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भर्ती के विभिन्‍न चरणों को उजागर कीजिए।

 भर्ती प्रक्रिया के अंतर्गत निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं - 

कार्य माँग – भर्ती प्रक्रिया का प्रथम चरण कार्यकर्ता की मांग है। इस चरण में कार्य से संबंधित सभी सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। उनका विश्लेषण किया जाता है। कार्य के अनिवार्य तत्त्वों, उस पर प्रभाव डालने वाले कारकों (सामाजिक, भौतिक, आर्थिक) आदि का विस्तृत अध्ययन किया जाता है।

कार्य हेतु अनिवार्य योग्यताओं, शैक्षणिक योग्यताओं, तकनीकी ज्ञान, कार्य से संबंधित पूर्व अनुभव, कार्मिकों की आयु, शारीरिक क्षमता आदि पहलुओं की विस्तृत समीक्षा की जाती है।

आवदेनपत्र की अभिकल्पना – कार्य की समीक्षा करने के बाद उसकी आवश्यकताओं के अनुरूप आवेदनपत्र की रूपरेखा तैयार की जाती है। इस आवेदनपत्र द्वारा उम्मीदवारों के संबंध में सभी आवश्यक जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं। एक सुवर्णित आवेदनपत्र भर्ती प्रक्रिया की सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। उम्मीदवार के विषय में जानकारी प्राप्त करने का यह एक सरल और कम खर्चीला माध्यम है।

परन्तु कुछ विद्वानों का मानना है कि आवेदनपत्र पर अधिक निर्भरता, उन कर्मचारियों की उपलब्धता में बाधक होती है, जो आवेदन की प्राथमिक योग्यताओं को पूरा नहीं कर पाते, लेकिन उनमें उत्कृष्ट सृजनात्मक कार्यकुशलता विद्यमान होती है। औपचारिक योग्यताओं और मानदण्डों के अभाव में ये उम्मीदवार साक्षात्कार तक नहीं पहुँच पाते। इस कारण संगठन इनकी सेवाओं से वंचित रह जाता है।

अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे आवेदनपत्र की रूपरेखा तैयार करते समय इस बात पर भली-भाँति विचार कर लें कि निर्धारित न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और कार्य विशिष्ट अनुभव वास्तव में पद विशेष के लिए अनिवार्य है या नहीं।

विज्ञापन-अभ्यर्थियों को संगठन के रिक्त स्थानों का पता, उनके (संगठनों) द्वारा दिए जाने वाले विज्ञापनों से चलता है। यह काफी कुछ विज्ञापन के ऊपर निर्भर करता है कि वह कितने कुशल अभ्यर्थियों को आवेदन करने के लिए आकर्षित कर पाता है। अत: विज्ञापन का प्रारूप तैयार करते समय भी भर्ती संस्थाओं को अनेक बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि यह वैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो।

दया राम बनाम हरियाणा राज्य 1974 केस में उच्च न्यायालय ते निर्णय दिया कि विज्ञापन इस बात की गारण्टी नहीं लेता कि सभी वर्णित पदों को भरा जायेगा।’ अर्थात विज्ञापन में वर्णित पदों को संगठन द्वारा भरा ही जायेगा, इस बात की कोई निश्चितता नहीं होती है।

आवेदन आमंत्रित करने के स्रोत-आवेदन कई माध्यमों द्वारा आमंत्रित किये जा सकते हैं

  1. समाचार-पत्र (दैनिक, साप्ताहिक),
  2. व्यावसायिक पत्र-पत्रिकाएं (साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक),
  3. कार्यस्थल पर सूचनापट
  4. रोजगार समाचार-पत्र आदि। 

विज्ञापन की तकनीक :- विज्ञापन देना भी एक कला है। विज्ञापन प्रभावशाली हो, इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। विज्ञापन की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। उसमें अत्यधिक आरेखीकरण न हो। सभी आवश्यक सूचना संबंधी कॉलम हो। विज्ञापन की श्रेष्ठता का मूल्यांकन इस आधार पर किया जा सकता है कि किसी पद विशेष के लिए विज्ञापन कितने उम्मीदवारों को आकर्षित कर पाया है।

यदि किसी पद के लिए बहुत कम उम्मीदवार हों या बहुत ज्यादा उम्मीदवार हों, जिनके पास आवश्यक योग्यता और कौशल भी न हो, तो समझना चाहिए कि विज्ञापन प्रारूप की पुनर्समीक्षा की आवश्यकता है। आवेदनों की जाँच-भर्ती का अगला चरण उम्मीदवारों द्वारा भेजे गये आवेदनों की जाँच करना होता है। इस प्रक्रिया में उन आवेदनों को अलग किया जाता है, जो अनिवार्य अर्हताएं पूरी नहीं करते हैं।

इसके साथ ही अधूरे भरे गये आवेदनपत्रों या अधूरी जानकारी वाले आवेदनपत्रों को भी अलग कर दिया जाता है। यदि संगठन को प्राप्त आवेदनपत्रों की संख्या बहुत अधिक होती है, तो उसके द्वारा कुछ मानदण्ड भी निर्धारित किये जा सकते हैं, जैसे प्रतिभा सूची तैयार करना। इस आधार पर उन उम्मीदवारों की छंटनी कर दी जाती है, जो इस सूची में सबसे नीचे स्थान पर रहते हैं।

प्रतिभा सूची के अलावा भी नियोक्ता अन्य तरीकों द्वारा छंटनी कर सकता है। नियोक्ता इस बात के लिए पूरी तरह स्वतंत्र होता है कि वह उम्मीदवारों की संख्या को सुनिश्चित करने के लिए कौन-से प्रावधान तय करता है।

चयन :- योग्य कर्मचारियों के चयन के लिए किसी भी भर्ती प्रक्रिया या परीक्षा (लिखित परीक्षा या साक्षात्कार) का सहारा लिया जा सकता है।  इन प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन के आधार पर जो उम्मीदवार अधिक अंक प्राप्त करते हैं या अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उनकी एक क्रमांक सूची तैयार कर ली जाती है।

सामान्यतः इस सूची में रिक्त पदों से अधिक उम्मीदवारों के नाम होते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे किसी योग्य कर्मचारी के द्वारा यदि अपना पद छोड़ दिया जाए, तो उसके स्थान पर दूसरे कर्मचारी को नियुक्त किया जा सके। इस सूची में उम्मीदवारों को अपना-अपना पद ग्रहण करने की एक समय-सीमा निर्धारित कर दी जाती है तथा यह सूची उस समय-सीमा तक वैध रहती है और कार्मिक नियुक्तियाँ इसी सूची के आधार पर होती रहती हैं।

पत्र-व्यवहार (संवाद) :- उम्मीदवारों के चयन के पश्चात उन्हें उनके चयन की सूचना देने का कार्य किया किया जाता है। असफल म्मीदवारों को उनके चयनित न होने की सूचना देना या त देना संगठन के मानकों पर निर्भर करता है। कुछ संगठन सभी उम्मीदवारों को अंक तालिका सहित उनकी नियुक्ति और उनकी असफलता दोनों की जानकारी देते हैं,

जबकि कुछ संगठन केवल चयनित उम्मीदवारों को ही सूचना देने का कार्य करते हैं। चयनित उम्मीदवारों को भेजे जाने वाले सूचना पत्र में कार्य से संबंधित सभी दिशा-निर्देशों, शर्तों और तथ्यों से अवगत कराया जाता है। उम्मीदवार को नियुक्ति-पत्र का वितरण चयन के बाद किया जाता है। नियुक्ति-पत्र में कार्य की शर्ते और नियम स्पष्ट रूप से अंकित होने चाहिए, ताकि भविष्य में वैधानिक समस्याओं से निपटा जा सके।

पद-नियोजन – चयन प्रक्रिया पूरी करने के बाद तथा उम्मीदवार को नियुक्ति-पत्र सौंपने के बाद, उसे अस्थायी तौर पर पर कुछ समय के लिए नियुक्त किया जाता है।

इस अवधि के दौरान कर्मचारी के कार्य-व्यवहार, कार्य-कौशल आदि की परख की जाती है। जब वह अपनी कार्यकुशलता से नियोक्ता को प्रसन्न कर देता है, तब उसे स्थायी तौर पर नियुक्त कर लिया जाता है। भर्ती प्रक्रिया के इन सभी चरणों को इस रेखांकन के द्वारा और आसानी से समझा जा सकता है

लोक सेवा में नियुक्ति – सिविल सेवा या लोक सेवा से तात्पर्य सरकारी सेवाओं से है. जिसमें सैनिक और असैनिक दोनों प्रकार के सेवाकर्मी होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 द्वारा रक्षाकर्मी नागरिक (सिविल) पदाधिकारी नहीं होते।

स्थायी या अस्थायी पद-पद शब्द का अर्थ सेवा में स्थान से होता है। लोक सेवा में नियुक्ति स्थायी पद पर भी हो सकती है और अस्थायी पद पर भी। स्थायी पद से तात्पर्य उस सेवा से होता है, जो एक निश्चित समय-सीमा, आयु-सीमा और वेतन दर द्वारा तय की जाती है।

एक बार कर्मचारी द्वारा पद ग्रहण करने के बाद वह अपने सेवा-निवृत्ति काल के बाद ही उसे छोड़ता है। इससे पहले वह स्वयं पद त्याग कर सकता है और उसे निष्कासित भी किया जा सकता है, परन्तु उसे किसी अनुशासनात्मक कार्यवाही के द्वारा या किसी व्यक्तिगत कारण द्वारा अन्यथा उसे उसके पद से वंचित नहीं किया जा सकता।

स्थायी पद पर नियुक्ति से पहले प्रत्येक कर्मचारी को परख अवधि से गुजरना पड़ता है। इस अवधि की सफलता पर ही स्थायी पद पर नियुक्ति निर्भर करती है। अस्थायी पदों पर नियुक्ति कुछ समय-सीमा के लिए होती है और इसको स्थायी करने का कोई प्रावधान नियोक्ता द्वारा नहीं किया जाता।

अर्द्ध-अस्थायी सेवा -अर्द्ध-अस्थायी सेवा उसे कहा जाता है, जिसमें किसी उम्मीदवार का चयन अस्थायी पद पर हुआ हो और उसे कार्य करते हुए तीन या इससे अधिक वर्ष लगातार कार्य करते हुए हो गये हों या उसकी नियुक्ति ही संगठन द्वारा अर्द्ध-स्थायी पद के अंतर्गत की गयी हो। इस तरह के पद के लिए पद पर कार्य करने का उसे अधिकार तो होगा, परन्तु वह स्थायित्व का दावा नहीं कर सकता।

जब तक कोई कर्मचारी कार्य करते हुए अर्द्ध-स्थायी स्तर पर प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक वह भारतीय सविधान के अनुच्छेद 311 के अंतर्गत सेवा में सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता।

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