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जनशक्ति नियोजन की आवश्यकताओं एवं प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

 मानव शक्ति नियोजन — मानव शक्ति नियोजन से तात्पर्य, संगठन के लिए कर्मचारियों की व्यवस्था करना. उनकी आवश्यकता का पूर्वानुमान लगाना, उन्हें खोजना, उनका चयन करना तथा उनके प्रशिक्षण एवं विकास में सहयोग करने से है। सामान्य शब्दों में कहें तो ‘मानव शक्ति नियोजन, किसी संस्था के संदर्भ में कर्मचारियों की मांग और पूर्ति में सामंजस्य स्थापित करना है।’

यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें किसी संस्था में कितनी मानव शक्ति की आवश्यकता होगी, इस बात का अनुमान लगाया जाता है तथा कार्मिकों की व्यवस्था संबंधी नीतियाँ इसी पूर्वानुमान पर आधारित होती हैं। वर्तमान संदर्भ में मानव संसाधन नियोजन से आशय है कि मानव पूंजी का प्रबंधन इस प्रकार किया जाए कि वह उदारवादी बाजार व्यवस्था के अनुरूप कार्य निष्पादित कर सके।

संगठन की लक्ष्य प्राप्ति उपलब्ध मानव पूंजी के द्वारा ही सम्भव हो सके तथा ऐसी कार्य-प्रणाली और नीतियों का चयन किया जाए, जिससे प्रत्येक विभाग पूर्व-निर्धारित व आकस्मिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो सकें आदि। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि मानव पूंजी संगठन की आवश्यकतानुसार उपलब्ध हो, न आवश्यकता से अधिक हो और न कम हो।

बदलती हई परिस्थितियों के साथ मानव संसाधन में भी परिवर्तन करने पडते है अर्थात कार्यरत कर्मचारियों के अलावा नये कर्मचारियों की भर्ती करनी पड़ती है। कई बार पुराने कर्मचारियों को पद से निष्कासित करके नयी भर्तियाँ करनी पड़ती हैं अत: यह निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। स्ट्रॉस एवं साइल्स मानव संसाधन नियोजन की व्याख्या करते हुए लिखा है। युक्तिसंगत दृष्टि से किसी फर्म के कर्मचारियों संबंधी क्रिया के विकास का प्रथम चरण संगठन के संचालन के लिए कर्मचारियों की व्यवस्था करना है।

यह केवल प्रथम चरण ही नहीं है, अपितु किसी व्यवसाय की स्थापना एवं विकास का महत्त्वपूर्ण चरण है। योग्य कर्मचारियों की पूर्ति व्यवसाय की सफलता के अन्य साधन जैसे-धन, सामग्री तथा बाजार की भाँति ही प्रभावित करती है।” मानव शक्ति नियोजन का मुख्य लक्ष्य मानव संसाधन के अपव्यय को रोककर उसका प्रभावशाली उपयोग करना है।

मानव संसाधन नियोजन की आवश्यकता, संगठन की आवश्यकतानुसार कर्मचारियों की संख्या का पूर्वानुमान लगाने के लिए, उनकी भर्ती करने के लिए चयन प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए विभिन्न पदों के लिए कर्मचारियों की योग्यता का निर्धारण करने के लिए उनकी दक्षता के विकास के लिए, प्रशिक्षण का कार्यक्रमों का आयोजन करने आदि के लिए होती है।

मानवीय श्रम या शक्ति की अधिक उपलब्ध जनशक्ति में से संगठन अपनी आवश्यकतानुसार श्रेष्ठ मानव श्रम का चुनाव कर सके और यह तभी संभव है, जब यह कार्य मानव संसाधन नियोजन द्वारा किया जाए। संगठन के सफल संचालन के लिए यह आवश्यक है कि उसे योग्य कर्मचारी उपयुक्त समय पर उपलब्ध हों। रिक्त स्थानों की पूर्ति योग्य कर्मचारियों द्वारा की जाए तथा संगठन पर अतिरिक्त आर्थिक भार भी न पड़े।

आज की उपभोक्तावादी बाजार व्यवस्था में मानव संसाधन नियोजन की आवश्यकता और अधिक बढ़ गयी है, क्योंकि कर्मचारी अच्छे वेतनमान और अच्छा कार्य स्थल पाकर शीघ्न ही कम्पनियाँ बदल देते हैं, और वह स्थान रिक्त हो जाता है तथा पुनः भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ करनी पड़ती है, जिससे उसे योग्य व्यक्ति द्वारा भरा जा सके।

मानव शक्ति नियोजन (चरणबद्ध प्रक्रिया ) :–

प्रत्येक संगठन का निर्माण किन्हीं विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के उद्देश्य के लिए किया जाता है और ये लक्ष्य दूसरे संगठनों के लक्ष्यों से भिन्न हो सकते हैं। मानव शक्ति नियोजन इन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है, क्योंकि इसी आधार पर कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है; जैसे-स्वास्थ्य संगठनों के लिए चिकित्सकों की नियुक्ति, विद्यालयों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति आदि। मानव संसाधन नियोजन प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों से होकर गुजरती है

(1) कार्यबल स्थिति का आकलन — संसाधन नियोजन का यह प्रथम चरण है। इस चरण में उपलब्ध मानव शक्ति का आकलन किया जाता है; जैसे कर्मचारियों की संख्या, उनकी योग्यता, अनुभव, तकनीकी ज्ञान, आयु आदि।

इसके आधार पर ही अतिरिक्त मानव शक्ति की आवश्यकता का पता चलता है कि संगठन को और कितने कर्मचारियों की सेवाओं की जरूरत पड़ेगी, जिससे उसके निष्पादन में प्रभावशीलता की वृद्धि हो सके।

इसके अलावा इस स्तर पर इन पहलुओं पर भी विचार किया जाता है कि प्रभावशीलता में वृद्धि के लिए कर्मचारियों को किस-किस तकनीकी ज्ञान, प्रशिक्षण की आवश्यकता पड़ेगी। यहाँ यह भी तय करना पड़ता है कि योग्य व्यक्ति के चुनाव के लिए कौन-सी विधि ठीक रहेगी, जिससे हम विभिन्न लोगों की योग्यता का सही आकलन कर सकें।

(2) मानव संसाधन आवश्यकताओं का अनुमान — मानव शक्ति नियोजन के दो पक्ष होते हैं-

(*) मानव शक्ति मांग योजना (*) मानव शक्ति आपूर्ति योजना ।

नियोजन के पहले चरण में हमें यह पता चलता है कि संगठन में कितनी मानव शक्ति की मांग है अर्थात कितने कर्मचारियों की आवश्यकता है। 

दूसरे चरण, यानि मानव संसाधन आवश्यकताओं के अनुमान में इस मांग के अनुसार मानव शक्ति की आपूर्ति संबंधी प्रयास किये जाते हैं। रिक्त स्थान भरने के लिए आन्तरिक स्रोत, यानि पदोन्नति द्वारा भरे जाने वाले पद तथा बाह्य स्रोतों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।

मानव शक्ति आपूर्ति संबंधी प्रयास करते समय सामयिक आवश्यकताओं , स्थानीय आवश्यकताओं तथा पदसोपनीय क्रम का ध्यान रखना चाहिए। नियुक्ति प्रक्रिया में कर्मचारियों की योग्यता निर्धारण के लिए आमतौर पर विश्लेषणात्मक पद्धति बहुआयामी दक्षता विश्लेषण पद्धति प्रक्रियात्मक शोध आदि परीक्षात्मक विधियों का सहारा लिया जाता है।

(3) सूचना वर्गीकृत करना व अर्थ समझाना –– इस चरण में विभिन्न विभागों से संबंधित सूचनाओं को एकत्रित किया जाता है। तदुपरांत उनका वर्गीकरण किया जाता है कि किस समस्या का संबंध किससे है और समस्या के समाधान का प्रयास किया जाता है।

जब सब सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं, तब कर्मचारियों को उसके बारे में जानकारी दी जाती है तथा उसके अर्थ को समझाया जाता है।

(4) कार्य निष्पादन मानक स्थापित करना –– कार्य-निष्पादन मानक से तात्पर्य है-‘कर्मचारियों के द्वारा किये जाने वाले कार्य को मापने का एक पैमाना निर्धारित करना’ अर्थात यह तय करना कि एक कर्मचारी द्वारा दिये गये निश्चित समय में कम-से-कम कितना और किस स्तर का काम किया जाना चाहिए।

इसी निर्धारित मानक के आधार पर कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन करना कार्य निष्पादन मानक कहलाता है। मानक निर्धारित करते समय प्रबंधक को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे मानक व्यावहारिक हो अर्थात मानकों का निर्धारण मानवीय पक्ष को ध्यान में रखकर करना चाहिए कि एक मनुष्य निर्धारित मानकों को प्राप्त कर भी सकता है या नहीं।

मानक लोचशील होने चाहिए, जिससे उन्हें आवश्यकतानुसार बदला जा सके। मानक गतिशील होने चाहिए, ताकि बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार उनमें बदलाव लाया जा सके। और सबसे जरूरी यह है कि मानक स्पष्ट रूप से परिभाषित होने चाहिए, ताकि कर्मचारियों को समझ में आ सकें।

किसी संगठन में कार्य निष्पादन मानक स्थापित करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इनके अभाव में कर्मचारियों के कार्य निष्पादन की तर्कसंगत समीक्षा संभव नहीं हो पाती और कार्य निष्पादन का स्तर कम रह जाता है।

(5) जन-संसाधन समस्याओं का अनुमान लगाना — संगठन में उपलब्ध जन-संसाधन तथा भविष्य में संभावित आवश्यकता का अनुमान लगाना और उसकी पूर्ति के लिए प्रयास करना इस चरण के अंतर्गत आता है।

रिक्त स्थानों की पूर्ति अच्छे व योग्य कर्मचारियों द्वारा की जा सके, मानव संसाधन नियोजन इसके लिए प्रयासरत रहता है।

(6) भौतिक संसाधन मूल्यांकन — मानव संसाधन नियोजन के अंतर्गत भौतिक संसाधनों की आवश्यकता और उसकी पूर्ति करना भी शामिल है। 

संस्था में कितने उपलब्ध संसाधन हैं तथा कितने संसाधनों के आवश्यकता भविष्य में पड़ सकती है, यह सब तय करना भी जन-संसाधन नियोजन के कार्यक्षेत्र में शामिल है।

(7) कर्मचारियों की उपलब्धता :– मानव संसाधन नियोजन का मुख्य ध्येय है संस्था को आवश्यक कर्मचारी, कम लागत में और समय पर उपलब्ध हों।

इसके लिए आवश्यक है कि संगठन कर्मचारियों की आपूर्ति के लिए निरन्तर शैक्षणिक संस्थानों और प्रशिक्षण केन्द्रों के सम्पर्क में रहे तथा उन्हें अपनी आवश्यकता के बारे में अवगत भी कराता रहे, जिससे कर्मचारी आसानी से उपलब्ध हो सकें। आजकल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा कर्मचारी चयन के लिए इस प्रक्रिया का प्रयोग खूब किया जा रहा है।

(8) शोध अध्ययन :- जब योजना क्रियान्वित हो जाए, तो उसका मूल्यांकन करना चाहिए, जिससे उसकी अच्छाई और कमियों पर प्रकाश डाला जा सके और भविष्य में गलतियों को सुधारा जा सके।

नीतियों को तर्कसंगत बनाने के लिए व उसमें वस्तुपरकता लाने के लिए शोध करना आवश्यक है। शोध प्रासंगिक हो, इसके लिए आवश्यक है कि वह तथ्यों और अनुभवों पर आधारित हों, पूर्वाग्रहों व अनुमानों पर नहीं।

जन-संसाधन योजना व बजट –– मानव संसाधन योजना उपलब्ध आर्थिक संसाधनों के अनुरूप होनी चाहिए। प्रत्येक संगठन का एक निर्धारित बजट होता है, जिसमें एक वित्त वर्ष के दौरान होने वाली आय और व्यय का संभावित विवरण होता है। इस ब्यौरे के द्वारा आय और व्यय के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, जिससे संगठन को घाटे का सामना न करना पड़े।

मानव संसाधन योजना पर भी व्यय किया जाता है अत: यह जानना आवश्यक है कि जितना व्यय इस संसाधन पर किया जा रहा है, उससे वाँछित लाभ और उद्देश्य की प्राप्ति हो रही है या नहीं। बजट एक आधुनिक व्यवस्था है, जिसमें व्यय का सीधा संबंध लाभ से होता है। अतः बजट और मानव शक्ति योजना अन्तः निर्भर प्रक्रियाएं हैं और ये एक-दूसरे के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी हई हैं।

यदि दोनों के बीच समन्वय ठीक तरह से न किया जाए, तो निम्नलिखित समस्याएं पैदा हो सकती हैं

1. योजना का क्रियान्वयन बीच में रोकना पड़ सकता है। क्योंकि आवश्यक आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं

2. मानव शक्ति संसाधन पर अधिक व्यय करना पड़ा, क्योंकि अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता थी अतः परियोजना के लिए पर्याप्त संसाधनों के अभाव से इससे रोकना पड़ा विकासशील देशों में मानव-शक्ति नियोजन और बजट के बीच समन्वय स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है,

क्योंकि इन देशों में अधिकतर मानव शक्ति योजना का निर्धारण क्रियान्वयन स्तर पर होता है। मानव शक्ति प्रबंधन की अनिश्चतता के कारण योजनाएं अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुँच पाती। बजट बनाते समय मानव शक्ति योजना से संबंधित निम्नलिखित विषयों पर ध्यान देना चाहिए

• मानव शक्ति संसाधन पर होने वाले व्यय तथा अन्य सम्भावित व्ययों के अंतर्संबंध को ध्यान में रखकर बजट निर्माण किया जाए।
• बजट बनाते समय महत्त्वपूर्ण संसाधनों के व्यय को ध्यान में रखा जाए।
• आकस्मिक व्यय का भी एक निश्चत आर्थिक भाग निर्धारित किया जाए। ।
• यदि वाँछित संसाधन उपलब्ध न हों, तो परियोजना में परिवर्तन किया जाए। संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर लक्ष्य निर्धारित किये जाएं, जिससे उनकी प्राप्ति सम्भव हो सके।

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