एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन की प्रक्रिया धर्मान्तरण कहलाती है। धर्मान्तरण के दो पहलू हैं। पहला तो यह है कि व्यक्ति अगर अपने धर्म में उपेक्षा का भाव देख रहा है तो वह ऐसा कर लेता है, क्योंकि उसे अपना जीवन पुराने धर्म में असहज लगता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म परिवर्तन करने का पूरा अधिकार है लेकिन यह जब फैशन का रूप ग्रहण कर लेता है तो स्थिति दयनीय हो जाती है।
होता यह है कि जब व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करके दूसरे धर्म में जाता है तो उसकी भावना पूर्व धर्म के प्रति मलीन हो जाती है। अपने धर्म का गुणगान करना और शेष धर्मों को हीन सिद्ध करना बेहद अमानवीय कृत्य है।
अतः धर्म का परिवर्तन व्यक्ति को उसी स्थिति में करना चाहिए, जब उसे अपनी वास्तविक स्थिति, धर्म के स्वरूप का बोध व जीवन की सार्थकता का ज्ञान हो जाए। देखने में यह आता है कि एक धर्म से व्यक्ति अन्य धर्म में जाता है और वहां भी चैन न मिलने पर कुछ दिनों बाद अन्य धर्म में रूपांतरण कर लेता है। अतः धर्म परिवर्तन मानवता को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
समाज के विकास में धर्मान्तरण के महत्त्व को सामाजिक संरचना के आधार पर समझा जा सकता है। जो समाज जितना असभ्य व बर्बर है, वहां उतनी अधिक संख्या में धर्म परिवर्तन की संभावना बनी रहेगी। इसके पीछे मूल कारण गरीबी, भूख, बेरोजगारी व अशिक्षा है। जहां दरिद्रता है वहां की जनता बेचैन है। जिन धर्मावलम्बियों के पास अकूत संपत्ति है वे उन सब जगहों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए और वैश्विक राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए ऐसी जगहों पर चारा अवश्य फेकेंगे।
बदले में उनकी मांग होगी, धर्म का रूपांतरण इस प्रकार एक तरफ परोपकार की भावना तो दूसरी तरफ कूटनीतिक हथकंडा। इस प्रकार का छल व प्रपंच हमेशा से समाज के लिए नुकसानदायक होता है। अतः समाज के विकास के लिए धर्म का परिवर्तन कुछ निश्चित व विशेष परिस्थितियों में ही लाभदायक है। इसका स्वरूप निश्चित समय के पश्चात बदलता रहता है, लेकिन मानव हित में यही आवश्यक है कि धर्म का परिवर्तन नैसर्गिक रूप से किया जाए न कि प्रपंच के द्वारा।
रैम्बो के अनुसार धर्मांतरण एक प्रकार का व्यामोह (आत्म विस्मरण) है। धर्म परिवर्तन एक जटिल प्रकार है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का परिवर्तन है अथवा एक विचार से दूसरे विचार के प्रति आस्था है। धर्मांतरण के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू हैं। जब कोई बालक जन्म लेता है तो वह किसी-न-किसी धर्म में जन्म लेता है जो उसके परिवार और समुदाय का धर्म होता है। सोचने-विचारने की क्षमता से युक्त होने पर किसी अन्य धर्म से प्रभावित होकर अपना धर्मांतरण कर सकता है। किन्तु किसी अन्य धर्म को अपनाना बहुत ही कठिन कार्य है चूँकि व्यक्ति की वैचारिक पृष्ठभूमि से उसका संबद्ध नहीं होता है।
इस प्रकार सफल धर्मांतरण व्यक्ति में आत्मविश्वास और दृढ़ता ला सकता है, किन्तु अपूर्ण धर्मांतरण व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से बेहद क्षति पहुँचा सकता है। रैम्बो ने धर्मांतरण के रूप में दृष्टिगोचर होने वाले चरों के चार सेटों का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं
(i) धर्मांतरण से व्यक्ति के आस-पास के संबंधी भी अत्यधिक प्रभावित होते हैं। यह परिवर्तन समाज, समुदाय, निकट संबंधी तथा मित्रमंडली को भी प्रभावित करता है।
(ii) धर्मांतरण में नेता की भूमिका प्रमुख होती है। एक सुदृढ़ नेता ही धर्मांतरण की प्रक्रिया में उठने वाले प्रश्नों का जवाब दे सकता है। किसी समुदाय के व्यक्ति के सामने धर्मांतरण एक क्षणभंगुर प्रक्रिया होती है जिसमें नए विचारों को नेता द्वारा परिपुष्ट किया जाता है।
(iii) धर्मांतरण से व्यक्ति की विचार दृष्टि में व्यापक परिवर्तन आता है। उसकी विश्वदृष्टि भी बदलती है। नए धर्म के विश्वासों और कर्मकांडों को अपनाने से स्वाभाविक रूप से व्यक्ति की दृष्टि में अंतर आता है।
(iv) व्यवहार में परिवर्तन धर्मांतरण का व्यापक प्रभाव उद्घाटित करता है। एक व्यक्ति यदि धर्म ‘क’ से धर्म ‘ख’ में जाता है तो उसको धर्म ‘ख’ के सभी व्यवहारों का अनुपालन करना होता है जो एक व्यापक मानसिक और व्यावहारिक परिवर्तन है।
अत: कह सकते हैं कि धर्मांतरण एक मानसिक परिवर्तन है जिसका समुदाय पर प्रभाव पड़ता है तथा नयी जीवनशैली और संस्कृति को अपनाने के बाद मनुष्य नए जीवन का अनुभव करता है। इसका दूसरा पक्ष है कि धर्मांतरण से धर्मों के बीच की दूरी घट सकती है अन्यथा इसका नकारात्मक और विरोधात्मक पहलू यह है कि धार्मिक वर्चस्व की जंग छिड़ सकती है।
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