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राज्य, बाजार और नागरिक समाज के बीच संबंध की चर्चा कीजिए।

 राज्य, बाजार और नागरिक समाज एक-दूसरे को परिभाषित एवं सीमित करते हैं और एक-दूसरे के पूरक है। राज्य व नागरिक समाज के मध्य समकालीन संबंध परंपरागत उदारवाद की देन है। उदारवादी विचारधारा नागरिक समाज को लोकतांत्रिक राज्यों की एक आवश्यकता बताती है। उदारवाद को ध्यान में रखते हुए, यह देखा गया कि उसके साथ सरकारी और निजी क्षेत्रों के बीच का भेद भी है। लोक या सरकारी क्षेत्र प्रतिनिधि सरकार और विधि के शासन पर आधारित है।

निजी क्षेत्र व्यक्तिगत कार्यों, अनुबंध और बाजार के आदान-प्रदान का वह क्षेत्र है, जोकि राज्य के सुरक्षा दायित्वों की परिधि में आते हुए भी उससे स्वतंत्र होते हैं। जोएल मिगदल के अनुसार, राज्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों से घिरा हुआ है व इनके द्वारा परिवर्तित होता है। उनके अनुसार, समाज भी राज्य के प्रभाव के कारण बदल गया है। सामाजिक संगठन और समाज का संपूर्ण ढाँचा, राज्य द्वारा दिए गए अवसर और बाधाओं द्वारा परिवर्तित हुआ है, बिल्कुल वैसे ही जैसे राज्य अन्य सामाजिक संगठनों से प्रभावित है, या विश्व की अर्थव्यवस्था द्वारा दी गई छूट या सीमा से प्रभावित है नीरा चन्दोक (1995) के विचारों में, वह क्षेत्र, जिसमें समाज राज्य से परस्पर संबंध रखता है, उसे नागरिक समाज की संज्ञा दी जा सकती है। इसके साथ ही यह एक ऐसे आम क्षेत्र के रूप में देखा जाता है, जिसमें आम जनता स्वयं द्वारा परिभाषित ध्येयों की संयुक्त क्षेत्र और एक जैसे मुद्दों के आधार पर पूर्ति करती है।

(1) ऐसा क्षेत्र, जोकि अपने में निवास करने वालों और उनके संबंधों को चर्चाओं द्वारा, ना कि नियंत्रण द्वारा संपोषित करता है।

(2) यह माना जाता है कि चर्चाएँ आम होंगी, ताकि वे सभी के लिए उपगम्य हो सके।

(3) यह क्षेत्र नियमानुसार स्थापित राज्य के दूरसंचार माध्यमों से बाहर रहकर कार्य करेगा, जिसमें स्वतंत्र व निष्पक्ष चर्चाएँ हो पाएँगी। इस क्षेत्र के निवासी नए पहलुओं और नई संस्थाओं द्वारा स्थापित सामाजिक रिश्तों से जुड़े रहेंगे।

समकालीन नागरिक समाज, राज्य के साथ ज्यादा व व्यापक रूप से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। साथ ही, नए सामाजिक आंदोलनों द्वारा दिया गया नागरिक समाज का नया रूप भी, जैसा कि विश्लेषित किया गया है, आधुनिक राज्य उपकरण की मान्यता को गलत या कम नहीं ठहराता है।

नागरिक समाज की एक अन्य आवश्यक विशेषता के अनुसार, इन्हें गैर-सरकारी संगठनों से बदला जाता है। हालाँकि, गैर-सरकारी संगठन, नागरिक समाज का एक बहुत महत्त्वपूर्ण अंग है, पर इसके उपरांत वे नागरिक समाज के संगठनों का संपूर्ण सप्तक नहीं है।

गैर-सरकारी संगठन, नागरिक समाज का एक मुख्य एवं वृहद् अंग है और इसी कारण इनका भी अध्ययन किया जाना चाहिए। सार्वभौमिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए हमें इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए कि ये गैर-सरकारी संस्थाएँ स्थानीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किस तरह काम करती है।

जूली फिशर ने दो प्रकार के गैर-सरकारी संगठन बताए हैं-

(1) स्थानीय स्तर पर स्थापित संस्थाएँ 

(2) राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर स्थापित विकास संबंधी सहयोग प्रदान करने वाली संस्थाएँ आमतौर पर व्यावसायिक कर्मचारियों की भर्ती करती है, जोकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को स्थानीय स्तर तक पहुँचाते हैं और इसमें स्वयं का विकास सम्मिलित नहीं होता है।

दो मुख्य प्रकार की स्थानीय संस्थाएँ हैं-स्थानीय विकास से संबंधित संस्थाएँ और लाभकारी संस्थाएँ,जोकि समाज के एक समूह का प्रतिनिधित्व करती हैं। तीसरे प्रकार के में कर्ज लेने वाले समूह, सहयोगी संस्थाएँ आदि शामिल हैं, जोकि कभी-कभी लाभ के लिए कार्य कर सकते हैं।

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