‘निर्मला’ उपन्यास में लेखक ने निर्मला के माध्यम से नारी समस्या का यथार्थ चित्रण किया है। दहेज न दे पाने के कारण निर्मला का विवाह टूट जाता है। एक अधेड़ व्यक्ति मुंशी तोताराम से निर्मला का विवाह कर दिया जाता है। एक पिता समान व्यक्ति को पति के रूप में स्वीकार करना, निर्मला के लिए आसान नहीं होता है। निर्मला का प्यार पाने के लिए तोताराम तरह-तरह के स्वांग रचते हैं।
इसी बीच तोताराम को अपने बड़े पुत्र मंसाराम तथा निर्मला के बीच संबंध का शक हो जाता है. क्योंकि दोनों हमलम हैं। तोताराम अपने पुत्र को घर से दूर रखने का प्रयास करते हैं। मंसाराम पिता की शंका के कारण मानसिक पीड़ा में जीने लगता है। अंतत: वह मर जाता है। तोताराम को अपनी भूल का एहसास होता है। वे पश्चाताप करने लगते हैं।
ढंग से काम न करने के कारण घर की आर्थिक स्थिति भी खराब होती गई। तोताराम का सबसे होग पुत्र सियाराम भी एक साधु के जाल में फंसकर घर में चला जाता है। मुंशी तोताराम भी घर छोड़कर चले जाते हैं। उधर निर्मला का स्वास्थ्य भी दिन-प्रतिदिन गिरता चला जाता है। अपनी पुत्री ननद रुक्मिणी देवी को सौंपकर निर्मला इस संसार को त्याग देती है।
निर्मला की जीवन कथा ही इस उपन्यास का आधार है। प्रेमचन्द ने मुख्य कथा को सशक्त बनाने के लिए प्रासंगिक कथाओं की रचना की है। निर्मला उपन्यास की कथा को हम तीन भागों में बांट सकते हैं
(1) कथा का आरंभ,
(2) कथा का विकास,
(3) कथा की परिणति। कथा का आरंभ
‘निर्मला’ उपन्यास की कथा का आरंभ वर्णनात्मक ढंग से हुआ है। कथा के आरंभ में ही लेखक ने यह बता दिया है कि वह किस पात्र के द्वारा कथा कहने जा रहा है। उपन्यास के आरंभ में ही लेखक ने दहेज प्रथा की समस्या को सामने रख दिया है। निर्मला के विवाह खर्च को लेकर उसके माता-पिता के बीच तर्क-वितर्क होता है। उसके पिता घर से निकल पड़ते हैं। मटा जिसे उदयभानुलाल ने जेल करवाई थी, बदला लेने के लिए उदयभानुलाल की हत्या कर देता है। निर्मला की मां को उसके विवाह की चिन्ता सताने लगती है, परन्तु भालचन्द्र दहेज न मिलने की संभावना के कारण अपने बेटे की सगाई तोड़ देता है।
कथा का विकास :- उपन्यास के प्रारंभ में निर्मला के पिता की मृत्यु के बाद दहेज न दे पाने के कारण निर्मला की सगाई टूट जाती है। कथा के विकास के लिए उपन्यासकार ने दहेज का प्रसंग लिया है। निर्मला की माँ उसके लिए योग्य वर नहीं खुन पाती, व्योंकि इसके लिए उसे दहेज देना पड़ता, जो उसके लिए संभव नहीं था, इसलिए निर्मला का विवाह अधेड़ तोताराम से हो जाता है।
निर्मला’ : छोटी-छोटी घटनाए कथा के विकास को आगे बढ़ाती हैं। निर्मला का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। जब मंसाराम बीमार हो जाता है तब भी तीताराम का संदेह नहीं होता है, अंततमसाराम की मृत्यु हो जाती है. मसागम को मृत्यु के बाद तोताराम को अपनी भूल का अहसास होता है। एक दिन तोताराम का मंझला पुत्र जियाराम निमला के गहनों की चोरी कर लेता है। निर्मला उसे देख लता है. परन्तु चुप रहती है। अपराधी का पता चल जाने के बाद तोताराम पैसे देकर बात दबा देते हैं, परन्तु आत्मग्लानि के कारण जियाराम आत्महत्या कर लेता है।
दूसरे पुत्र को खाने के कारण तोताराम की स्थिति और बिगड़ जाती है। मुकदमे का कार्य ठीक ढंग से न करने के कारण घर की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ जाती है। तोताराम का सबसे छोटा पुत्र सियाराम साधुओं के प्रलोभन में फंसकर घर से चला जाता है। तोताराम भी उसे खोजने के लिए घर से निकल पड़ते हैं। निर्मला अकेली पड़ जाती है। दुख की इस घड़ी में निर्मला को सुधा का सहारा मिलता है।
कथा की परिणति-कथा के विस्तार के लिए लेखक ने कई प्रसंगों को जोडा है। वर्णन पद्धति के द्वारा कथा आगे बढ़ती है। उपन्यास में निर्मला विभिन्न परिस्थितियों से जूझती है। निर्मला की सहेली सुधा भी चली जाती है। दुख सहते-सहते वह अस्वस्थ हो जाती है। रुक्मिणी से अपनी पुत्री को अनमेल विवाह से बचाने का निवेदन कर निर्मला प्राण त्याग देती है। उपन्यासकार ने निर्मला के जीवन की त्रासदी का वर्णन करते हुए, उसकी मृत्यु से कथा का अन्त किया है।
निर्मला उपन्यास का प्रमुख लक्ष्य है समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों की आलोचना प्रस्तुत करना। प्रेमचन्द ने निर्मला उपन्यास में मध्यवर्ग के पारिवारिक और सामाजिक जीवन के माध्यम से अपनी आलोचना प्रस्तुत की है। उपन्यास में काफी विविधता देखने को मिलती है। निर्मला उपन्यास की मुख्य कथा मुंशी तोताराम तथा निर्मला के इर्द-गिर्द घूमती है, परन्तु अनेक उपकथाओं के द्वारा मुख्य कथा को सशक्त बनाया गया है। निर्मला उपन्यास की कथावस्तु की विशेषताएं इस प्रकार हैं
(1) मुख्य कथा-सूत्रों की पारस्परिकता और एकसूत्रता-निर्मला उपन्यास में मुख्य रूप से पांच कथा प्रसंग मिलते हैं
(क) बाबू उदयभानुलाल और कल्याणी का प्रसंग,
(ख) सुधा और डॉक्टर का प्रसंग,
(ग) रुक्मिणी का प्रसंग.
(घ) मंसारम का प्रसंग,
(ङ) जियातम और सियाराम का प्रसंग।
निर्मला उपन्यास के इस पांचों प्रसंगों का संबंध निर्मला और मुशी तोताराम की मुख्य कथा के साथ है। कल्याणी निर्मला की मां है और उदयभानु लाल उसके पिता हैं। निर्मला के दुखी जीवन के लिए उसके माता-पिता भी जिम्मेदार है। निर्मला के विवाह से पहले उसके पिता उदयभानु लाल को असामयिक मृत्यु हो जाती है, जिसके कारण निर्मला की मां निर्मला का विवाह एक अधेड़ व्यक्ति मुंशी तोताराम से कर देती है।
निर्मला के दुखद जीवन का आरंभ उसके विवाह के साथ ही प्रारंभ हो जाता है। डॉ. सिन्हा तथा सुधा का प्रसंग एक स्वतंत्र प्रसंग है। डॉ. सिन्हा के साथ ही निर्मला का विवाह ठीक था, परन्तु सगाई टूट जाने पर निर्मला की दुर्भाग्य गाथा शुरू हो जाती है। यह प्रसंग कथा को अप्रत्यक्ष रूप से भी तथा प्रत्यक्ष रूप ने भी प्रभावित करता है। कथा में नाटकीयता लाने के लिए ही लेखक ने इस प्रसंग को कथा में जड़ा है। डॉ. सिन्हा इसके प्रायश्चित स्वरूप अपनी पत्नी की प्रेरणा से अपने छोटे भाई का विवाह निर्मला की छोटी बहन कृष्णा से कर देता है।
रुक्मिणी, सयाराम, मंसाराम तथा जियाराम का प्रसंग एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। जब निर्मला विवाह कर मुंशी तोताराम के घर आती है तो वहां पहले से ही तीतागम की बहनक्मिणी, उसके तीकी पुत्र, मसाराम सियाराम तव्या जियागममीजूत होता है। शो तोताराम की बहन कमिणी नेमला को सदा कोसती रहती है, क्योंकि अब घर की मालकिन का पद उससे छिन गया है। अब घर की मालकिन निर्मला है।
रुक्मिणी तोताराम के तीनों बेटों का लिमला के विरुद्ध उकसाती रहती है या उनम हा भावना भाने लगता है कि वह सौतेली मां है तथा उनका जीवन नष्ट करना चाहती है। मंसाराम के प्रसंग से जहां कहानी को एक नया मोड़ मिलता है, वहीं जियाराम तथा सियाराम के प्रसंग से कहानी में जटिलता उत्पन्न होती है। कथा को सभी प्रसंगों के द्वारा मजबूती मिलती है जिससे कथा की एकसूत्रता तथा संबद्धता कायम रहती है।
(2) प्रासंगिक कथा-सूत्रों की मुख्य कथा-सूत्रों से संबद्धता – उपन्यास के प्रासंगिक कथासूत्र सहायक पात्रों तथा मुख्य पात्रों, दोनों से ही संबद्ध है। निर्मला उपन्यास में बाबू भालचन्द्र तथा मतई का प्रसंग ऐसे ही प्रसंग हैं। उपन्यास में मतई के प्रसंग से ही एक संपन्न परिवार का नाश हो जाता है।
उपन्यास में भालचन्द्र के प्रसंग से ही निर्मला का जीवन कष्टमय हो जाता है। भालचन्द्र धन का लोभी है जिमके कारण निर्मला का विवाह जमसे नहीं हो पाता, अत: निर्मला का विवाह एक अधेड़ व्यक्ति मुंशी तोताराम मे हो जाता है। उपन्याम में मोटेराम के प्रसंग, नयनसुख के प्रसंग, रंगीलीबाई के प्रसंग तथा साधुओं के प्रसंग द्वारा लेखक ने सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत किया है।
(3) संपूर्ण कथाओं की एकसूत्रता-‘निर्मला’ उपन्यास के सभी प्रसंग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कोई प्रसंग उपन्यास को पूर्णता प्रदान करता है, तो कोई प्रसंग उपन्यास को गति प्रदान करता है। सभी प्रसंगों में एकसूत्रता विद्यमान है।
(4) अन्तर्कथाओं का वस्तु-विन्यास में स्थान-उपन्यासकार ने उपन्यास में कहीं-कहीं पात्रों के विगत जीवन के बारे में भी वर्णन किया है। इन्हें ही अन्तर्कथाएं कहा जाता है। इनसे जहां उपन्यास की रोचकता बढ़ती है वहीं पात्रों को समझने में भी सहायता मिलती है। उदाहरण के लिए, उपन्यास में मुंशी तोताराम, रुक्मिणी देवी तथा मतई के विगत जीवन का वर्णन किया गया है।
(5) कथाओं का विस्तार-‘निर्मला’ उपन्यास में कथाओं का विस्तार आवश्यकता के अनुरूप ही किया गया है। उपन्यासकार ने जिस स्थान पर पात्रों की आवश्यकता जरूरी नहीं समझी, वहां उनका उल्लेख नहीं किया है। कथाओं के विस्तार से उपन्यास में स्वाभाविकता का पुर आ गया है।
उपन्यास में कथा-प्रसंग सुनियोजित हैं। उदाहरण के लिए. मतई का प्रसंग समयानुकूल आता है। कल्याणी का प्रसंग भी सिर्फ शुरू में ही आया है। इसी प्रकार मेहन सिन्हा का प्रसंग भी प्रारंभ में ही है। लेखक ने जब उचित समझा तभी इन पात्रों को उपन्यास में उपस्थित किया है। कथाओं की इस प्रकार योजना से संपूर्ण कथानक में एकसूत्रता तथा संगठनात्मकता लाने में सहायता मिली है।
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