लिखित भाषा के प्रकार्यः अभी हमने देखा कि लेखन का सर्वाधिक प्रत्यक्ष प्रकार्य यह है कि वह संप्रेषण के क्षेत्र को व्यापक विस्तार देता है। मानव संप्रेषण में लेखन के कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रकार्य भी हैं जिनका संक्षिप्त परिचय हम यहाँ प्राप्त करेंगे |
1) स्मृति में सहायक (memory supportive): संस्कृति अध्येताओं और नृतत्वशास्त्रियों ने वाचिक पंरपरा से जुड़े लोगों की स्मरण शक्ति को अत्यंत आश्चर्य से देखा और उसे महान सिद्ध किया। उनका यह कहना है कि वाचिक परंपरा से जुड़े हुए लोगों में यह क्षमता थी कि वे लंबे आख्यानों/महाकाव्यों को याद कर लेते थे।
यह बात वास्तव में महत्वपूर्ण है लेकिन इतनी नहीं जितनी कि किसी विश्वविद्यालय की पुस्तक सूची। यही कारण है कि लेखन के विकास में उसका स्मृति प्रकार्य सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। यहाँ-वहाँ कब क्या हुआ इसे हम कुछ समय तक ही याद रख सकते हैं। यदि अतीत की इन सूचनाओं को मौखिक रूप में कुछ पीढ़ियों तक हस्तांतरित करना हो तो पूरे संदेश में निरंतर परिवर्तन आता जाएगा।
इसके विपरीत यदि इन सूचनाओं और संदेशों को लिखित रूप में रखा जाए तो इन्हें कभी भी उनके मूल अथवा अपरिवर्तित रूप में देखा जा सकता है अर्थात इन्हें हमेशा के लिए यथावत सुरक्षित रखा जा सकता है।
2) संप्रेषण क्षेत्र का विस्तार (Expansion of communicative area): मौखिक संप्रेषण में वक्ता और श्रोता दोनों की उपस्थिति अनिवार्य है इसलिए इसका संप्रेषण क्षेत्र सीमित होता है। इसके विपरीत लिखित संप्रेषण दूरी और काल दोनों की सीमा को पार कर लेता है।
इसीलिए लेखन को संप्रेषण के क्षेत्र में दूरी का माध्यम कहा गया है जिसमें न केवल लेखक और पाठक की दूरी मिट जाती है बल्कि लेखक और संदेश की दूरी भी सिमट जाती है। इस प्रकार लिखित भाषारूप व्यापक संप्रेषण क्षेत्र तक अपने मूल रूप में फैल सकता है।
3) प्रसारण का माध्यम (Mode of transmission): लेखन का यह प्रकार्य संदेश को भेजने वाले से दूर पहुँचाने में समर्थ बनाता है। लिखित संदेश उच्चरित संदेश की तरह उसी समय प्रेषित करना जरूरी नहीं होता, इसे बाद में भी उपलब्ध कराया जा सकता है।
लिखित भाषा रूप की यह विशेषता उसे प्रसारण माध्यम के रूप में स्थापित करती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि मौखिक संदेश अपने श्रोता तक पहुँचने के तुरंत बाद ही समाप्त हो जाता है जबकि लिखित संदेश एक वस्तु की तरह लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। इसका अर्थ यह है कि बोले गए शब्द अपनी प्रकृति में अल्पजीवी (ephemeral) और स्वतःजात (Sponteneous) होते हैं।
4) सामाजिक नियंत्रण (Social Control): लेखन के स्थायित्व का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि उसमें सामाजिक व्यवहार को नियमित और नियंत्रित करने की शक्ति होती है। यदि आप सरकारी कार्यालयों के कामकाज को देखें तो आपको ‘आप यह मुझे लिखित रूप में दीजिए’ (Can I have this in writing) जैसी अभिव्यक्तियाँ प्रयोग में मिलेंगी।
इनसे यह तथ्य प्रमाणित होता है कि लोग मौखिक शब्दों की तुलना में लिखित शब्दों पर अधिक विश्वास करते हैं। अपने सामान्य जीवन में भी हम यह मानते हैं कि ‘सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए’ अथवा ‘वो व्यक्ति कान का कच्चा है’। सामाजिक नियंत्रण के प्रकार्य के स्तर पर दूसरे पक्ष का संबंध, भाषा से है। हम यह जान चुके हैं कि भाषा व्यवहार सामाजिक संप्रेषण का एक अंग है।
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