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मानव संसाधन प्रबंधनः के स्वरूप विस्तार एवं उद्देश्य की व्याख्या कीजिए।

एक संगठन में मानव संसाधन ही उसके विभिन्‍न क्रियाकलापों में संलग्न होता है। वे प्रबंधक हो या कर्मचारी (कर्मी)। सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि मानव संसाधन प्रबंधन संगठन तन्त्र में व्यक्तियों के प्रबंधन के प्रति दृष्टिकोण का नाम है। यह कार्य मुख्यतः इन नियमों के अनुसार किया जाता है:संगठन के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन मानव संसाधन होता है।

मानव संसाधन विषयक नीतियां और प्रक्रियांए संस्था के बृहतर लक्ष्यों तथा यौक्तिक योजनाओं के अनुरूप होनी चाहिए।

संस्थागत संस्कृति एवं मूल्यवान उस संगठन द्वारा अपने लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति के निर्घारक हो सकते हैं। अत: उन पर ध्यान देना चाहिए, आवश्यक हो तो उनमें बदलाव भी लाने चाहिए। 

मानव संसाधन प्रबंधन को इस प्रकार कार्य करना चाहिए किस भी कर्मी परस्पर समन्वयपूर्वक सांझे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास कर पाएं।

अतः: मानव संसाधन प्रबंधन को उचित मानव घटकों की प्राप्ति (नियुक्ति, चयन), संप्रेरण (उपयुक्त सबल और पुरूस्कार द्वारा), विकास [प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रमों द्वारा) पर ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए। मानव संसाधन का कार्य संगठन में किसी कार्य या रिक्ति की अनुभूति के साथ ही प्रारंभ हो जाता है।

किसी भी संगठन में मानव संसाधन विभाग प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच एक 'पुल' का कार्य करता है। इस विभाग को केवल कर्मी विकास नहीं बल्कि साथ-साथ में संगठन के उद्देश्यों के साथ अपने लक्ष्यों का समन्वय भी करना चाहिए।

मानव संसाधन कार्मिक प्रबंधन से भिन्‍न होता है। कार्मिक प्रबंधन का विचार अपेक्षाकृत सीमित संकल्पना (0ञआएक्+) का है और इसे मानव संसाधन प्रबंधन में मानव संसाधन विकास के साथ ही स्थान दिया जा सकता है (अवश्थप्पा, 2015)। मानव संसाधन प्रबंधन का विषय क्षेत्र या विस्तार अधिक व्यापक होता है ओर मानव को संगठन का एक महत्वपूर्ण संसाधन मान कर उसे सुयोग्य बनाना, सभी कर्मियों को एक टीम की भांति कार्य करने को तैयार रखना आदि इसी के दायित्व होते हैं।

हम चर्चा की दृष्टि से मानव संसाधन प्रबंधनको तीन उप-पदों में विभाजित कर सकते हैं:

मानव: किसी संगठन तन्‍्त्र में ये उसके कर्मी या कार्यबल होते हैं।

संसाधन: दुर्लभ या सीमित परिमाण में सुलभ परिसंपदा, वित्त आदि की ही भांति व्यक्ति।

प्रबंधन: संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संसाधनों का ईष्टतम एवं पर्याप्त प्रयोग।

प्रबंधन में इन पांच मुख्य गतिविधियों को शामिल किया जा सकता है (डेस्सलर, 2013): नियोजन (योजना बनाना) [0था॥ंपष्टी: इसमें शामिल हैं मानकों एवं लक्ष्यों का निर्धारण, नियमों, प्रक्रियाओं और प्रविधियों का विकास। इसी पूर्वाकलन और विकास योजनाएं भी शामिल होती हैं। 

संगठन करना : इसमें में कार्यों का विभाजन, विभागों की स्थापना, अधिकार सोंपना, संवाद सूत्रों की स्थापना आदि।

कर्मी नियोजन : इसमें चयन एवं भर्ती, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन, निष्पादन मूल्यांकन, कर्मियों को परामर्श आदि प्रदान करना शामिल हैं।

नेतृत्व : कर्मियों में उत्साह एवं संप्रेरणाएं बनाए रखना और सुनिश्चित करना कि सभी कार्य आवश्यकतानुसार समय पर होते रहें आदि।

नियंत्रण : गुणवत्ता, विक्रय आदि के मानक स्तरों का निर्धारण, वास्तविक निष्पादन की मानकों के साथ तुलना और आवश्यक होने पर समुचित सुधार करना।

अत: कहा जा सकता है कि मानव संसाधन प्रबंधन किसी संगठन में उपलब्ध कार्यबल (जनशक्ति) का उस संगठन के लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पर्याप्त एवं उपयुक्त रूप से प्रयोग करना है।

मानव संसाधन प्रबंधन की व्याख्या उस प्रक्रिया के रूप में भी हो सकती हैं जिसमें व्यक्तियों को कार्य पर रखना, उन्हें वांछित प्रशिक्षण देना, क्षतिपूर्ति / पारिश्रमिक देना और उन व्यक्तियों के लिए नीतियों एवं युक्तियों का विकास करना शामिल है। यह मुख्यतः संगठन में मौजूद व्यक्तियों के प्रबंधन की औपचारिक व्यवस्था भी कही जा सकती है। मानव संसाधन प्रबंधन का मुख्य कार्य संगठन के मानव संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन द्वारा उसके उत्पादन एवं लाभ प्रदता में वृद्धि करना है।

मानव संसाधन प्रबंधन का आघारभूत मिशन संगठन में योग्यता /क्षमतापूर्ण कर्मियों को प्राप्त कर उन्हें विकसित एवं प्रतिघारित करना है ताकि मानवीय संसाधनों का संगठन के लक्ष्यों के अनुरूपण हो सके और वे संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के रूप में उसकी लाभ प्रदता में योगदान दे सकें।

डेस्स्‍लर (2013, पृ. 656) ने मानव संसाधन प्रबंधन की परिभाषा करते हुए इसे उन नीतियों एवं व्यवहार का नाम दिया है जो प्रबंधन मानवीय (व्यक्तिपरक) संसाधनों से संबंधित है। इसमें भर्ती, अनुवीक्षण, प्रशिक्षण, पुरस्कृत करना और निष्पादन मूल्यांकन सम्मिलित होते हैं। उसने मानव संसाधन प्रबंधन का वर्णन (पृ. 4) करते हुए इसे कर्मियों की भर्ती-प्राप्ति, प्रशिक्षण, मूल्यांकन, उचित पारिश्रमिक निर्धारण तथा उनके श्रम संबंधों, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं निरूपक्षता संबंधी सरोकारों पर ध्यान देना बताया है।

डीनिसी आदि (2014, पृ. 32) ने मानव संसाधन प्रबंधन की परिमाषा प्रबंधकीय कार्यों के स्पर्धाशील समुच्चय तथा सुथोग्य कार्यबल के विकास एवं प्रतिधारण के रूप में की है जो संगठन में प्रभावी रूप से योगदान दे सकें।

वर्नर एवं डी. सीमोन (2012, पृ. 8) के अनुसार मानव संसाधन प्रबंधन कर्मचारियों के प्रभावी चयन एवं प्रयोग ट्वारा संगठन के लक्ष्यों और युक्तियों की तथा साथ ही उन कर्मचारियों के लक्ष्यों एवं आवश्यकताओं की प्राप्ति की श्रेष्ठ व्यवस्था का नाम है।

अत: मानव संसाधन प्रबंधन में मुख्यतः प्रबंधकीय गतिविधियां शामिल हैं जो संगठन की प्रभावोत्पादकता को बढ़ाते हुए उसके लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु मानवीय संसाधनों का प्रभावी प्रयोग करती हैं।

अतः मानव संसाधन प्रबंधन में वे गतिविधियां शामिल रहती हैं जिनका संबंध कार्य विश्लेषण, भर्ती, चयन, कार्य निर्धारण (प्रतिनियुक्ति), प्रशिक्षण एवं अन्य कर्मी भलाइ कारी कार्यों से हो। ये गतिविधियां केवल कार्य के लिए उपयुक्त कर्मियों के चयन को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक नहीं होतीं बल्कि इनसे यह भी सुनिश्चित होता है कि अधिक कर्मी कार्य छोड़कर नहीं जाएं, और वे उत्पादनशील बने रहें व एक सुरक्षित एवं उपयुक्त वातावरण में कार्य करते रहें। एक प्रभावोत्मादक मानव संसाधन विभाग संगठन की उत्पादिता एवं लाभप्रदता में वृद्धि कर सकता है।

मानव संसाधन प्रबंधन का कार्य विस्तार / फैलाव बहुत व्यापक है और इसमें कार्यविश्लेषण, भर्ती, चयन, प्रतिनियुक्ति, प्रशिक्षण एवं विकास, निष्पादन मूल्यांकन आदि अनेक कार्य सम्मिलित रहते हैं। इसमें मानव संसाधन नियोजन और मानव संसाधन विकास भी समाहित हैं।

किसी संगठन में मानव संसाधन विभाग के स्तर एवं उसकी गतिविधियों के विस्तार संगठन के स्वरूप एवं आकार तथा उसके द्वारा अपनाई गए प्रबंधकीय दर्शन के साथ साथ इस बात पर भी निर्भर होंगे कि क्‍या उक्त संगठन का अपना विस्तार विश्वव्यापी है (या नहीं)। विशाल संगठन में मानव संसाधन विभाग के क्रियाकलाप अधिक जटिल भी होते हैं। इस विभाग का अपना आकार निश्चित रूप से समूचे संगठन के आकार एवं स्वरूप पर निर्भर रहता है। वैश्विक स्तर पर कार्य कर रहे संगठन का मानव संसाधसन विभाग अधिक विशाल होगा ओर विविधत प्रबंधन के जटिल कार्यों के साथ-साथ संगठन के कार्य स्थलों के देशों के कानूनों एवं नीतियों के साथ संगठन का तालमेल स्थापित करने का दायित्व भी इस पर होगा। उच्चतर प्रबंधन का दर्शन या कार्य करने का तरीका भी यह तय करता है कि वे मानव संसाधन विभाग को कितना महत्व देंगे। यह भी संभव है कि संगठन अपने मानव संसाधन क्रियाकलापों की बहिर-प्रापण युक्ति अपना ले।

अश्वत्था (2015) के अनुसा मानव संसाधन प्रबंधन के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार होते हैं: समाजीय उद्देश्य: हमें ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक संगठन समाज का ही एक अंग होता है। अत: उसे सामाजिक आवश्यकताओं और चुनौतियों के प्रति संवेदनशील होना ही चाहिए। किन्तु इसके संगठन पर नकारात्मक प्रभाव नहीं हो। इस विषय में भी सचेत रहना आवश्यक है। यहां मानव संसाधन विभाग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। यह सुनिश्चित कर सकता है कि समाज की जरूरतें नीतिसंगत एवं उत्तरदायी रूप से पूरी हों तथा संगठन के अपने उद्देश्यों की कोई ठेस नहीं पहुँचे। उदाहरण के लिए ये विभाग कानूनों एवं नियमों के अनुपालन सुनिश्चित करने में एक भूमिका निभा सकते हैं।

संगठनात्मक उद्देश्य: यह उद्देश्य संगठन की प्रभावोत्पादकता के संवर्धन पर केन्द्रित रहता है। अतः मानव संसाधन प्रबंधन के विभिन्‍न कार्य संगठन के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ही किये जाने चाहिए। उदाहरण के लिए चयन, प्रशिक्षण, निष्पादन मूल्यांकन संगठन के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के आधार पर ही होना चाहिए। मानव संसाधन विभाग को भी संगठन का एक विभाग होने के नाते उसे संगठन के लक्ष्यों के अनुरूप ही कार्य करना चाहिए।

प्रकार्यात्मक उद्देश्य: मानव संसाधन विभाग का संगठन की आवश्यकताओं के अनुसार ही कार्य करना चाहिए।

उदाहरण के लिए, मानव संसाधन विकास के प्रकार्यों को संगठनात्मक आवश्यकताओं के आधार पर किया जा सकता है । 

वैयक्तिक उद्देश्य: यह उद्देश्य मुख्यतः कर्मी केन्द्रित है जहां उन्हें संगठन की उत्पादिकता एवं लाभ प्रदता को बढ़ाने में योगदान करते हुए अपने निजी लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान की जाती है। उदाहरण: के लिए कर्मियों के प्रशिक्षण एवं जीवन वृत्ति विकास कार्यक्रमों का आयोजन।

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