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प्रशासन के सामान्य सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन कीजिए।

 प्रशासन के सामान्य सिद्धान्त — प्रशासन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का विवेचन इस प्रकार है 

विभागीकरण का सिद्धान्त — माहाघ्रशासन प्रचन्धन का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त स्वयं ही उन आधारों का समाधान करता है जिन पर संगठन में कार्य का विभाजन हो सकता है और विभागों का सृजन किया जाता है।

लूथर गुलिक ने चार आधारों की पहचान की। इन पर भिन्न-भिन्न विभाग बनाये गए हैं। ये आधार निम्न प्रकार हैंउन्हें सामान्यतया गुलिक के 4 P’s के रूप में जाना जाता है।

(1) प्रयोजन — सर्वप्रथम, कार्य के मुख्य प्रयोजन को कार्य के आधार पर विभाजित किया जा सकता है। कतिपय विभागों का सृजन करने हेतु संगठन के मुख्य प्रकार्य और लक्ष्य पहचाने जाते हैं। प्रत्येक कार्य के लिए विभाग सृजन किए जाते हैं।

जैसे लोगों के कल्याण की देखभाल हेतु ‘प्रयोजन के आधार पर विभाग का सृजन किया गया था। इसी के अनुरूप अन्य प्रयोजनों के आधार पर अन्य विभाग भी सृजित किये जा सकते हैं।

लाभ – इस प्रकार के विभागों के लाभ निम्नलिखित हैं

(i) सर्वप्रथम, वे स्वतः पूर्ण विभाग हैं।

(ii) विभाग के संचालन में कम समन्वय लागत आती है।

(iii) ऐसे विभाग लक्ष्य प्राप्त करने में अधिक निश्चित होते हैं.

दोष –प्रयोजन आधारित विभागों को कुछ असुविधाएं भी हैं, जैसे

(i) कार्य विभाजन की संभावना की कमी होना

(ii) अद्यतन प्रौद्योगिक का प्रयोग करने में असफलता और

(iii) विभाग में काम करने वाले विशेषज्ञों के लिए पर्याप्त कार्य का अभाव।

(2) प्रक्रिया या प्रवीणता — कुछ विभाग उनके कार्य में अंतर्निहित प्रक्रिया या निपुणता के आधार पर सृजित किये जाते हैं। जैसे-इंजीनियरिंग विभाग को प्रक्रिया या निपुणता पर आधारित सभी कार्यों को एक साथ समूहीकृत किया जाना चाहिए, क्योंकि उसमें उसी प्रकार के ज्ञान, निपुणता और प्रक्रियाओं का प्रयोग अंतर्निहित है।

लाभ — गुलिक ने प्रक्रिया आधारित विभाग का लाभ बताते हुए कहा है कि यह प्रत्येक प्रक्रिया प्रकार के कार्य की विपुल मात्रा को एक ही कार्यालय में एक साथ लाता है। अतएव सर्वाधिक प्रभावकारी कार्य और विशेषज्ञता का विभाजन करना संभव है।

दोष — इस आधार की मुख्य असुविधा यह है कि इसमें विभाग का प्रयोजनहीन विभाजन और वृद्धि होती है।

(3) व्यक्ति या ग्राहक — तीसरा आधार सेवा प्राप्त (सेवित) ग्राहक के अनुसार कार्य की विशेषता विभागीय संगठनों का है। जैसे-वृद्धावस्था कल्याण विभाग विशेष रूप से उस प्रकार के व्यक्तियों की सेवा करता है, जिन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता है।

गुण – इस विभाग में काम करने वाले लोग कालान्तर में उन विशिष्ट ग्राहकों की सेवा करने की विशेषज्ञता व प्रवीणता अर्जित कर लेते है।

दोष – इस विभाग की असुविधा यह है कि द्वैधवृत्ति और परस्परव्यापी होने के कारण ऐसे संगठनों के मध्य समन्वय कठिन होता है।

(4) स्थान या राज्य क्षेत्र – कुछ संगठनों के लिए स्थान आधार होता है। जिला प्रशासन या जनजाति विकास क्षेत्र इसके उदाहरण हैं। यहां निर्दिष्ट स्थान में निष्पादित समस्त कार्य एक साथ सम्मिलित किए जाते हैं और विभाग का सृजन किया जाता है। 

गुण – यह किसी भी क्षेत्र के गहन विकास के लिए उपयोगी है।

दोष – ऐसे विभागों के सदस्य प्रकार्यात्मक विशेषज्ञता और संवृद्धि के अभाव से ग्रस्त होते हैं।

एकल शीर्ष कार्यपालक या निर्देश की एकता का सिद्धांत — इस सिद्धान्त का आधार यह है कि एक ही निदेशक या कार्यपालक संगठनों का प्रमुख होना चाहिए।

यूर्विक ने प्रशासन के प्रयोजनों के लिए समितियों के प्रयोग के विरुद्ध चेतावनी दी है। उसका विचार है कि ‘बोर्ड और आयोग’ विफल सिद्ध हुए हैं। इसमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

(1) वे धीमे, बोझिल, अपव्ययी और निष्प्रभावी हैं।

(2) ये अन्य एजेंसियों से सहयोग नहीं करते हैं।

सरकार में सुव्यवस्थित प्रशासनिक इकाई का प्रमुख एक ही प्रशासक होता है। गुलिक की इस विचारधारा का कारण यह है कि उसने प्रशासन प्रबन्धन पर राष्ट्रपति समिति के सदस्य के रूप में संयुक्त राज्य संघ सरकार में अनेक बोर्डों और आयोगों की संरचना के स्थान पर एक व्यक्ति प्रशासनिक दायित्व के सिद्धान्त के प्रयत्न में ऐसा अनुभव किया।

आदेश की एकता का सिद्धान्त – “आदेश की एकता” के लिए संगठन में अधीनस्थों को केवल एक ही उच्च अधिकारी से आदेश प्राप्त करने चाहिए। गलिक ने इस सम्बन्ध में फेयॉल से सहमति प्रकट की है, जिसने कहा “एक व्यक्ति दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता है। 

स्टाफ का सिद्धान्त — स्टाफ के सिद्धान्त के बात पर बल दिया जाता है कि संगठनात्मक कार्यकलाप के निष्पादन में कार्यपालक को बड़ी संख्या में अधिकारियों की सहायता की आवश्यकता होती है। कार्यपालक इस स्टाफ सहायता का पात्र होता है। स्टाफ दो श्रेणियों के होते हैं

(1) सामान्य स्टाफ-सामान्य स्टाफ जानने, सोचने और योजना निर्माण कार्यों में कार्यपालक की सहायता करता है।

(2) विशेष स्टाफ-संगठन के मूलभूत प्रकार्यों के निर्वहन में कार्यपालक की सहायता करता है।

यूर्विक का मत है कि सभ्य समाज में जो सहायक शीर्ष कार्यपालक की ओर से कार्य करता है। उसे वरिष्ठ अधिकारियों के प्राधि कार पर अतिक्रमण के रूप में माना जाता है। इस समस्या के समाधान हेत गलिक का सुझाव है कि सहायक व्यक्ति “अनामत्व का मनोभाव वाला” होना चाहिए।

प्रत्यायोजन का सिद्धान्त — प्रत्यायोजन के सिद्धान्त में प्रशासक निम्न प्रकार कार्य करता है

(1) अपना कार्य करने के लिए आवश्यक प्राधिकार अपने पास रखता है।
(2) शेष कार्य अपने अधीनस्थों को प्रत्यायोजन करने की आवश्यकता पर बल देता है।

ऐसे प्रत्यायोजन के अभाव में अधीनस्थ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकते हैं। यूर्विक के अनुसार, “उचित ढंग से प्रत्यायोजित करने के साहस के अभाव और इसे कैसे किया जाना है, इसके ज्ञान के अभाव संगठन में विफलता के सामान्य कारणों में से एक है।”

यूर्विक का अनुभव है कि यदि कार्यपालक अपने अधीनस्थों को कार्यों का प्रत्यायोजन नहीं करते हैं तो वे संगठन दक्षतापूर्वक कार्य नहीं करते हैं। कार्यपालकों में उत्तरदायित्व में प्रत्यायोजन की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है, जिन्हें प्राधिकार सौंपे गए हैं। उनमें निम्नलिखित गुण हैं

(i) वे पूर्ण हो 
(ii) वे अपने अधीनस्थों की कार्यवाहियों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी हो।

प्राधिकार से तुल्य उत्तरदायित्व का सिद्धान्त –– इस सिद्धान्त की मान्यता है कि प्राधिकार और उत्तरदायित्व कोटर्मिनस, सहसमान और सुस्पष्ट होने चाहिए। फेयॉल ने उत्तरदायित्व की भावना को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।

तथापि यूर्विक ने प्राधिकार उत्तरदायित्व संबंध के दोनों पक्षों पर विचार किया है। कुछ कार्यों के लिए लोगों को उत्तरदायी मानना पर्याप्त नहीं है

(1) आवश्यक यह है कि उन्हें उत्तरदायित्व के निर्वहन के लिए आवश्यक प्राधिकार प्रत्यायोजित हों।

(2) प्राधिकार का प्रयोग करने वाले सभी व्यक्तियों के उत्तरदायित्व उस प्राधिकार के अन्तर्गत पूर्णतः परिभाषित हों।

(3) प्राधिकार प्रयोगकर्ता व्यक्ति अधीनस्थों द्वारा की गई सभी कार्यवाहियों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी हो।

नियन्त्रण विस्तार का सिद्धान्त — नियन्त्रण विस्तार सिद्धान्त के अनुसार पर्यवेक्षक अधीनस्थों की कुछ संख्या से अधिक को नियन्त्रित नहीं कर सकता है।

यूर्विक के अनुसार.”कोई भी पर्यवेक्षक पांच से अधिक के कार्य का पर्यवेक्षण प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकता है या अधिक से अधिक अधीनस्थों के कार्य का पर्यवेक्षण तब कर सकता है, यदि उनका कार्य आपस में जुड़ा हुआ हो। इस सिद्धान्त का आधार मनोवैज्ञानिक अवधारणा “ध्यान का विस्तार” है।

कार्य विभाजन का सिद्धान्त — कार्य विभाजन के सिद्धान्त के अनुसार संगठन में दक्षता और प्रभाविकता लाने के लिए कार्य को विभाजित कर उन लोगों को सौंपा जाना चाहिए, जो उसमें विशेषज्ञ हैं। गुलिक का अनुभव है कि कार्य विभाजन संगठन का आधारभूत सिद्धान्त है और यह संगठन के अस्तित्व का लक्ष्य है।

आधार :– 

1) गुलिक के अनुसार प्रत्येक विशाल मात्रा या जटिल उद्योग को उसे आगे बढ़ाने के लिए बहुत से व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार जब कभी बहुत से व्यक्ति एक साथ काम करते हैं तो उस समय सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त किये जाते हैं जब इन व्यक्तियों में कार्य का विभाजन हो।

(2) मनुष्य ने संगठन का आविष्कार इस कारण किया, क्योंकि वह अकेले ही कार्य निष्पादन में सफल न हो सका। परिणामत: उसे कार्य का विभाजन करना पड़ा। वह कार्य विभाजन संगठन की उत्पत्ति का मूल कारण है।

(3) प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रवीणता, दक्षता और अभिरुचि में भिन्न-भिन्न होता है।

(4) एक ही व्यक्ति एक ही समय में दो स्थानों पर काम नहीं कर सकता। न ही वह एक ही समय में दो ड्यूटियां ही कर सकता है।

(5) भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बढ़ते हुए ज्ञान के सन्दर्भ में भी कार्य विभाजन और भिन्न-भिन्न प्रकार का कार्य भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को सौंपना अपरिहार्य है।

(6) कार्य विभाजन से संगठन में उत्पादन और दक्षता में वृद्धि होती है।

सीमाएं –– कार्य विभाजन की अपनी सीगाएं हैं। गुलिक ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सीगाएं गिनाई हैं

(i) कार्य की मात्रा,

(ii) प्रौद्योगिकी,

(iii) रीति-रिवाज,

(iv) भौतिक सीमाएं, 

(v) जैविक सीमाएं,

(vi) काम बहुत कम होने पर उसका विभाजन नहीं हो सकता है,

(vii) कार्य के विभाजन हेतु उसे करने के लिए निपुणता सम्पन्न व्यक्ति उपलब्ध होने चाहिए,

(viii) विभाजित भागों के एकीकरण के बाद कार्य विभाजन होता है।

गुलिक के अनुसार कार्य विभाजन और एकीकरण अपने प्रयासों से अपनी स्थिति में सुधार करता है, जिससे मनुष्य जाति सभ्यता प्रक्रिया में स्वयं को अग्रसर करती है।

समन्वय का सिद्धान्त — इस सिद्धान्त के अनुसार कार्य के विभाजित किये जाने और भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को सौंपे जाने के पश्चात संगठन के नियत कार्यों को प्राप्त करने के लिए उस कार्य का समन्वय किया जाए। समन्वय मूलतः संगठन में विभिन्न व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य को एक साथ लाना है। मनी ने इस सिद्धान्त के महत्त्व पर बल देते हुए स्वीकार किया कि समन्वय ही किसी भी मानव संगठन का आधारभूत सिद्धान्त हैं।

– उसके अनुसार शब्द संगठन और सिद्धान्त जो इसे नियंत्रित करते हैं, प्रत्येक प्रकार के सामूहिक मानव प्रयास में अन्योन्यक्रिया करते हैं, उस समय भी जब इसमें दो से अधिक व्यक्ति सम्मिलित होते हैं। उसने पत्थर हटाने के लिए दो व्यक्तियों के प्रयास का उदाहरण देकर कहा है कि यहां हमारे पास समन्वय है, यह संगठन का प्रथम सिद्धान्त है।”

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पदानुक्रम का सिद्धान्त –– पदानुक्रम का निम्न स्तर के कार्मिकों पर उच्च स्तर के अधिकारियों का नियंत्रण निर्दिष्ट करता है।  प्रशासनिक संरचना में पदानुक्रम का तात्पर्य अनेक अनुक्रमिक स्तरों या सोपानों का ग्रेडयुक्त संगठन है। पदानुक्रम को स्केलर सिद्धान्त भी कहते हैं। पदानुक्रम के कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं

(i) संगठन में व्यक्तियों को क्रम में रखता है।
(ii) यह संगठन में कार्य सरल प्रवाह को सुगम भी बनाता है।
(iii) आसान समन्वय नियंत्रण को सुगम बनाता है।

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