लिंग समाजीकरण का अन्य दृष्टिगोचर पहलू लिंग रूढ़िवादिता है। लिंग रूढ़िवादिता का अर्थ किसी भी व्यक्ति में नकारात्मक विशेषताओं और पूर्वाग्रहों को सिर्फ इसी आघार पर मान लेना है कि वह व्यक्ति उस पहचान श्रेणी से जेंडर, युवा पहचान एवं संबंधित है। इसे थोड़ा और समझ लें। अगर हम भारत में किसी ग्रामीण व्यक्ति से मिलते हैं लैंगिकता और वह हमसे अंग्रेजी में बात करता है तथा वह भी किसी तकनीकी विषय जैसे हरी पत्तेदार सब्जियों से पोषण, तो हम खुशी से आश्चर्यचकित हो जाते हैं। सवाल यह है कि हम हैरान क्यों हैं? हम आश्चर्यचकित हैं क्योंकि हमने कभी नहीं सोचा था कि भारत में कोई ग्रामीण व्यक्ति, (क) अंग्रेजी बोल सकता है और (ख) हरी पत्तेदार सब्जियों से पोषण संबंधी घटकों के बारे में जानकारीप्रद बात कर सकता है? तो, आगे सवाल यह है कि हमने किसी व्यक्ति से मिलने से पहले ही उसके बारे में राय क्यों बना ली थी?
इसका जवाब मनोवैज्ञानिकों ने दिया है। मनोविज्ञान कहता है कि मानव मानस एक रुढ़िवद्ध धारणा' विकसित करता है जैसे भारत का ग्रामीण व्यक्ति कैसा होता है। हमने धारणा या छाप बनाई है कि ग्रामीण व्यक्ति न केवल अनपढ़ होते हैं और अंग्रेजी नहीं बोल सकते हैं बल्कि उन्हें पोषण या अन्य वैज्ञानिक विषयों का ज्ञान तो हो ही नहीं सकता है। इस तरह यह रूढ़िवादिता या धारणाएं ग्रामीण व्यक्ति के साथ हमारे दृष्टिकोण और बातचीत को इससे मिलने से पहले से ही निर्धारित करती हैं। हमारा देखने का नजरिया पक्षपातपूर्ण है जो कि उस ग्रामीण व्यक्ति के साथ अन्याय है।
इसी तरह, हम अपनी रूढ़ियों की समीक्षा किए बिना विभिन्न जाति, वर्ग, धर्म और नस्ल के लोगों के साथ नियमित रूप से संपर्क में आते हैं। जैसे कि हम कई बार लोगों को गलत मान लेते हैं कि कुछ लोग आपुद्ध हैं चूंकि वे किन्हीं विशेष समुदायों से संबंधित हैं। यह घोर अन्याय है। इसी तरह हम मानते हैं कि कुछ लोग हिंसक हैं, क्योंकि वे किन्हीं विशेष समुदायों से संबंधित हैं। यह भी घोर अन्याय है।
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