल्कि आनंद की प्राप्ति भी होती है। इसका अर्थ है शारीरिक श्रम, सुख और आनंद के रास्ते खोलता है और ये संतोष ही है जो लोगों के जीवन का अनिवार्य अंग है। चाहे वह किसी भी उम्र के हों। सूर्योदय के समय चिड़ियों का भोजन के लिए लड़ना या किसी आकस्मिक घटना की आहट से कुत्तों का भौंकना, कुछ जानवरों का अपने शिकार को पकड़ने के लिए जाना, ये सब कुछ उनके संतोष के लिए होता है। छोटे-छोटे बच्चे जिनकी मांसपेशियाँ अभी पूर्ण विकसित नहीं हुई हैं, वो भी किसी वस्तु को फेंकने में आनंद लेते हैं।
घर में आने वाले लोगों से प्रश्न करते हैं या छोटे-छोटे कार्य करते हैं। क्या ये सब कुछ वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए करते हैं अथवा इसमें उन्हें किसी प्रकार के आनंद की प्राप्ति होती है? ऐसे कई प्रश्न आपके दिमाग में भी आ रहे होंगे। आपको शायद ऐसा उत्तर मिल रहा होगा कि शारीरिक श्रम केवल जीविका के लिए ही किया जाता है अथवा अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए किया जाता है। यह आंतरिक खुशी और संतोष को पाने के लिए भी किया जाता है।
आपने श्रमदान शिविरों के बारे में सुना होगा। कई बार आप किन्हीं कार्यों को बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के भी करते हैं। यह शारीरिक श्रम हमारे शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, जो हमें सुख और संतोष प्रदान करता है। श्रम और संतोष को समझने के लिए आइए. एक निजी स्कूल का उदाहरण देखते हैं जिसमें बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं जिन्हें कभी किसी प्रकार का शारीरिक श्रम करने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था, जब उन्हें ईंटों के ढेर को साफ करने का कार्य दिया गया तब उनके पालक चिंतित हो गये कि उनके बच्चे बीमार न हो जाएं क्योंकि उन्हें शारीरिक श्रम करने के लिए कहा गया था। परंतु बच्चों ने कहा कि उन्हें यह कार्य करके बहुत खुशी हुई। इससे ज्यादा तो वे अपने अन्य कार्यों से थक जाते हैं। उन्हें इस कार्य से संतोष भी प्राप्त हुआ।
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