जैनेन्द्र का रचना संसार आजादी से पहले (1929 से) लेकर आजादी के बाद तक फैला हुआ है। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के दौर में ‘परख’, ‘सुनीता’: ‘त्यागपत्र’ और ‘कल्याणी’ उपन्यासों की रचना की। उस दौर में हिंदी समाज में क्रांतिकारी आंदोलन की चर्चा भी जोरों पर थीं। प्रेमचंद और जैनेन्द्र गाँधी जी के समर्थक होने के बाद भी जैनेन्द्र के ‘परख’, ‘सुनीता’,’त्यागपत्र’ या ‘कल्यणी’ उपन्यासों में स्वाधीनता आंदोलन की छाया नहीं है। जैनेन्द्र प्रेमचंद के निकटस्थ लोगों में से थे, कोकिन जैनेन्द्र ने साहित्य रचना के लिए प्रेमचंद से अलग रास्ता चुना। जैनेन्द्र ने अपने पूरे रचनाकाल में राजनीतिक जीवन को अपने रचना के केंद्र में नहीं रखा। पृष्ठभूमि के रूप में भले ही क्रान्तिकारी पल आए हों, किंतु जैनेन्द्र उसले पृन समर्थन के लिए पछि (लिसकर मजिक उसकी शांचवा फार है। जैनचं ऐसे पात्रों को एकामी और कुतित मानते हैं। गांधी जी के आंदोलन में भाग लेने के बाद भी स्वतंत्रता आन्दोलन उनकी रचनात्मकता का प्रेरक नहीं बना।
जैनेन्द्र ने प्रेमचंद के प्रभाव से अपने आप को मुक्त रखा और हिंदी कथा साहित्य को नई दिशा दी वही जैतून का महत्व है। हिंदी में जैनेन्द्र के लेखन से ही मनोवैज्ञानिक उपन्यासों को धारा प्रारम्भ हुइ प्रेमचंद के उपन्यासों में व्यक्ति-चरित्र समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, किंतु जैनेन्द्र के यहाँ चरित्र व्यक्ति ही बना रहता है। इनके उपन्यासों में समाज व्यक्ति को समझने में पृष्ठभूमि का काम करता है। एक ओर प्रेमचंद के संश्लिष्ट चरित्र भी संश्लिष्ट समाज को प्रस्तुत करते हैं। उपन्यासों में समाज के यथार्थ का चित्रण करने के कारण प्रेमचंद की कथाभूमि विस्तृत होती थी. लेकिन जैनेन्द्र को यह सब नहीं दिखाना था, इसलिए उनके उपन्यासों में कथानक बहुत छोटा होता है और उनमें पात्रों की संख्या भी सीमित होती है।
जैनेन्द्र के उपन्यासों में कथासार आठ-दस पृष्ठों में सिमट सकता है. इसलिए उनके उपन्यासों में घटनाएँ बहुत कम होती हैं। उनके पात्रों के जीवन में घटित एक-आध घटना में भी लेखक उसकी संगति में उस पात्र का मनोविज्ञान बताने लग जाता है। उस घटना का विरोध या प्रतिकार या परिवर्तन नहीं होने से जैनेन्द्र के उपन्यास आकस्मिकता, कौतूहलता आदि से परे हैं। उपन्यास पढ़ते समय पाठक |किसी काल्पनिक कथा का आनंद न लेकर प्रस्तूत जीवन को सहज रूप में देखते हुए चलते हैं।
विषयवस्तु :
जैनेन्द्र के उपन्यासों की कथा के केंद्र में व्यक्ति रहता है। बाहरी वातावरण से उसका संवाद कम होता है। जैनेन्द्र चित्रण करते हैं और चित्रण में कुछ अपने आप छूटता जाता है। जैनेन्द्र के उपन्यासों में कोई उपदेश, सामाजिक परिवर्तन और सुधार की बात नहीं होती, वे केवल अपनी बात कहते है। वे कथा में व्यंजना की अभिव्यक्ति से काम चला लेते हैं।
जैनेन्द्र के पात्र भी बोलते कम हैं, आत्मचिंतन अधिक करते हैं, जिस कारण उनके पात्रों का संघर्ष आंतरिक होता है। अनुभव की ताजगी के कारण जैनेन्द के आरंभिक उपन्यास अधिक प्रभावशाली हैं। उन्होंने प्रारम्भ में नई दृष्टि से चीजों को रखा, जबकि प्रेमचंद रचनात्मकता का विकास कर नवीन दृषि मे यथार्थ की नई जमीन की पड़ताल करने में सक्षम हो जाते हैं, किंतु जैनेन्द्र वैसा नहीं कर पाते। जैनेन्द्र का वर्णन डायरी या मुख्य पात्र के साक्ष्य से चलता है। ‘त्यागपत्र’ उपन्यास में सारा वर्णन जज प्रमोद करता है. लेकिन वह सिर्फ उन्हीं घटनाओं का वर्णन कर सकता है, जिनका वह स्वयं साक्षी रहा है।
अत: इस शैली के उपन्यासों में प्रामाणिकता और गहराई तो हो सकती है, परन्तु विविधता नहीं हो सकती इसलिए विषय-वस्तु की दृष्टि से जैनेन्द्र के उपन्यास मनोवैज्ञानिक उपन्यास कहे जाते हैं। जैनेन्द्र ने अपने उपन्यासों में परंपरागत नैतिकता को अस्वीकार किया है, जिससे उनके पात्रों के जीवन में पीड़ा का संचार होता है। जैनेन्द के अधिकतर पात्र अपनी इस पीड़ा को अपनी नियति मान लेते हैं और इस पीड़ा से बचने का भी कोई उपाय नहीं करते। यही पीड़ा आगे चलकर आत्मपीड़ा बन जाती है। यह आत्मपीड़ा जैनेन्द्र के उपन्यासों का प्रमुख भाव है। यह पीड़ा व्यक्ति में कुंठा उत्पन्न कर उसके व्यक्तत्व में गाँठ डाल देती है। कुछ आलोचक जैनेन्द्र के पात्रों को भौतिक दृष्टि से असंगत मानते हैं।
उनके पात्र नारी के समर्पण को देखकर पलायन कर जाते हैं। इसी कारण आलोचक मानते हैं कि जैनेन्द्र के समाज में पलायन का दर्शन है। वे अध्यात्मिकता का सहारा लेकर अपने नारी पात्रों को अनैतिकता की तरफ ढकेलते हैं। जैनेंद्र के उपन्यासों का एक विशेषता है कि उनके पात्रों को मनोवैज्ञानिक कुठा से मुक्ति नारा देता है। इसके बावजूद जैनेन्द्र में परंपरा और आधुनिकत का द्वंद्व है। वे आधुनिकता से आरम कर टास के सामने मुटा हैक है नके उपन्यासों में प्रेम से संबद्ध यह भावना देखी जा सकत है कि विचार के रूप में प्रेम बहुत पवित्र है, स्वाभाविक है, अच्छा है, वरेण्य है. लेकिन शारीरिक संबंधों में यह दूषित हो सकता है।
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